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छत पर टैपिओका से लेकर अंगूर तक उगाते हैं IIT के यह प्रोफसर

IIT Hyderabad

कहा जाता है कि जिन्हें बागवानी का शौक होता है, उन्हें बस जगह चाहिए, वह कुछ भी उगा सकते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी आईआईटी के एक प्रोफेसर की है, जिन्होंने अपनी छत पर पेड़-पौधों की दुनिया बसा दी है।

साल 2019 में, आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर दीपक जॉन मैथ्यू ने अपने घर के बगीचे में टैपिओका लगाया। इसके करीब 8 महीने बाद, उन्हें 24 किलो टैपिओका की फसल मिली, जो औसतन 6 किलो के अनुमानित उपज से चार गुना ज्यादा था।

लेकिन, दीपक का कहना है कि उन्हें यह उपज इत्तेफाक से मिली।

मूल रूप से केरल के रहने वाले दीपक, आईआईटी हैदराबाद में डिजाइन विभाग के हेड हैं और उनका अधिकांश समय आभासी दुनिया में बीतता है।

एक फोटोग्राफर और आर्टिस्ट के तौर पर, उनका जीवन छात्रों को वर्चुअल रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फिल्म मेकिंग की सीख देने में गुजरती है।

दीपक की छत पर उगे फल और सब्जियाँ

लेकिन, सुबह और छुट्टियों के मौके पर, वह अपना समय अपने 200-यार्ड के टैरेस गार्डन में गुजारते हैं।

50 वर्षीय दीपक कहते हैं, “टैपिओका, केरल की एक मुख्य फसल है। मुझे थेक्कडी से कुछ स्टिक मिली। जिसे मैंने मिट्टी में लगा दिया और इसकी सिंचाई करते रहे। मैं अपने बगीचे में टैपिओका की एक बड़ी जड़ को देख कर हैरान था। मैंने इसे पूर्णतः जैविक तरीके से उगाया।”

ग्रोइंग बैग में दो दर्जन सब्जियाँ

टैपिओका के अलावा, दीपक अपने टैरेस गार्डन में करीब दो दर्जन सब्जियों की भी बागवानी करते हैं। 

इसे लेकर वह कहते हैं, “मेरे पास कुछ मौसमी सब्जियाँ हैं, तो कुछ सालों भर बढ़ने वाले। मैं इसके लिए ग्रोइंग बैग का इस्तेमाल करता हूँ। मैं पौधों के लिए जैविक खाद और कोकोपीट का इस्तेमाल करता हूँ। इससे मिट्टी हल्की हो जाती है और इसे लिफ्ट करना आसान हो जाता है।”

आज दीपक अपने छत पर गोभी, पत्तेदार सब्जियाँ, बीन्स, लौकी, करेले, गाजर, मिर्च, टमाटर और बैंगन जैसी कई सब्जियों को उगाते हैं। उनका कहना है कि  20 किलो के चावल का बैग, बड़े पौधों को उगाने के लिए पर्याप्त है।

दीपक कहते हैं कि उनके परिवार के लिए करीब 70% सब्जियों की जरूरतें उनकी टैरेस गार्डन से पूरी हो जाती है। वहीं, कॉम्पैक्ट स्पेस में वह अंगूर और अनार जैसे फलों की भी बागवानी करते हैं।

वह हँसते हुए कहते हैं, “हमें अपने बगीचे में उगे फल न के बराबर खाने को मिलते हैं, क्योंकि गिलहरियाँ, तोते और कई अन्य पक्षी हमारे हमारे फलों को खा जाते हैं। लेकिन, मैं उन्हें खाने देता हूँ, क्योंकि इसमें कोई बुराई नहीं है।”

बचपन से ही रहा है शौक

इतने बड़े पैमाने पर टैरेस गार्डनिंग करने के कारण, दीपक का छत साँप, कीड़े, तितलियों, मधु मक्खियों और कई अन्य बिन बुलाए मेहमानों का घर है।

“मैं अपने पेड़-पौधे पर किसी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करता हूँ, ताकि पक्षियाँ मेरी उपज को खा सकें। हमें साँपों से थोड़ा सावधान रहना पड़ता है, लेकिन बगीचे में आने वाले 90% मेहमान जहरीले नहीं होते हैं। मैं कभी-कभी नीम ऑयल का स्प्रे करता हूँ, ताकि पौधों को छोटी-मोटी बीमारियों से बचाया जा सके,” दीपक कहते हैं।

दीपक कहते हैं, “मुझे बचपन से ही पेड़-पौधों से खास लगाव रहा है। मेरा परिवार थेक्कडी वन्यजीव अभयारण्य के पास रहता है। मेरे दादाजी और पिता जी, घर पर हमेशा सब्जियाँ उगाते थे और मैं भी ऐसा ही कर रहा हूँ।”

साल 2014 में, दीपक आईआईटी में काम करने के लिए हैदराबाद आ गए। शुरुआती दिनों में वह एक अपार्टमेंट में रहते थे। जल्द ही, उन्होंने अपने लिए एक बड़ा घर ढूंढ लिया और बागवानी के लिए घर के चारों ओर के सभी कंक्रीट पेवमेंट और फ्लोरिंग को हटा दिया।

वह बताते हैं, “इससे पानी को जमीन के अंदर भेजने में मदद मिलती है। यहाँ तक कि बाढ़ और भारी बारिश के दौरान भी, मेरे घर में पानी का जमाव नहीं हुआ था।”

दीपक से प्रेरित होकर, उनके कई साथियों और छात्रों ने भी घर में बागवानी शुरू की।

चारों तरफ से पेड़-पौधों से घिरा है दीपक का घर

सुमन सोम, ऐसी ही एक ही पीएचडी की छात्रा हैं, जिन्होंने उनसे प्रेरणा लेकर बागवानी शुरू की।

वह बताती हैं, “मैं दीपक को पिछले 4 वर्षों से जानती हूँ, उन्हें बागवानी से बेहद लगाव है। इसमें रुचि दिखाने के बाद, उन्होंने मुझसे भिंडी, बैंगन, पान के पौधे साझा किए और छोटे पैमाने पर बागवानी शुरू करने की सलाह दी।”

वह आगे कहती हैं, “मेरे पति को फूलों को उगाने में खासी दिलचस्पी है। अब हम दोनों का मिश्रित पौधा है, जिससे हमारा घर काफी सुंदर दिखता है।”

अंत में दीपक कहते हैं, “लोगों को लगता है कि छत पर कुछ नहीं उग सकता है। लेकिन, मेरे सहकर्मी और छात्र, जब हमारे घर आते हैं, तो वह छत पर गोभी, आदि फसलों को देखकर हैरान रह जाते हैं। मैं उनसे अपने उत्पादों को भी साझा करता हूँ। इससे उन्हें इस तरीके से बागवानी करने की प्रेरणा मिलती है।”

मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE

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संपादन: जी. एन. झा

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