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बेंगलुरु: साग-सब्जियों के साथ केला, अनानास, और सीताफल जैसे पेड़ भी मिलेंगे इनकी छत पर

बेंगलुरु के विद्यारन्यपूरा में रहने वाली 39 वर्षीया अश्विनी गजेन्द्रन पिछले 3 सालों से अपने घर की छत पर गार्डनिंग कर रहीं हैं। अपने टैरेस गार्डन में अश्विनी साग-सब्जी, फल-फूल और औषधीय पौधे उगा रही हैं। उनकी रसोईघर की ज़्यादातर ज़रूरतें टैरेस गार्डन से पूरी हो जाती हैं। बहुत ही कम उन्हें बाहर से कुछ खरीदना पड़ता है।

अश्विनी ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरी गार्डनिंग की शुरूआत टमाटर के दो-चार पौधों से हुई थी। लेकिन इसके बाद कभी लगा ही नहीं कि अब बस काफी है। एक के बाद एक चीजें उगाने का और एक्सपेरिमेंट करने की इच्छा होती ही रही। ऐसे ही करते -करते आज हम इस स्टेज पर पहुँच गए हैं कि बाहर जाने की ज़रूरत न के बराबर पड़ती है।”

पहले वह अपने परिवार के साथ मल्लेश्वरम में रहतीं थीं। वहाँ घर के करीब ही बाजार था, जिस वजह से साग-सब्जी की कभी दिक्कत नहीं हुई लेकिन कुछ साल पहले उन्होंने विद्यारन्यपूरा पोस्ट के सिम्हादरी इलाके में घर बनाया। यह इलाका शहर के आउटर में स्थित है और यहाँ नजदीक में बाजार भी नहीं है, जिस वजह से अश्विनी को काफी समस्या होने लगी। यहाँ उन्हें बाज़ार से एक साथ सब्जियां लानी पड़ती थीं और अगर कभी कुछ न हो घर में तो बाहर जाने से पहले चार बार सोचना पड़ता था।

Ashwini Gajendran

“तब पहली बार दिमाग में आया कि घर में कुछ बेसिक पेड़-पौधे जैसे टमाटर, मिर्च होने चाहिए ताकि जब ज़रूरत हो तो घर में ये चीजें उपलब्ध हो जाएं। घर में नीचे कहीं जगह नहीं थी इसलिए मैंने छत पर ही टमाटर के पौधे लगा दिए,” उन्होंने आगे कहा।

अश्विनी आज अपनी लगभग 800 स्क्वायर फीट की छत पर गार्डनिंग कर रहीं हैं। उनकी गार्डनिंग में उनका परिवार पूरा साथ देता है और इसलिए उन्हें कभी कोई हेल्पर रखने की ज़रूरत भी महसूस नहीं हुई। अपने सैकड़ों पेड़-पौधों की देखभाल अश्विनी अपने काम के साथ-साथ कर रही हैं।

उनके पति के. गजेन्द्रन का अपना बिज़नेस है और अश्विनी भी उनके साथ ही बिज़नेस में हाथ बंटाती हैं। बहुत बार तो उन्हें सुबह जल्दी जाना होता है और रात को देर से आती हैं। फिर भी उन्होंने कभी नहीं सोचा कि वह गार्डनिंग न करें। अश्विनी कहतीं हैं, “गार्डनिंग अब हमारी लाइफस्टाइल का हिस्सा है। यह कोई एक्स्ट्रा काम नहीं है बल्कि यह अपने उपर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे देखते हैं। मैं कितनी भी व्यस्त रहूँ, बागवानी के लिए समय निकाल ही लेती हूँ।”

