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जानें, कैसे एक मजदूर की बेटी ने तय किया सरकारी स्कूल से इटली में पढ़ने जाने तक का सफर

sonali sahu (1)
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18 साल की सोनाली साहू, पिछले साल अपने स्कूल, ‘स्टडी हॉल फाउंडेशन’ के ‘स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम’ के तहत, छह महीने इटली में पढ़ाई करने के बाद भारत वापस लौटी हैं। वहां उन्होंने इटैलियन भाषा भी सीखी और कई विदेशी दोस्त भी बनाए। सोनाली और उनके परिवार के लिए यह उपलब्धि किसी सपने से कम नहीं है। 

यहां तक पहुंचने के लिए सोनाली ने कई मुसीबतों का सामना किया है। कुछ साल पहले तक तो, वह अपनी पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर हो गई थीं, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय, हालात से लड़ने का फैसला किया। सबसे अच्छी बात यह हुई कि सोनाली की पढ़ाई के प्रति लगन और जज्बे को उनके स्कूल की प्रिंसिपल ने समझा और उनका साथ दिया।

यह सहारा वैसा ही था, जैसे डूबते को तिनके का सहारा होता है। 

Sonali in Italy

सोनाली के पिता मज़दूरी का काम करते थे, जो कभी स्कूल गए ही नहीं। सोनाली की दो बहनें और एक छोटा भाई भी है। वह बचपन में गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाया करती थीं। गांव के उस माध्यमिक स्कूल से, उन्होंने आठवीं तक की पढ़ाई पूरी की है। सोनाली,  स्कूल के सबसे होनहार बच्चों में से एक थीं। न सिर्फ पढ़ाई, बल्कि संगीत, खेल और व्यवहार में भी वह दूसरों से काफी बेहतर थीं। बावजूद इसके, आठवीं के बाद उनके पिता ने उन्हें आगे पढ़ाई करने से मना कर दिया था। क्योंकि, गांव  में हाई स्कूल नहीं था और आगे शहर जाकर पढ़ाने के लिए उनके पिता के पास पैसे नहीं थे।  

इस कठिन स्थिति में, उनकी स्कूल प्रिंसिपल डॉ. अंजलि सिंह के साथ ने सोनाली की हिम्मत बढ़ाई।  

उन्होंने न सिर्फ सोनाली के माता-पिता को समझाया, बल्कि स्कूल की फीस भी देने का फैसला किया।

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डॉ. अंजलि कहती हैं, “सोनाली जैसे होनहार बच्चे जीवन में आगे बढ़ने और कुछ कर दिखाने के लिए पैदा होते हैं, लेकिन अगर उन्हें मौका ही न दिया जाए, तो यह उनके साथ नाइंसाफी होगी। वह मेरी बेटी के सामान है,  उसमें हमेशा कुछ सीखने की ललक रहती है। मुझे आज भी याद है,  एक बार एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए सोनाली, बुखार में भी पहुंच गई थीं।”

Sonali With Her Parents And Dr. Anjali Singh

मिला शहर की बड़े स्कूल में दाखिला 

डॉ. अंजलि ने ही सोनाली का एडमिशन लखनऊ के गोमतीनगर में स्टडी हॉल फाउंडेशन में  कराया। वह कहती हैं कि इस स्कूल को चुनने के पीछे एक कारण यह था कि यहां मेधावी बच्चों को अच्छी स्कॉलरशीप भी दी जाती है। 

यह स्कूल सोनाली के घर से 17 किमी दूर था और हर दिन बस या ऑटो से जाना सम्भव नहीं था। इसलिए सोनाली ने साइकिल चलाना सीखा, उनके साथ गांव की दो और बच्चियां भी इसी स्कूल में जाती थीं।  

बड़े स्कूल में सोनाली घबराई नहीं, बल्कि यहां भी अपनी काबिलियत से अलग पहचान बनाई। लखनऊ में उन्हें पढ़ाई के लिए ट्यूशन की जरूरत भी महसूस होती थी। उस दौरान वह शहर की ‘समर्थ संस्था’ से भी जुड़ीं, जहां गरीब बच्चों को इंग्लिश के साथ कंप्यूटर आदि की तालीम फ्री में दी जाती है। 

उन्हें आगे बढ़ने के रास्ते मिलते गए और वह आगे बढ़ती रहीं।  

साल 2020 में सोनाली को एक और मौका मिला, उन्हें अपने स्कूल से स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के लिए चुना गया। इसके जरिए उन्हें इटली में छह महीने पढ़ने जाना था। 

अपने पिता के साथ पासपोर्ट और वीसा का सारा काम, उन्होंने खुद संभाला और रोम तक की यात्रा अकेले की। 

आज वह पीछे मुड़कर देखती हैं और कहती हैं, “अगर मेरी स्कूल प्रिंसिपल, आठवीं के बाद मेरा बड़े स्कूल में दाखिला नहीं करवातीं, तो शायद मुझे जीवन में इतने मौके न मिलते। मैं हमेशा कोशिश करती हूँ कि जो विश्वास उन्होंने और मेरे माता-पिता ने मुझ पर दिखाया है उसे कायम रख सकूँ।” 

सोनाली अभी कुछ बच्चों को घर पर ट्यूशन पढ़ा रही हैं। साथ ही, वह एक और स्कॉलरशीप की तैयारी भी कर रही हैं। उनका सपना है कि वह भविष्य में भारतीय प्रशासनिक सेवा से जुड़कर, लोगों के लिए अच्छा काम करें। 

संपादनः अर्चना दुबे

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