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मात्र 59 स्क्वायर फीट जगह में, बिना पर्याप्त धूप के साग-सब्जियां उगा रहीं हैं यह AI इंस्ट्रक्टर

बेंगलुरु में रहने वाली अपर्णा सुर्वे टैगोर, प्रोफेशनल तौर पर एक एडूटेक कंपनी में काम करतीं हैं। वह एक IoT, रॉबोटिक्स, और AI इंस्ट्रक्टर हैं। टेक्निकल क्षेत्र में अपर्णा जितनी आगे हैं, उतना ही कला से उनका गहरा नाता है। वह एक आर्टिस्ट हैं और साथ ही, गार्डनिंग भी करतीं हैं। अपर्णा पिछले 12 सालों से गार्डनिंग कर रही हैं और वह भी अपने फ्लैट की दो छोटी-छोटी बालकनी में।

उनकी एक बालकनी 40 sq.ft. की है तो एक मात्र 19 sq.ft. की। एक तरफ जहां लोग गार्डनिंग के नाम पर जगह की कमी के बारे में बातें करते हैं, वहीं अपर्णा अपने घर की सिर्फ 59 स्क्वायर फीट जगह में ही अपने गार्डनिंग के शौक को पूरा कर रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने शौक के नाम पर सिर्फ दो-चार पौधे नहीं लगाए हैं, बल्कि वह तो फूल, पत्तेदार साग और सब्ज़ियां तक उगा रही हैं।

अपनी गार्डनिंग के बारे में द बेटर इंडिया से बात करते हुए अपर्णा ने बताया, “मुंबई और बेंगलुरु जैसे मेट्रो शहरों में रहते हुए बाज़ार से ताज़ा और पौष्टिक सब्ज़ियाँ मिल पाना बहुत ही मुश्किल है। दूसरा, अक्सर वक़्त की कमी के कारण हम एक साथ ही हफ्ते भर की सब्ज़ियां खरीद लेते हैं, जो फ्रिज में रखी जाती है। इस तरह से हम कभी भी ताज़ा फल और सब्ज़ियाँ नहीं खा पाते और इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। बस इसलिए मुझे हमेशा लगता है कि हमें खुद कुछ न कुछ उगाना चाहिए ताकि हम खुद को और अपने परिवार को थोड़ा ही सही, लेकिन पोषण से भरपूर चीजें खिला सकें।”

अपने परिवार के पोषण और स्वास्थ्य के साथ-साथ गार्डनिंग अपर्णा के लिए अपने मन को शांत रखने का एक ज़रिया भी है। इससे उन्हें अपनी भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में भी कुछ पल सुकून और आत्म-संतोष के मिलते हैं।

Aparna and her kids

दूसरे फ्लोर पर रहकर बालकनी गार्डनिंग करने वाली अपर्णा के लिए बड़ी-बड़ी इमारतों के बीच जरा-सी जगह में सब्जियां उगाना आसान नहीं है। लेकिन इन सब परेशानियों को पार कर वह सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान देती हैं। उनका लक्ष्य जितना भी हो सके, खुद अच्छा और स्वस्थ खाना उगाना है और वह उगातीं भी हैं।

अपर्णा अपने गार्डन में लेमनग्रास, थाई तुलसी, अजवाइन, सौंफ, तुलसी, पुदीना, निम्बू के साथ पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, और धनिया उगा रहीं हैं। फलों और सब्जियों में वह अरबी, आलू, करेला, टमाटर, बीन्स, हरी मिर्च, लहसुन, और खरबूज आदि उगातीं हैं। गेंदे, जैस्मिन, वाइट जिंजर लिली, और गुलाब जैसे फूल भी उनकी बगिया में आपको मिल जायेंगे। इस सबके साथ ही, जब मौसम की वजह से उनके यहाँ सब्जियां उगाने में परेशानी होती है तो वह अपनी बालकनी में माइक्रोग्रीन्स उगातीं हैं।

पौधे उगाने के लिए अपर्णा अपने किचन से मेथी और धनिया के बीज लेती हैं। अपने गार्डन से मिलने वाली उपज जैसे करेला, गेंदा, तुलसी, हरी मिर्च के बीज भी वह इकट्ठा करके फिर से इस्तेमाल करतीं हैं। अपने घर के गीले कचरे जैसे फल और सब्जियों के छिलकों को भी वह कभी कचरे में नहीं फेंकती हैं।

Her Microgreens and Chilli

“सीधे ज़मीन पर उगने वाले पौधों की तुलना में गमले में उगे पौधों में पोषण की कमी हो सकती है। इसलिए मैं फलों के छिलकों और प्याज के छिलकों से ‘लिक्विड बायो एंजाइम’ बनातीं हूँ। इन्हें पौधों में स्प्रे करने से उन्हें ज़रूरी पोषण मिलता है और मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है,” अपर्णा ने बताया।