गार्डनिंग के साथ-साथ अश्विनी कम्पोस्टिंग भी करतीं हैं। उनके घर से कोई गीला या फिर गार्डन का कचरा बाहर नहीं जाता है। वह सभी कुछ उपयोग में लेकर खाद बना लेती हैं।

her garden

” मैं कुछ गार्डनिंग ग्रुप्स से भी जुड़ी हुई हूँ। इन समूहों से काफी मदद मिलती है। एक तो हम सभी सदस्य छोटे-बड़े पौधे आपस में शेयर करते हैं। पौधों के साथ-साथ हमारा एक बीज बैंक भी बनने लगा है। हम सब अपने यहाँ से सब्जियों और फलों के बीज इकट्ठा करते हैं। फिर जैसे जिस सदस्य को ज़रूरत होती है हम आपस में बाँट लेते हैं। इससे हमें बाहर बाज़ार से बीज खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ती है,” उन्होंने बताया।

पेड़-पौधों की बात करें तो अश्विनी के टैरेस पर बीन्स, टमाटर, मिर्च, कद्दू, लौकी, पेठा, मूली, आलू, करी पत्ता, शिमला मिर्च, तोरी, भिन्डी, करेला, बैंगन, अदरक, हल्दी, यम, टोपिका, बंद गोभी, फूल गोभी, चकुंदर, मोरिंगा, अनानास, अनार, अमरुद,अंजीर, आम, चीकू, आंवला, मौसम्बी, निम्बू, संतरा, सीताफल और स्ट्रॉबेरी जैसे फल भी आपको दिख जाएंगे।

गार्डनिंग से उनके परिवार को ताज़ा और जैविक सब्जियां-फल तो मिल ही रहे हैं। साथ ही, उनका किचन में सब्ज़ियों का खर्च भी बहुत ही कम हो गया है। अश्विनी कहतीं हैं कि अगर अच्छी जगह से ताज़ी सब्जियां खरीदी जाएं तो महीने भर में आराम से 4-5 हज़ार रुपये खर्च हो जाते हैं। लेकिन अब उनका खर्च बहुत कम हो गया है क्योंकि वह टैरेस गार्डन में हर मौसम की सब्जी उगा लेती हैं।

गार्डनिंग की शुरूआत करने वालों के लिए अश्विनी कुछ टिप्स साझा कर रही हैं:

“मैंने अपने पौधों की व्यवस्था ऐसी की है कि बहुत ही कम पेस्ट की समस्या होती है। बहुत से पौधे आपके गार्डन में कीड़ों को दूर रखने का काम भी करते हैं। लेकिन यह आपको करते-करते समझ में आएगा,” अश्विनी ने आगे बताया।

घर में लगा एक छोटा-सा गार्डन भी आपके लिए कितना फायदेमंद हो सकता है इसका उदहारण खुद अश्विनी हैं। वह कहतीं हैं कि उनके गार्डन का असल महत्व तब सामने आया जब लॉकडाउन के दौरान उन्हें एक दिन भी साग-सब्जी खरीदने बाहर नहीं निकलना पड़ा। लॉकडाउन के दौरान जहाँ लोग साग-सब्जियां लेने के लिए कतारों में खड़े थे, वहीं अश्विनी के गार्डन ने उन्हें लगभग ढाई-तीन महीने तक 10 लोगों के लिए साग-सब्जियां दी हैं।

लॉकडाउन में अश्विनी, उनके पति और दो बच्चों के अलावा उनके माता-पिता भी उनके पास रहने आ गए थे। इसके साथ ही, उनके यहाँ काम करने वाली तीन लड़की कर्मचारियों को भी उन्होंने अपने घर पर जगह दी थी।

“उन लड़कियों के माता-पिता लॉकडाउन शुरू होने से एक-दो दिन पहले ही अपने गाँव लौटे थे। लेकिन बाद में ये लड़कियां गाँव नहीं जा पाई। ऐसे में हमने उन्हें अपने घर में हीं रहने के लिए जगह दे दी। इस तरह से हम कोई 9-10 सदस्य थे और सभी के लिए साग-सब्जियां हमारे गार्डन से ही पूरी हुई। एक दिन भी हमें सब्जी खरीदने नहीं जाना पड़ा”, अश्विनी ने अंत में कहा।

अश्विनी से संपर्क करने के लिए आप उन्हें फेसबुक के ज़रिए संपर्क कर सकते हैं!

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