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विरान जंगल में उगाये 20 हज़ार सेब के पौधे, आज करोड़ों में हो रही कमाई

हिल्‍स क्‍वीन शिमला से 110 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है, कलासन। प्रकृति की गोद में बसे कलासन में 42 बीघा ज़मीन पर एक ऐसा मॉडल फार्म है, जहाँ से हिमाचल में आधुनिक सेब की खेती की शुरूआत हुई थी। इस फार्म को चलाने वाले विक्रम रावत को हिमाचल के लाखों बागवान आधुनिक सेब बागवानी का जनक मानते हैं।

बैंकिग में जमी-जमाई नौकरी को छोड़ बागवानी को अपनाने वाले विक्रम रावत अब हर साल लगभग डेढ़ करोड़ रूपये कमा रहे हैं। वह हिमाचल के किसानों के मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए भी अब तक 11 हज़ार से ज़्यादा सेब बागवानों को बागवानी के गुर सिखाने के साथ-साथ, 5 लाख से ज़्यादा सेब और अन्य फलों के पौधे बांट चुके हैं।

बैंकिंग सेक्टर से सेब की खेती में आने का किस्सा है काफ़ी दिलचस्प

वह द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताते हैं, “बागवानी में मैं एक्सीडेंटली आ गया, मेरा कोई मन नहीं था कि मैं सेब की खेती करूँ। दरअसल बैंक की नौकरी के दौरान मेरी पोस्टिंग ऐसे क्षेत्र में हुई जहाँ सेब बहुत होता था, तो वहाँ के कुछ सेब बागवान मेरे दोस्त बन गए। मैं हर साल सीज़न के दौरान उनसे सेब खिलाने के लिए कहता तो वे कहते कि इस साल तो सेब ही नहीं हुए। जब तीन सालों तक मेरे दोस्तों ने यही कहा तब मेरा माथा ठनका और मैंने इसके पीछे का कारण जानना चाहा।”

वह आगे बताते हैं, “मैं अपने दोस्त के सेब के बाग में भी गया, लेकिन वहाँ जाकर कोई हल नहीं मिला। फिर मैंने इंटरनेट पर इसकी वजह ढूंढने की कोशिश की। इस दौरान मैंने विदेशों में अपनाए जाने वाले सेब की खेती के तरीक़ों को देखा और यह जानने की कोशिश भी की कि इनमें और हमारे हिमाचल के तरीक़ों में क्या फ़र्क हैं। इसके बाद मेरी रूचि बागवानी में बढ़ती गई और मैं आधुनिक सेब बागवानी के क्षेत्र से जुट गया।”

सेब की खेती नहीं आसान, कई चुनौतियों का करना पड़ा सामना

विक्रम बताते हैं, “मैंने इंटरनेट से मिली जानकारी को बागवानों तक पहुंचाने की बहुत कोशिश की। मैंने एडवांस्ड किस्म के सेब के पौधे उनको अपने पैसे से खरीदकर भी दिए, लेकिन उन्होंने इसमें रुचि नहीं दिखाई। इसके बाद मैंने खुद सेब की खेती करने का फैसला किया और साल 2002 में कलासन में अपनी जमा पूंजी से 42 बीघा ज़मीन खरीदी।”

इसके बाद उन्होंने अमेरिका से एडवांस्ड किस्म के सेब के पौधों का जर्म प्लाज़्म मंगवाया और इससे तैयार पौधों को अपने बाग में लगाया। कई यूनिवर्सिटीज़ के वैज्ञानिकों और बागवानी विशेषज्ञों को वह अपने बाग में लेकर आए और उनकी राय जाननी चाही; तो सबने वहाँ बागवानी संभव न होने की बात कही। इसके बावजूद, विक्रम रुके नहीं और मेहनत करते रहे।

विक्रम बताते हैं, “मुझे एडवांस्ड मॉडल फार्म तैयार करने में 8 साल का समय लग गया। इस दौरान मैं हर साल अपने बाग में नए-नए पौधे लगा रहा था। 8 साल के बाद मुझे इसमें बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिले।”