वह अपने घर में ही खाद भी बनाना चाहतीं हैं लेकिन जगह की कमी के कारण वह यह कर नहीं पा रहीं हैं। खाद के लिए वह जैविक विकल्पों पर ही निर्भर हैं। वह बाज़ार से वर्मीकम्पोस्ट खरीदतीं हैं। अपर्णा कहतीं हैं कि उनके यहाँ पेस्ट-मैनेजमेंट की बहुत ज़रूरत होती है। बालकनी गार्डनिंग की वजह से खुली और सीधी धूप पौधों को कुछ समय के लिए ही मिलती है। इसलिए अपर्णा कीड़ों का ध्यान रखतीं हैं और तरह-तरह के जैविक पेस्टिसाइड बनातीं हैं।

इसके लिए वह नीम का तेल और घर पर बनाया मिर्च का पेस्ट इस्तेमाल करतीं हैं। लेकिन फिर भी कई बार कीड़े उनकी सब्जियां खराब कर देते हैं। एक बार उन्हें अपने आलू के पेड़ गार्डन से निकालने पड़े क्योंकि उनमें कीड़े लग गए थे। उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो गई, पर अपर्णा ने हार नहीं मानी। वह कहतीं हैं कि ये छोट-छोटी असफलताएं आपकी राह की रुकावट नहीं बन सकतीं हैं। अगर आपने मन में कुछ ठाना हुआ है तो कोई भी परेशानी आपको नहीं रोक सकती है।

Her Balcony Garden

अपर्णा की गार्डनिंग के बारे में एक और ख़ास बात है। वह अपने किचन में इस्तेमाल होने वाले पानी जैसे सब्जियां-फल, दाल-चावल धोने के बाद वाला पानी इकट्ठा करके अपने गार्डन में इस्तेमाल करतीं हैं। उनका मानना है कि जब आप गार्डनिंग करते हैं तो इसके साथ प्रकृति को भी करीब से समझते हैं। आपको समझ में आता है कि आपके हर एक कदम का प्रकृति और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसलिए पानी बचाना और कचरे को सही से मैनेज करना, उनकी आदतों में शुमार हो गया है।

ऐसा नहीं है कि उनके गार्डन से उनके घर की पूरी आपूर्ति हो जाती है। वह कुछ सब्ज़ियाँ बाहर से भी खरीदतीं हैं। लेकिन खुद कुछ न कुछ उगाकर उन्हें इस खाने का महत्व समझ में आया है। उन्हें पता है कि साग-सब्जियां कितनी मेहनत से उगकर बाज़ारों तक पहुँचती हैं। इसके साथ -साथ उन्होंने जैविक और रसायनिक के बीच का अंतर समझा है। भले ही वह सब कुछ नहीं उगातीं लेकिन जितना भी उगा रही हैं, वह स्वच्छ, स्वस्थ और प्राकृतिक है, और उन्हें इस बात की संतुष्टि है।

उन्होंने आगे कहा कि वह जो भी उगातीं हैं, उसके बारे में सोशल मीडिया के ज़रिए दूसरों को बतातीं हैं। वह दूसरों को भी गार्डनिंग के लिए प्रेरित करतीं हैं। इस फेहरिस्त में सबसे पहले उनके अपने परिवार का नाम आता है। उनके दोनों बच्चे गार्डनिंग में उनकी मदद करते हैं। इस सबके बीच बच्चे भी खुद अपना खाना उगाने का महत्व समझ रहे हैं। उनके अंदर भी पेड़-पौधों के प्रति लगाव पनप रहा है। एक माँ के लिए इससे अच्छा क्या हो सकता है कि वह अपने बच्चों को आत्म-निर्भर बना रही है।

उनके घर में छोटा-सा गार्डन होने से दूसरे जीवों को भी खाना मिल रहा है। चिड़िया, तितलियाँ और मधुमक्खियाँ उनके यहाँ अपना पेट भरने आती हैं।

अपर्णा अंत में बस इतना ही कहतीं हैं, “आप गाँव, शहर, बड़े घर या छोटे फ्लैट, जहाँ कहीं भी रहें, पेड़-पौधे ज़रुर उगाएं। पौधे आपके सच्चे साथी हैं। आप उन्हें थोड़ी-सी देखभाल और पोषण देंगे और बदले में वह आपको बहुत कुछ देते हैं। उन्हें बस आपका प्यार, देखरेख और उन्हें उगाने की एक छोटी-सी चाह की ज़रूरत होती है और वह आपके यहाँ जरा-सी जगह में भी फलने-फूलने लगते हैं।”

तो देर किस बात की, आज ही अपने घर का कोई कोना ढूंढिए और बना दीजिए अपना खुद का एक ‘ग्रीन कार्नर’।

अगर आप अपर्णा सुर्वे से उनके फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं!

अगर आपको भी है बागवानी का शौक और आपने भी अपने घर की बालकनी, किचन या फिर छत को बना रखा है पेड़-पौधों का ठिकाना, तो हमारे साथ साझा करें अपनी #गार्डनगिरी की कहानी। तस्वीरों और सम्पर्क सूत्र के साथ हमें लिख भेजिए अपनी कहानी hindi@thebetterindia.com पर!

हैप्पी गार्डनिंग!

संपादन – मानबी कटोच

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