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जानिए कैसे! बेंगलुरु के इस इंजीनियर ने घर को बनाया ‘अर्बन जंगल’, लगाए 1700+ पेड़-पौधे

Urban Jungle

घर के आँगन, छत या बालकनी में फल-सब्जियां उगाने वाले बहुत से बागवानी-प्रेमियों से हमने आपका परिचय कराया है। लेकिन आज जिस शख्स से हम आपको मिलवा रहे हैं, वह न सिर्फ बागवानी कर रहे हैं बल्कि उन्होंने अपने घर में ही एक घना जंगल बना दिया है। अपने इस जंगल को उन्होंने ‘आश्रम गार्डन्स अर्बन एवरग्रीन जंगल’ नाम दिया है। ‘अर्बन’ इसलिए क्योंकि, यह जंगल बेंगलुरु शहर में है और ‘एवरग्रीन’ इसलिए क्योंकि, उनका यह जंगल हमेशा हरा-भरा और फलता-फूलता रहता है। यह अर्बन जंगल (Urban Jungle) बेंगलुरु के रहने वाले, 58 वर्षीय नटराज उपाध्याय के घर में है। 

मूल रूप से कर्नाटक के उडुपी के पास पारमपल्ली से संबंध रखने वाले, नटराज एक किसान के बेटे हैं। स्कूल की पढ़ाई तक, वह अपने पिता के साथ रहे और खेती में उनका हाथ बंटाते रहे। आगे उन्होंने इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री ली। सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में उन्होंने न सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका में भी 10 वर्ष तक काम किया। वह बताते हैं, “मैंने अपनी पत्नी की खराब तबियत के कारण, साल 2008 में नौकरी से रिटायरमेंट ले ली थी। मेरी पत्नी को मेरी जरूरत थी और तब तक मैंने इतना कमा लिया था कि हम अपनी जिंदगी आराम से गुजार सकें। इसलिए, मैंने अपने करियर से रिटायरमेंट ले ली और घर-परिवार के साथ ज्यादा समय बिताने लगा।”

कैसे हुई शुरुआत: 

नटराज उपाध्याय अपने टेरेस गार्डन में

अपनी बागवानी की शुरुआत के बारे में नटराज कहते हैं, “हमारे घर के आँगन में जो खाली जगह है, वहाँ तो पहले भी पेड़-पौधे थे। लेकिन, छत पर बागवानी का ख्याल मुझे 2009-10 में आया। क्योंकि उन दिनों, गर्मियों में बेंगलुरु जैसे शहर में हमें कूलर की जरूरत महसूस होने लगी थी। इसलिए, मैंने सोचा कि क्यों न छत पर बागवानी की जाए ताकि घर के अंदर का तापमान थोड़ा कम हो जाये।” 

शुरुआत में, उन्होंने चावल के खाली पैकेट का इस्तेमाल पेड़-पौधे लगाने के लिए किया। उन्होंने फल, फूल, सब्जियां तथा औषधीय पौधे लगाना शुरू किया। लेकिन कुछ सालों बाद, उन्हें लगा कि उन्हें अपने बगीचे को जंगल के रूप में विकसित करना चाहिए। आज उनका यह जंगल तीन हिस्सों में फैला हुआ है- उनकी छत (1500 वर्ग फीट), उनके घर का आंगन (400 वर्ग फीट) और उनके घर के बाहर की खाली जगह (200 वर्ग फीट)। छत पर उन्होंने पुराने 55 लीटर के ड्रमों का इस्तेमाल किया है। 

वह कहते हैं, “मैंने छत के लिए अलग-अलग तरह की चीजें इस्तेमाल की जैसे- प्लास्टिक के पैकेट, ग्रो बैग आदि। लेकिन दो-तीन साल में ही ये जवाब देने लगते हैं। इसलिए, मैंने पुराने ड्रमों में पेड़ों को लगाया। आज मेरी छत पर 250 ड्रम हैं, जिनमें छोटे पौधों, झाड़ियों, बेलों से लेकर बड़े-बड़े पेड़ तक लगे हुए हैं। एक ही ड्रम में, अलग-अलग किस्म के कई पेड़-पौधे आपको मिल जाएंगे। मेरे जंगल में बहुत से नए-नए पौधे पनपते रहते हैं। मैं खुद हर महीने, अलग-अलग पौधे लगाता हूँ ताकि मेरा जंगल हमेशा हरा-भरा रहे।”

300 से ज्यादा किस्म के हैं पेड़-पौधे

उनके इस जंगले में 70 से भी ज्यादा बड़े पेड़ हैं, जिनमें पपीता, केला, बांस, मलबरी, अंजीर, इमली, मोरिंगा, कोरल वाइन, और मेक्सिकन सूरजमुखी आदि शामिल हैं। इसके अलावा, उनके यहाँ कुछ मौसमी सब्जियां और औषधीय पौधे भी लगे हुए हैं। वह बताते हैं कि जैसे-जैसे जंगल घना होता गया, मौसमी सब्जियां उगाना कम हो गया। क्योंकि, सब्जियों को अच्छी धूप की जरूरत होती है लेकिन, बड़े पेड़ों की वजह से छत पर धूप कम आती है। इसलिए, अब वह ऐसे पौधे लगाने पर ध्यान देते हैं, जो छांव में भी अच्छे से पनपते हैं। 

