सफर हमेशा ‘साइट सीइंग’ करते हुए हो, ऐसा नहीं है। अक्सर दूरियों को नापते हुए हम ‘लोकल’ जिंदगी से भी मिल आते हैं। और इन दिनों जबकि ‘वोकल फॉर लोकल’ का मंत्र हर तरफ जपा जा रहा है, तो मुझे अपने उस सफर की याद कैसे नहीं आती जिसने उत्तराखंड में एक ऐसे संगठन से मिलवाया था जो पहाड़ी परिवेश में आत्मनिर्भरता के सबक सिखा रहा है।
गंगोलीहाट के हाट कलिका देवी मंदिर से लौटते हुए उस रोज़ बेरीनाग के बाज़ार का रास्ता पकड़ना फायदेमंद रहा था। बाज़ार अभी कुछ दूर था मगर खुशियों की इबारत मेरी आंखों के सामने थी। यह त्रिपुरादेवी पर ‘अवनि’ की मौजूदगी बताने वाला बोर्ड था।
आंगन में ऊनी और रेशमी धागों की लच्छियों ने रंगों का एक अजब-गजब संसार बुन रखा था, तारों पर झूलते रंगों के उस पार नंदा देवी की चोटी बादलों की ओट में लुका-छिपी खेल रही थी। दरवाज़े पर युवाओं की एक छोटी-मोटी टोली बस के इंतज़ार में थी। ये डिजाइनिंग के छात्र थे जो ”अवनि’’ में इंटर्नशिप के लिए इन दिनों यहां आए हुए थे।
हम भीतर दाखिल हुए, उस मुहावरे और गणित को समझने जिसने उत्तराखंड के इस सुदूरवर्ती जिले में अर्थशास्त्र का एक नया शास्त्र गढ़ा है, पहाड़ी औरतों के स्वावलंबन का मंत्र रोपा है और पहाड़ों की नाजुकमिजाज़ी को ध्यान में रखकर विकास का कायदा तैयार किया है।
अवनि की संस्थापक रश्मि भारती कहती हैं, ‘‘सस्टेनेबल विकास का मंत्र है ज़मीन के मिज़ाज़ को समझकर, स्थानीय लोगों को साथ लेकर, उनके हितों का ध्यान रखकर आगे बढ़ना। इसी मंत्र को अवनि का आधार बनाकर हमने हिमालयी परिवेश में इस कॉपरेटिव की स्थापना नब्बे के दशक में की थी। यहां के स्थानीय लोगों को साथ लेकर, उनकी अपनी ज़मीन से मिलने वाले संसाधनों का इस्तेमाल कर, उनकी ही पारंपरिक तकनीकों की मदद से हमने टैक्सटाइल की दुनिया में कदम रखा। कुछ भूले-बिसरे कौशल पुनर्जीवित किए, कुछ भुला दिए गए पेड़-पौधों को साथ लिया और ऑर्गेनिक रंगों का नया तिलिस्म पैदा किया।”
देश-विदेश के कितने ही बड़े शोरूमों, रिटेल चेन्स, टैक्सटाइल्स स्टोर्स तक में आज अवनी के वस्त्रों ने जगह बना ली है। और मज़े की बात है कि ये सिर्फ कंबल, दरियां, दोहर, चादरें, खेस वगैरह नहीं हैं बल्कि एक से एक नायाब और फैशनेबल जैकेटें, शॉल-स्टोल्स, दुपट्टे, साड़ियां, कोट आदि भी इनमें शामिल हैं। ऊनी खिलौनों की एक दुनिया है और यहां तक कि ऑर्गेनिक पेस्टल्स कलर भी हैं।
रश्मि ने जब अपने पति रजनीश के साथ मिलकर यहां अवनि की नींव रखी थी, तो जैसा कि अक्सर ‘बाहरी’ लोगों के साथ होता है, उन्हें स्थानीय लोगों का विरोध झेलना पड़ा था। यहां तक कि उन्हें शक की निगाहों से देखा गया, कुछ शरारती तत्वों ने तंग करने की कोशिश भी की, लेकिन हिमालय की छत्रछाया में पनाह ले चुके इस दंपत्ति के हिमालय जैसे अटल इरादों को कोई डिगा नहीं पाया।
पहाड़ी औरतों के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ नया नहीं
