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IT की नौकरी छोड़ सीखा मशरूम उगाना, आपदा पीड़ित महिलाओं को जोड़, विदेश तक पहुंचाए प्रोडक्ट्स

mushroom business

हममें से कई लोग अपने आस-पास के जरूरतमंद लोगों के लिए कुछ करना तो चाहते हैं, लेकिन अपने व्यस्त जीवन और नौकरी के कारण कर नहीं पाते।  हालांकि कुछ ऐसे साहसी लोग भी हैं, जो दूसरों की मदद के लिए सबकुछ छोड़कर आगे आते हैं। कहते हैं कि अगर किसी काम को सही नियत के साथ किया जाए, तो आपको सफलता जरूर मिलती है। ऐसा ही कुछ हुआ, देहरादून की हिरेशा वर्मा के साथ भी। 

उन्होंने साल 2013 में अपनी अच्छी-खासी IT की नौकरी,  सुविधाएं और AC ऑफिस का काम छोड़कर मशरूम उगाना सीखा। उस समय उनका उदेश्य सिर्फ पैसा कमाना नहीं था। बल्कि उन महिलाओं को रोजगार मुहैया कराना था, जिन्होंने 2013 के उत्तराखंड आपदा में अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था।  

मात्र एक कमरे से शुरू किया गया, उनका छोटा सा बिज़नेस आज बड़ी कंपनी में तब्दील हो चुका है। इसके अलावा, उन्होंने अब तक 2000 लोगों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देकर रोजगार से जोड़ने का काम भी किया है। हिरेशा आज उत्तराखंड की मशहूर बिज़नेस वुमन बन चुकी हैं। इसी साल उन्हें भारत सरकार के MSME मंत्रालय की ओर से बेस्ट एम्पावरिंग वुमन आंत्रप्रेन्योर का अवॉर्ड मिला है।  

IT की नौकरी छोड़, बनीं मशरूम किसान 

दिल्ली में जन्मीं हिरेशा ने बॉटनी और केमिस्ट्री विषय में M.Sc. और इंटरनेशनल बिज़नेस में MBA किया है। वह देहरादून की एक IT कंपनी में काम कर रही थीं। लेकिन इंसान के जीवन में बदलाव लाने के लिए कभी-कभी एक क्षण ही काफी होता है। 

हिरेशा के जीवन में भी साल 2013 में एक ऐसा ही बदलाव आया। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताती हैं, “मैं उत्तराखंड में आई आपदा के बाद, कुछ ऐसी महिलाओं से मिली,  जिनके पति काम से बाहर गए थे और आपदा वाली जगह से लौटकर आए ही नहीं। मैं उनके लिए कुछ करना चाहती थी, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँ? तभी मुझे पता चला कि यहां का मौसम मशरूम उगाने के लिए बिल्कुल सही है, और फिर मैंने इसपर काम करना शुरू कर दिया।”  

उन्होंने एक छोटे से कमरे में मशरूम लगाने से शुरुआत की थी। तब हिरोशा ने मात्र 2000 रुपये खर्च करके 25 बैग्स में मशरूम उगाए, जिसमें उन्हें सफलता मिली। इसके बाद साल 2013 के आखिर में उन्होंने नौकरी छोड़कर, मशरूम की खेती को ही आगे बढ़ाने के बारे में सोचा। इसे बड़े स्तर पर करने और दूसरों को सिखाने के लिए उन्होंने, हिमाचल प्रदेश के Directorate of Mushroom Research से इसकी सही तालीम भी ली। सही जानकारी के बाद उन्होंने देहरादून के एक गांव में अपना पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया। जिसके लिए उन्होंने तीन झोपड़ियां बनवाईं और 500 बैग्स में मशरूम उगाए। साथ ही उन्होंने महिलाओं और दूसरे किसानों को भी ट्रेनिंग देना शुरू किया। 

