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घर पर छोटा जंगल किया तैयार, छत पर लगा दिए 2500 बोनसाई

bonsai garden

अपने घरों में हरे-भले माहौल को कौन पसंद नहीं करता। लोग बड़े शौक के साथ अपने घर में गमले लाकर उनमें पौधे लगाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। आज हम गार्डनगिरी में आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे बुजुर्ग से मिलवाने जा रहे हैं, जो अपनी छत पर बोनसाई तकनीक से बागवानी कर रहे हैं।

जबलपुर के रहने वाले 71 वर्षीय सोहन लाल द्विवेदी पिछले 39 साल से बागवानी कर रहे हैं। उन्होंने लंबे समय तक मध्य-प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम किया। रिटायरमेंट के बाद वह अपना अधिकांश समय गार्डन में गुजारते हैं। उनकी बागवानी की खास बात यह है कि वह खुद बोनसाई तैयार करते हैं। 

सोहन लाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैंने पहली बार साल 1982 में एक अख़बार में बोनसाई के बारे में पढ़ा था। एक खबर छपी थी कि मुंबई की किसी महिला ने अपनी छत पर 250 बोनसाई लगाए हुए हैं। इस खबर को पढ़ने के बाद, बोनसाई के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ गई। इसलिए मैं खासतौर पर दिल्ली गया और वहां एक बोनसाई क्लब में जाकर इसके बारे में जानकारी ली। मुझे पता चला कि ‘बौने पेड़ों’ को बोनसाई कहते हैं और यह एक तकनीक है, जिससे पेड़ों को ऐसा रूप दिया जाता है। फिर पता चला कि बोनसाई तकनीक के बारे में किताबें भी मिलती हैं।” 

लेकिन सोहन लाल जब किताबें खरीदने पहुंचे तो ये बहुत महंगी थी। उस समय उनके घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह एक किताब पर पांच सौ-हजार रुपए खर्च करते। लेकिन बोनसाई सीखने के प्रति उनका जूनून इतना था कि उन्होंने लगभग पांच-छह महीने तक अपने घर के खर्चों में बचत करके किताब खरीदी। किताबों से ही उन्होंने बोनसाई बनाने की तकनीक सीखी और खुद अपने घर में बोनसाई बनाना शुरू किया। 

Sohan Lal

देखते ही देखते बना दिए 2500 बोनसाई 

सोहन लाल ने बताया कि शुरुआत में बोनसाई तकनीक पर हाथ नहीं बैठा था और इसलिए वह सिर्फ एक्सपेरिमेंट कर रहे थे। लेकिन धीरे-धीरे वह परिपक्व होते गए और उन्होंने मौसमी, नारंगी, संतरा, बरगद, पीपल, बेर, कैक्टस, नींबू, जैड, समेत कई सजावटी पौधों के भी बोनसाई तैयार किए। आज उनकी छत पर 40 तरह के 2500 बोनसाई हैं। ये सभी बोनसाई उन्होंने खुद ही तैयार किये हैं। इसके अलावा, कुछ बोनसाई वह समय-समय पर लोगों को उपहार में भी देते हैं। 

बोनसाई के प्रति सोहन लाल का प्रेम इतना अधिक था कि उनके महीने की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा इनके रख-रखाव में ही जाता था। लेकिन उनका परिवार उनके इस पैशन को समझता था इसलिए उन्हें कभी भी किसी ने रोका नहीं। उन्होंने बताया, “मेरे विभाग के बड़े अधिकारियों से लेकर जिला कलेक्टर तक ने मेरे काम की तारीफ की। उस वक्त के जिला कलेक्टर को जब पता चला कि मैं खुद बोनसाई तैयार करता हूँ तो वह मेरे घर बोनसाई देखने आए थे।” 

सोहन लाल कहते हैं, ” जिला कलेक्टर मेरी कला से इतने प्रभवित हुए कि उन्होंने मुझे दूसरे लोगों को भी यह तकनीक सिखाने के लिए कहा। उन्होंने मेरे लिए वर्कशॉप का प्रबंध कराया, जिसमें 11 लोग शामिल हुए थे। इसके बाद मुझे और भी बहुत सी जगह बोनसाई के बारे में बताने और सिखाने के लिए बुलाया जाने लगा।” 

Bonsai

बोनसाई ने सोहन लाल को एक अलग पहचान दी। यहां तक कि उन्हें हैदराबाद के भी एक संगठन द्वारा बोनसाई वर्कशॉप के लिए बुलाया गया था। वह कहते हैं, “आज सामान्य लोगों से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी भी मेरे काम की प्रशंसा करते हैं तो अच्छा लगता है।”

