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…और ऐसे सीखा मैंने घर पर सब्जियाँ उगाना, शुक्रिया ‘द बेटर इंडिया’!

पूरी दुनिया इस समय एक बड़े संकट से गुज़र रही है। कोरोना वायरस ने हर किसी के सामने बंदिशों की एक लिस्ट रख दी है। एक तरफ हर रोज़ वायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या में इज़ाफा हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ डर, चिंता और तनाव का माहौल फैल रहा है। ऐसे में मेरे घर की छोटी सी बालकनी मुझे बेहद सुकून देने का काम कर रही है।

मेरी 10X4 फीट की बालकनी का एक कोना आजकल हरे पत्तेदार पौधों से भरा हुआ है। इन पौधों को देख कर न केवल मेरा मन तनाव-मुक्त और खुशी से भर जाता है बल्कि यह मुझे बताता है कि अगर कोशिश की जाए तो कोई काम नामुमकिन नहीं है।

पूजा अपने उगाये माइक्रोग्रीन्स के साथ

ऐसा नहीं है कि मुझे बागवानी का शौक हमेशा से रहा है। लेकिन जो थोड़ी-बहुत दिलचस्पी रही वह मुझे मेरे पिता से मिली। पिताजी को बागवानी का बेहद शौक रहा है। बचपन से ही हमने उन्हें अपने घर के किचन गार्डन में तरह-तरह की मौसमी सब्जियां और फल उगाते हुए देखा। लेकिन मेरे पिता के घर का जो किचन गार्डन था वह मेरी छोटी सी बालकनी से दस गुना से भी ज़्यादा बड़ा था। मुझे याद है कि गार्डन की मिट्टी खोदते और खाद मिलाते हुए पिताजी पसीने से तरबतर हो जाते थे। घंटों बैठ कर छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाते और एक-एक बीज को हाथों से लगाते थे। मेरे दिमाग में बचपन से एक बात घर कर गई थी कि बागवानी के लिए बहुत बड़ी जगह और बहुत सारी मेहनत की ज़रूरत होती है।

लेकिन ‘द बेटर इंडिया’ ने न केवल मेरा यह भ्रम दूर कर दिया बल्कि कोरोना के इस तनावपूर्ण माहौल में बागवानी करने के लिए प्रेरित भी किया है। द बेटर इंडिया में प्रकाशित कई कहानियों के ज़रिए मैंने ऐसे लोगों के बारे में जाना जो बड़े शहरों में अपने टैरेस पर बागवनी कर रहे हैं। मैंने जाना कि लोग न केवल फूल और छोटे पौधे बल्कि तरबूज़ तक उगाने में सक्षम हुए हैं, जिसके लिए एक विशेष जलवायु की ज़रूरत होती है। फिर एक दिन द बेटर इंडिया पर ही प्रकाशित हुई एक कहानी से मैंने विस्तार से जाना कि घर पर रसोई में इस्तेमाल होने वाले मसाले के डब्बों में उपलब्ध बीज ( मेथी, सरसो, मिर्च, धनिया आदी ) से भी हम छोटे-छोटे गमलों में पौधे उगा सकते हैं।

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पूजा की बालकनी में उगी मेथी

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द बेटर इंडिया पर उस लेख को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि एक कोशिश करनी चाहिए। बालकनी में गमले खाली पड़े थे। मैंने थोड़ी मिट्टी में खाद मिला कर गमले में भर दिया और अपने मसाले के डब्बे से थोड़ी सी मेथी और धनिया के बीज ले कर मिट्टी में डाल दिए। तीन दिन तक रोज़ पानी का छिड़काव किया। चौथे दिन सुबह जब मैंने बालकनी में कदम रखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। गमले में मेथी के छोटे-छोटे, हरे-हरे पत्ते नज़र आने लगे। उन पत्तों को देख कर मुझमें थोड़ा आत्मविश्वास जागा। मुझे लगा कि मैं भी रोज़ाना इस्तेमाल होने वाली हरी पत्तियां बालकनी में उगा सकती हूँ। मैंने गमलों में रोज़ाना पानी का छिड़काव जारी रखा। करीब सप्ताह भर में धनिए के पत्ते भी नज़र आने लगे। मेरा आत्मविश्वास थोड़ा और मजबूत हुआ।

कुछ इस तरह पूजा ने अपनी बालकनी में धनिया उगाई है

अब मेरा ध्यान माइक्रोग्रीन्स उगाने की तरफ गया। माइक्रोग्रीन्स विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। और मुझे लगता है कि आज के समय में जब स्वास्थ्य और इम्यूनिटी को लेकर हर कोई फिक्रमंद है, इसे डायट में शामिल करना और भी ज़रूरी हो गया है। हालांकि, लॉकडाउन से पहले मैं एक नामी ऑनलाइन कंपनी से माइक्रोग्रीन्स नियमित तौर पर मंगवाती थी। लेकिन कोरोना फैलने के साथ इस पर रोक लग गई।

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पूजा के उगाये मूंग माइक्रोग्रीन्स

‘द बेटर इंडिया’ पर मैंने कुछ लेख पढ़े और इंटरनेट पर थोड़ी रिसर्च की। मुझे लगा कि माइक्रोग्रीन्स उगाना शायद उतना मुश्किल नहीं है। मैंने साबूत मूंग को 12 घंटे पानी में भिगोया और अंकुरित होने पर एक छलनी में उसे फैला कर रखा। अब एक प्लेट में थोड़ा पानी डाला और मूंग वाली छलनी को प्लेट में रखा। उसे रसोईघर की खिड़की के पास रखा ताकि सूरज की रोशनी मिल सके। हर रोज़ प्लेट का पानी बदला। और बस हफ्ते भर में ही पूरी छलनी हरे-हरे मूंग माइक्रोग्रीन्स से भर गई। माइक्रोग्रीन्स उगाने में भी मैं पूरी तरह सफल रही।

इन पत्तों को देख कर मुझे जो सुखद अनुभव होता है उसे शायद मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती। अपनी इस छोटी सी सफलता को देखते हुए मैंने अपनी बालकनी में गमलों की संख्या बढ़ा दी है। कुछ और बीज लगाए हैं और मुझे पूरी उम्मीद है कि इनमें भी हरियाली छाएगी। हर सप्ताह नए बीज के साथ माइक्रोग्रीन्स उगाने का प्रयोग भी जारी है। इस नकारात्मकता भरे माहौल में सकारात्मकता की ओर ले जाने के लिए शुक्रिया ‘द बेटर इंडिया’।

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