खेती का स्टार्टअप बना बड़ा बिज़नेस  

देहरादून के आस-पास उन दिनों कोई भी मशरूम की खेती नहीं करता था। लेकिन हिरेशा ने 2000 किसानों और महिलाओं को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देकर, उन्हें एक नए रोजगार से जोड़ दिया। आज उनके साथ तक़रीबन 15 लोग काम कर रहे हैं। जिनमें नौ वे महिलाएं हैं, जिनके पास आपदा के बाद कोई रोजगार या सहारा नहीं था।  

हिरेशा ने साल 2015 में, आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से, मशरूम उत्पादन के लिए यूनिट बनवाई। वह बताती हैं, “मशरूम की खेती से हमें बेहद फायदा हुआ है। मैंने AC कमरे और मशीन आदि के लिए 80 लाख का लोन लिया था, जिसे हमने सिर्फ तीन साल में ही चुका दिया।” 

उन्होंने मशरूम के साथ-साथ एक कम्पोस्ट यूनिट भी बनवाया है। वह बताती हैं कि हमें खेती करने में कम्पोस्ट की काफी दिक्कत आती थी। उनके अलावा, गांव के अन्य किसानों को भी खाद नहीं मिल पाती थी। इस समस्या को देखते हुए उन्होंने खुद का कंपोस्ट यूनिट बनवाया। हिरेशा ने कहा, “मैं खाद बनाने की प्रक्रिया में तक़रीबन आठ बार नाकामयाब हुई। लेकिन मैंने हार नहीं मानी, चूँकि हमें सरकारी कृषि केंद्र से जितनी खाद मिलती थी, वो सालभर के लिए काफी कम पड़ती थी। यह समस्या दूसरे किसानों की भी थी। आज हम पंजाब से भूसी मंगवाकर खाद बनाते हैं और पूरे उत्तराखंड में इसकी सप्लाई भी करते हैं।”  

मशरूम की चाय और दवाई  

फ़िलहाल वह 10 एसी कमरों में वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग करके प्रति दिन 1000 किलो उत्पाद तैयार करती हैं। पहले वह अलग-अलग सप्लाई चेन के माध्यम से अपने मशरूम बेचा करती थीं। साल 2019 में, उन्होंने Han Agrocare नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर कराई। अब वह अपने ब्रांड के तहत नौ किस्मों के मशरूम उगाकर बेच रही हैं। जिसमें शिटाके, बटन, ऑइस्टर, क्रेमिनि, एनोकी आदि शामिल हैं।  

खेती से एक कदम आगे बढ़कर, अब उनकी कंपनी  मशरूम से कई और प्रोडक्ट्स भी तैयार कर रही है। जिसमें अचार, कुकीज, नगेट्स, सूप, प्रोटीन पाउडर, चाय, कॉफी, पापड़ जैसे प्रोडक्ट्स शामिल हैं। साथ ही वह राज्य के टिहरी, पौड़ी और गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों में मशरूम उगाने में किसानों की मदद भी कर रही हैं। उनके फ्रेश मशरूम दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित कई दूसरे राज्यों तक जाते हैं। इतना ही नहीं, वह अपने ड्राई मशरूम विदेशों तक भेज रही हैं।  

हिरेशा ने बताया कि अब हम मेडिसिनल मशरूम की खेती भी कर रहे हैं। उनका अगला लक्ष्य तक़रीबन 5000 आदिवासियों, महिलाओं और ऐसे किसान जिनके पास जमीन नहीं हैं,  उनको मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देना है।    

बिल्कुल अलग क्षेत्र से होते हुए भी हिरेशा ने एक उद्यमी के तौर पर मशरूम उत्पादन में एक अलग मुकाम हासिल किया है। इतना ही नहीं, अपनी सोच और कुछ नया करने के इरादे से आज वह कई किसानों के लिए प्रेरणा भी बनी हैं।

आप हिरेशा या उनकी कंपनी के बारे में ज्यादा जानने के लिए उनकी वेबसाइट भी देख सकते हैं।

संपादनः अर्चना दुबे

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