उनके यहाँ 1700 से भी ज्यादा पेड़-पौधे हैं और इस जंगल में आपको 50 से भी ज्यादा तरह के पक्षी, तितलियाँ और अन्य जीव-जंतु दिख जाएंगे। 

जैविक तरीकों से बनाया है जंगल

पेड़-पौधे उगाने के अपने तरीकों के बारे में वह कहते हैं कि उनका घर बहुत पुराना है। इसलिए, उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि छत पर ज्यादा वजन न हो। इसके लिए, वह मिट्टी की जगह सिर्फ खाद में ही अपने पेड़-पौधे उगाते हैं। खाद बनाने के लिए, वह अपने घर के गीले कचरे और अपने जंगल के सूखे पत्तों तथा टहनियों का इस्तेमाल करते हैं। उनका कहना है कि उनके घर से कोई भी जैविक कचरा बाहर नहीं जाता है बल्कि वह बाहर पड़े सूखे पत्तों को भी इकठ्ठा कर, खाद बनाने के उपयोग में लेते हैं। उन्होंने अपने घर में खाद बनाने के लिए, एक गड्ढ़ा बनाया हुआ है। इसके अलावा, वह गोबर और पानी के घोल के छिड़काव से पेड़ों को पोषण देते हैं। 

कीट नियंत्रण के लिए भी, अब उन्हें कुछ अलग से नहीं करना पड़ता है। वह कहते हैं कि उनके यहाँ अब बायोडाइवर्सिटी है। इसलिए, अब उन्हें कोई कीट प्रतिरोधक बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। क्योंकि, अब जंगल में प्रकृति खुद अपना संतुलन बना लेती है। अगर कभी उनके किसी पौधे पर कीट लग भी जाते हैं तो वह चिंता नहीं करते क्योंकि, उनके यहाँ आने वाले पक्षी इन कीटों को खा जाते हैं। 

आते हैं पक्षी, तितलियाँ और अन्य जीव

अपने इस ‘अर्बन एवरग्रीन जंगल’ के बारे में, वह अपने यूट्यूब चैनल पर लगातार वीडियो साझा करते रहते हैं। उन्होंने लगभग तीन साल पहले, अपने चैनल पर इस बगीचे के बारे में वीडियो पोस्ट करना शुरू किया था। इन वीडियो के जरिए, वह अपने जंगल में होने वाले हर तरह के बदलावों को साझा करते रहते हैं। साथ ही, उन्होंने फेसबुक पर अपना एक ग्रुप भी बनाया है, जिसके जरिए वह अपने जैसे ही प्रकृति-प्रेमी लोगों का एक समुदाय बनाने में सफल हुए हैं। इस ग्रुप से जुड़े लोग, अपनी बागवानी से सम्बंधित जानकारियां आदि साझा करते रहते हैं। 

वह कहते हैं, “सिर्फ जानकारी ही नहीं बल्कि हम एक-दूसरे के साथ बीज, पौधों की कटिंग आदि भी साझा करते हैं। 2018 से लेकर लॉकडाउन से पहले तक, मैंने अपने मैक्सिकन सूरजमुखी की लगभग दो हजार कटिंग लोगों को बांटी हैं। मैं और भी कई अलग-अलग पौधे और बीज तैयार करता रहता हूँ। मेरे लिए यह सिर्फ जंगल ही नहीं बल्कि नए पौधों की एक फैक्ट्री भी है। मेरे आस-पड़ोस के लोग भी कभी फूलों, कभी केला और पपीता के पत्तों के लिए तो कभी अलग-अलग तरह की जड़ी-बूटियां लेने के लिए आते रहते हैं।”

इन सिंद्धातों पर आधारित है जंगल:

नटराज कहते हैं कि इस जंगल को विकसित करने के पीछे, उनके अपने कुछ सिद्धांत हैं। वह इन सिद्धांतों की पूरा करके, प्रकृति और पर्यावरण के लिए अपना योगदान देना चाहते हैं।

सामने से कुछ ऐसा दिखता है उनका घर

उनके कुल 10 सिद्धांत हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: 

अंत में वह सिर्फ इतना ही कहते हैं, “अब हमारे घर का तापमान काफी कम रहता है। गर्मियों में भी हमें पंखा चलाने की जरूरत नहीं पड़ती है तथा सर्दियों में हमारा घर और भी ठंडा हो जाता है। इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि मैं शहर में रहते हुए भी, जंगल का आनंद ले पा रहा हूँ।” 

उनके जंगल के बारे में अधिक जानने के लिए आप उनका यूट्यूब चैनल देख सकते हैं और उनसे संपर्क करने के लिए उन्हें फेसबुक पेज पर मैसेज कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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