विक्रम रावत की पत्नी रजनी रावत बताती हैं, “इस बाग को तैयार करने में हमें बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ऐसे कई मौक़े आए जब हमें अपनी ज़रूरतों में कटौती करनी पड़ी, लेकिन हमने बाग के लिए ज़रूरी उपकरणों में कोई समझौता नहीं किया।”

रजनी आगे कहती हैं, “आज देश-विदेश से लोग हमारे फार्म को देखने के लिए आते हैं और वे हमसे सेब की खेती सीखने के साथ, प्लांटिंग मटेरियल भी लेकर जाते हैं। इसके बाद जब वे बागवान हमारे साथ अपने अच्छे अनुभव शेयर करते हैं तो हमें बहुत खुशी होती है।”

जर्मनी, नीदरलैंड जैसे देशों की यात्रा

विक्रम रावत ने कलासन फार्म को एडवांस बनाने और हिमाचल के किसानों को सबसे ज़्यादा उत्पादन वाले फलों की किस्में मुहैया करवाने के लिए जर्मनी, नीदरलैंड, इज़राइल और अमेरिका जैसे कई देशों की यात्रा की है।

आज विक्रम रावत के बाग में 20 से ज़्यादा एडवांस्ड किस्म के फलों के 20 हज़ार पौधे लगे हुए हैं।

उनकी बेटी, जो अब फार्म को संभालने का काम करती हैं, वे बताती हैं, “अब हमने लेबर को कम करने लिए बाग को ऑटोमेशन में डालने का काम शुरू किया है। इसके लिए हम इज़राइल से एक तकनीक लेकर आए हैं, जिससे सभी सेब के पौधों में सेंसर लगाए जाएंगे और इन सेंसर्स और कंप्यूटर के ज़रिए पौधों को पानी व ज़रूरी पोषक तत्व एक बटन के क्लिक से दे दिए जांएगे। इससे टाइम की बचत के साथ-साथ संसाधनों की लागत भी कम होगी।”

कलासन फार्म से एडवांस गार्डनिंग के तरीक़े सीखने वाले कुल्‍लु जिले के बागवान, महेंदर वर्मा बताते हैं, “मैं पिछले एक दशक से विक्रम रावत के साथ जुड़ा हुआ हूं। इनके द्वारा सुझाई हुई किस्मों से हर साल मेरी इनकम में बढ़ोतरी हो रही है, जबकि हमारे इलाके में हर साल बागवानों को लाखों का नुकसान उठाना पड़ता है। मेरे यहाँ ऐसा नहीं है। अब मेरी देखा-देखी और बागवान भी कलासन नर्सरी फार्म से पौधे और बागवानी की राय ले रहे हैं।”

बागवानी और ट्रेनिंग के साथ फार्म स्टे भी

विक्रम रावत बताते हैं कि वह बागवानों को राय देने के अलावा उनके फार्म में जाकर भी देखते हैं। उनके बाग की परिस्थिति जानने समझने के बाद, वहाँ पर आसानी से उगाए जाने वाले सेब व अन्य फलों की किस्मों के बारे में पूरी राय देते हैं।

विक्रम, साल 2019 से बैंक की नौकरी छोड़ पूरा समय सेब की खेती में दे रहे हैं और आज उत्तराखंड सरकार के लिए बागवानी क्षेत्र में सलाहकार की भूमिका भी निभा रहे हैं।

वह उत्तराखंड में कई आधुनिक सेब के बाग लगा चुके हैं, जिन्हें देखकर और किसान-बागवान भी बागवानी की ओर रूख कर रहे हैं।

कलासन फार्म में फार्मिंग की ट्रेनिंग के साथ फार्म स्टे की सुविधा भी है, जहाँ लोग प्राकृतिक माहौल और फलों से लदे बागों में अच्छा समय गुज़ार सकते हैं।

अगर आप भी विक्रम रावत से बागवानी के गुर सीखना चाहते हैं तो उनके यूट्यूब चैनल KALASAN FARM और फेसबुक चैनल KalasanNurseryFarm को फॉलो कर, उनसे संपर्क भी कर सकते हैं।

संपादन: भावना श्रीवास्तव

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