उनके बगीचे में चार इंच से लेकर तीन फ़ीट तक के बोनसाई हैं। कुछ बोनसाई तो 30 साल पुराने हैं। डेढ़ से दो फ़ीट तक के फलों के बोनसाई पेड़ पर खूब फल भी आते हैं। सोहन लाल कहते हैं कि उनका छत बोनसाई का मिनी-जंगल लगता है। सुबह से शाम तक वह अपने बोनसाई की सेवा में लगे रहते हैं। बोनसाई बनाने के साथ-साथ वह अब तक लगभग 400-500 लोगों को बोनसाई की तकनीक भी सिखा चुके हैं। 

बोनसाई से जुड़ी कुछ बातें 

सोहन लाल बोनसाई बनाने की तकनीक के बारे में बताते हैं कि इसके लिए वह तीन से चार फ़ीट का पेड़ लेते हैं। वह इस पेड़ की समय-समय पर कटाई-छंटाई करते रहते हैं ताकि इसकी लंबाई न बढ़ सके। “पहले तो पेड़ बड़े गमले में और सामान्य मिट्टी में ही रहता है। धीरे-धीरे इस पर प्रक्रिया शुरू की जाती है। कटाई-छंटाई की जाती है और इसकी टहनियों को एक-दूसरे के साथ तारों से बांधा जाता है ताकि ये ज्यादा न फैले। कुछ समय बाद, पौधे की सिर्फ उम्र बढ़ती है और यह मजबूत होता है। लेकिन इसका आकार वैसा ही होता है, जैसा कि हमने दिया है।” 

उनका कहना है कि एक पौधे को बोनसाई के रूप में विकसित करने में लगभग दो साल का समय लगता है। साथ ही, बोनसाई को लगाने के लिए प्लेट के आकार के गमले होते हैं, इनमें इन्हें रिपोट करके लगाया जाता है। लेकिन बोनसाई को हमेशा ऐसे मौसम में रिपोट करना चाहिए, जब हवा में नमी हो। इसलिए बारिश शुरू होने से पहले का मौसम इसके लिए उपयुक्त है। बोनसाई को ‘बोनसाई प्लेट’ में लगाने के बाद कम से कम एक महीने तक छांव में रखा जाता है। इसके बाद, इसे सीधी धूप में रखना चाहिए। 

बात अगर बोनसाई के लिए पॉटिंग मिक्स की करें तो सोहन लाल कहते हैं, “मैं सिर्फ तीन चीजें लेता हूँ- ईंट के छोटे-छोटे टुकड़े, गोबर के उपलों के टुकड़े और चिकनी मिट्टी। इन तीनों चीजों को मिलाकर तीन तरह का मिक्स तैयार करते हैं। पहले, ईंट और उपलों के टुकड़ों को तोड़कर चने के आकार के जितना किया जाता है। इसी तरह चिकनी मिट्टी के भी छोटे-छोटे कंकड़ तैयार करते हैं। यह पहले तरह का मिक्स है जो बोनसाई प्लेट में सबसे नीचे डाला जाता है। इसके ऊपर, दूसरी तरह का मिक्स डाला जाता है। इसके लिए, ईंट, उपले और मिट्टी के गेहूं के दाने के आकार के टुकड़े लिए जाते हैं। दूसरी परत के बाद, तीसरी परत एकदम महीन सॉइल मिक्स की होती है।” 

वह कहते हैं कि ईंट के टुकड़े लम्बे समय तक नमी बनाये रखते हैं। उपलों से पौधों को पोषण मिलता है और चिकनी मिट्टी पौधों को हिलने नहीं देती है। इसके अलावा, बोनसाई के पौधों को समय पर पानी देना चाहिए ताकि ये सूखे नहीं। “अगर कोई बोनसाई बनाना सीखना चाहता है तो उन्हें अपना समय और ध्यान इस तकनीक को देना होगा। इसके लिए आपको बहुत से एक्सपेरिमेंट करने पड़ते हैं। इसलिए अगर आप सीखना चाहते हैं तो पूरे दिल से मेहनत करें,” उन्होंने अंत में कहा। 

यकीनन, बोनसाई के प्रति सोहन लाल का प्रेम काबिल-ए-तारीफ है और हमें उम्मीद है कि बहुत से लोगों को उनसे प्रेरणा मिलेगी। 

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संपादन- जी एन झा

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