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शहर में सब्जियां उगाकर गाँव भी भेजते हैं, लखनऊ के चौधरी राम करण

लखनऊ, उत्तर प्रदेश के ‘चौधरी राम करण’ का बचपन उन्नाव जिले के छोटे से गांव में बीता है। किसान के बेटे होने के नाते बचपन से ही उनका खेती-बाड़ी से विशेष लगाव रहा है। लेकिन साल 1980 में पढ़ाई के लिए शहर आ जाने के बाद, वह गांव से ही नहीं, बल्कि खेती से भी दूर हो गए थे। पढ़ाई और उसके बाद बैंक की नौकरी की वजह से, वह अपने बागवानी के शौक को समय नहीं दे पाते थे। राम करण साल 2018 में सिंडिकेट बैंक से रिटायर हुए थे। इसके बाद, उन्होंने बागवानी (Organic Farming on Terrace) को ज्यादा समय देना शुरू कर दिया। 

वह 34 साल तक लखनऊ के अपने पुराने घर में रहे। लेकिन, पिछले एक साल से वह अपने परिवार के साथ, लखनऊ के सुल्तानपुर रोड पर बने अपने नए घर में रह रहे हैं। यहाँ उनके घर के 1600 वर्ग फीट की छत का आधा हिस्सा, फल-सब्जियों और फूलों के गमलों से भरा हुआ है (Organic Farming on Terrace)। बैंक की नौकरी के सिलसिले में, उन्होंने कुछ साल मेरठ, अमरोहा और शाहजहाँपुर में भी बिताए हैं।

चौधरी राम करण ने साल 2004 में, लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर गोशाईंगंज के पास के एक गांव में एक स्कूल भी बनवाया है। लगभग दो बीघा जमीन में बने इस स्कूल को उन्होंने विशेष रूप से गांव के गरीब बच्चों के लिए बनवाया है। वह कहते हैं, “पिछड़े इलाके के गरीब बच्चों के लिए स्कूल बनाना, मेरे जीवन का एक सपना था।” उनकी बेटी रेनू चौधरी स्कूल की प्रबंधक हैं। उन्होंने स्कूल के कैंपस में भी आलू, प्याज, लहसुन आदि लगाए हुए हैं। साथ ही, उन्होंने वहां 18 आम और आठ आंवला के पेड़ों के साथ, जामुन, केला, नीम, शीशम जैसे कई पेड़ भी लगाए हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह बताते हैं, “वैसे तो मैं जहां भी रहा, कुछ न कुछ उगाते हुए बागवानी करता रहा। मैंने अपने पुराने घर में भी आम, कटहल, आंवला नीम के बड़े-बड़े पेड़ों के साथ, बैगन, टमाटर, मिर्च, धनिया, शिमला मिर्च जैसी अन्य सब्जियां लगाई हुई थी।” वह बताते हैं कि पुराने घर के चारों ओर काफी जगह थी, इसलिए राम करण वहां जमीन पर ही सब्जियां और विभिन्न पेड़-पौधे लगाया करते थे। लेकिन नए घर में जगह की कमी के कारण, उन्होंने छत पर ही सब्जियां उगाना शुरू कर दिया (Organic Farming on Terrace)। 

छत पर ही उगाते हैं 30+ सब्जियां 

राम करण कहते हैं, “पहले मैं नौकरी की वजह से बागवानी को बहुत कम समय दे पाता था। सुबह जल्दी उठकर पौधों की थोड़ी-बहुत देखरेख करता था। लेकिन, अब रिटायरमेंट के बाद मैं बागवानी को पूरा समय दे पाता हूँ।”
वह यूट्यूब और गांव से आने-जाने वाले अपने कुछ दोस्तों से, बागवानी से संबंधित जानकारियां लेते रहते हैं। हाल ही में, उन्होंने यूट्यूब से परवल उगाना भी सीखा है। वह बड़ी ख़ुशी के साथ बताते हैं कि परवल के फूल अब खिलने लगे हैं, कुछ दिनों में उनके यहां परवल भी उग जायेंगी। 

उन्होंने बताया कि छत पर पालक, पत्तागोभी, शिमला मिर्च, ग्वारफली, टमाटर, लोबिया, चौलाई के साथ, अन्य 30 प्रकार की सब्जियां मौसम के हिसाब से लगाई जाती हैं। फिलहाल, उनकी छत पर हर हफ्ते दो किलो पालक उगती है। पिछली ठंड में, उन्होंने 12 से 15 किलो ब्रोकली भी उगाई थी। राम करण हमेशा घर पर उपलब्ध चीजों से ही बागवानी करते हैं। वह पौधे लगाने के लिए, घर में पड़े पुराने डिब्बों, सीमेंट की बोरियों तथा कोल्ड ड्रिंक की बोतलों का उपयोग करते हैं। 

वह बताते हैं, “कोल्ड ड्रिंक की बोतलों में शिमला मिर्च, टमाटर आदि पौधे बहुत अच्छे से उगते हैं।” जैविक तरीके से सब्जियां उगाने के लिए वह मिट्टी में वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करते हैं। वह घर में उपयोग के बाद बचे फल-सब्जियों के छिलकों का उपयोग भी खाद बनाने के लिए करते हैं। 

जरूरत से कहीं ज्यादा उगती हैं सब्जियां 

राम करण की पत्नी, कमला चौधरी बताती हैं कि उनके यहां, उनकी खपत से ज्यादा सब्जियां उगती हैं। इसलिए, वह अपने पड़ोसियों तथा घर पर आये मेहमानों को सब्जियां बांट देती हैं। वह कहती हैं, “जब से हमने घर पर सब्जियां उगानी शुरू की हैं, हमें बाजार से लायी सब्जियों का स्वाद पसंद ही नहीं आता।”
उन्होंने बताया कि जहां उनकी छत पर लगभग सारी सब्जियां उग जाती हैं, वहीं आलू, प्याज और लहसुन उनके स्कूल में उग जाते हैं। इसलिए, उन्हें बाहर से कुछ खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ती। 

वहीं फलों  की बात करें, तो उनके छत पर गमले में ही पपीता और अमरूद के पेड़ लगे हुए हैं। साथ ही, इसी साल पुराने घर में लगे आम के पेड़ों से लगभग दो क़्वींटल आम की उपज मिली है। वह समय-समय पर पुराने घर में लगे कटहल, आम और अमरूद के पेड़ो की देखभाल करने के लिए जाते रहते हैं। राम करण बताते हैं, “पिछली ठंड में हमने 15 किलो लहसुन उगाये थे, जिन्हें हमने अपने गाँव में भी भेजा था।”  

हाल ही में, उन्होंने अपने स्कूल कैंपस में लगाने के लिए 250 पौधे मंगवाएं हैं, जिनमें महोगनी, सागवान, नीलगिरी और चन्दन जैसे पेड़ शामिल हैं। 

वह मानते हैं कि हम सभी अपने घर में उपलब्ध जगह के अनुसार सब्जियां उगा सकते हैं। उनकी बागवानी से प्रभावित होकर, उनके कई पड़ोसी भी उनसे सब्जियां उगाने के नुस्खे लेने आते हैं। अंत में वह कहते हैं, “जब आप एक बार अपने हाथों से उगाई सब्जियां खाएंगे, तो बाज़ार से खरीदी हुई सब्जियों का स्वाद भूल जाएंगे।”

संपादन – प्रीति महावर

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