रश्मि ने बताया, ‘‘हमने पहाड़ की औरतों को साथ जोड़ा, उन्हें घर में रहकर किए जाने वाले कुछ काम जैसे कताई, बुनाई के अवसर दिए तो रंगाई की यूनिटों में उन औरतों और आदमियों को काम पर रखा जो घर-परिवार की जिम्मेदारियों से समय निकालकर नियमित रूप से नौकरी करने के लिए तैयार थे। इतना ही नहीं, शादीशुदा औरतों या मांओं के लिए काम के घंटे लचीले रखे गए, वे अपना घर का काम निपटाने के बाद, बच्चों के स्कूल जाने के बाद अपनी मर्जी के मुताबिक काम के घंटे चुनने के लिए स्वतंत्र होती हैं। इसका एक बड़ा फायदा यह हुआ कि हमारे संगठन के साथ ज्यादा से ज्यादा, हर उम्र की, हर तबके की युवतियां और महिलाएं जुड़ने लगीं।”
”अवनि’’ के आंगन में उगे नील, दाड़िम (अनार की स्थानीय किस्म), गेंदे, किलमोड़े के पौधे देखकर एक बार को तो हैरानी होती है कि टैक्सटाइल से वास्ता रखने वाले इस कॉपरेटिव में इनका क्या काम? अवनी की रंगाई (डाइंग) यूनिट के इंचार्ज धीरज ने बताया कि कैसे ये इन फूल-पत्तियों या फलों, छालों, बीजों से वस्त्रों के लिए ऑर्गेनिक रंग तैयार किए जाते हैं।
रश्मि कहती हैं, ”बुनाई और रंगाई की प्राचीन तकनीकें लुप्त होने की कगार पर हैं। अवनि ने गांवों में लोगों को अपने घरों में या उनके घरों के नज़दीक स्थापित केंद्रों में इन पहाड़ी कताई-बुनाई की शैलियों को जिंदा रखने का मौका दिया है। और बेरीनाग वाले सेंटर में ऑर्गेनिक डाइंग (रंगाई) के लिए तमाम पेड़-पौधे भी उगाए जाते हैं। नील की ही कम से कम चार किस्में हम उगाते हैं जो इंडिगो प्रिंट तैयार करने के काम आते हैं। इसी तरह, हल्दी, किलमोड़े, गेंदे, टेसू, मेंहदी, चायपत्ती से वनस्पति रंगों का पैलेट बनता है।’‘
अवनि की दुनिया सिर्फ वस्त्रों तक सिमटी नहीं है। सह-संस्थापक रजनीश ने टैक्नोलॉजी की अपनी समझ का पूरा-पूरा इस्तेमाल किया है। सौर ऊर्जा से पूरी इकाई में बिजली उपलब्ध होती है और यहां तक कि स्टाफ कैंटीन में खाना पकाने के काम के लिए भी सोलर का ही इस्तेमाल होता है।
पिछले कुछ वर्षों में अवनि ने चीड़ के पेड़ों की नुकीली पत्तियों से बिजली बनाने की यूनिट चालू कर इलाके में खूब नाम कमाया है। ये पत्तियाँ कहाँ तो जंगल की आग का सबब बना करती थीं, अब इन्हें इकट्ठा कर (यह काम ग्राम पंचायतों के सहयोग से किया जाता है जो इसके लिए ग्रामीणों की मदद लेती हैं) बिजली बनायी जाती है। अवनि अपनी जरूरत भर के लायक बिजली का उत्पादन करने के बाद बाकी बिजली को आसपास के इलाकों मेूं बिजली सप्लाई के लिए ग्रिड को भी देता है।
पहाड़ों की पानी की समस्या से निपटने के लिए यहाँ बारिश के पानी का संचयन किया जाता है, पानी को रीसाइकिल किया जाता है और हर बूंद का किफायत से इस्तेमाल होता है।
बेरीनाग की पिछली यात्रा का हासिल था ‘अवनि’ के इस सस्टेनेबल इकोसिस्टम को साक्षात देखना। पहाड़ों को देखने की एक नई निगाह दे गया था अवनी का दौरा।
(अवनि संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है पृथ्वी। अवनि के बिज़नेस मॉडल में पृथ्वी के प्रति सम्मान और सरोकार का भाव अपने नाम को सार्थक बनाता है।)
संपर्क सूत्र –
PO Tripuradevi, via Berinag
Dist. Pithoragarh, Kumaon 262531
Uttarakhand, India
Mobile: (+91) 9411767118
Telefax: (+91) 5964-244172
E-mail: info@avani-kumaon.org
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