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खेती से जहां मुश्किल था आमदनी बढ़ाना, आज ईको-टूरिज्म से कमा रहे हैं 50 लाख सालाना

eco-tourism

आज के समय में अक्सर युवा गांव छोड़, नौकरी की तलाश में शहर में बस जाते हैं। ऐसे में, उत्तराखंड के क्यारी गांव के दो भाई शेखर और नवीन ने, अपने गांव में ही रोजगार का नया रास्ता खोज निकाला। प्राकृतिक रूप से बेहद खूबसूरत गांव क्यारी, देश के जाने-माने कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व के पास बसा है। इसलिए यहां काफी संख्या में टूरिस्ट आते रहते हैं। उत्तराखंड घूमने आने वाले लोगों को प्रकृति की गोद में रहने का अहसास दिलाने के लिए,  शेखर और नवीन ने अपनी दो एकड़ जमीन पर, साल 2010 में एक टेंट कैंप तैयार किया था। आज इनका यह कैंप एक मिनी जंगल बन चुका है। जहां लोगों के रुकने के लिए मिट्टी के कॉटेज भी बनाए गए हैं।  

शेखर और नवीन के साथ, उनके एक और मित्र राजेंद्र सती ने भी उनकी इस पहल में उनका साथ दिया और आज ये दोनों भाई, इस गांव के कई और लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं।  

कैसे की शुरुआत?  

द बेटर इंडिया से बात करते हुए शेखर बताते हैं, “मेरे पिता धान, सोयाबीन और कुछ मौसमी फसलें उगाया करते थे। लेकिन दो एकड़ की खेती से बस इतनी आमदनी होती कि घर का खर्चा चल जाता था। साथ ही, इलाके में जंगली जानवरों के कारण खेती को हमेशा नुकसान भी हो जाया करता था। हमें अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए, खेती के अलावा कुछ अलग करना था।” 

शेखर और उनके भाई गांव छोड़कर शहर में नौकरी नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सोचा कि अपनी इस ज़मीन का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए? फिर उन्होंने 2010 में ‘कैंप हॉर्नबिल’ नाम से, एक इको टूरिज्म स्पाॅट बनाना शुरू किया।  


शेखर बताते हैं, “हमने सबसे पहले अपनी जमीन पर पेड़-पौधे लगाने से शुरुआत की। हम कॉन्क्रीट और सीमेंट से कोई होटल नहीं बनाना चाहते थे, ना ही हमारे पास इसका बजट था।” उन्होंने बताया कि हम चाहते थे, यहां ज्यादा से ज्यादा पक्षी आएं। हमने पक्षियों के लिए फलों के पेड़ लगाना शुरू किया। शेखर कहते हैं, “हमने देखा कि हमारे बिना लगाए ही, यहां कई पौधे लग गए। चूँकि पक्षी जो फल खाते थे, उनके बीज एक जगह से दूसरी जगह फेंक दिया करते थे। इसलिए हमने बिलकुल प्राकृतिक तरीके से एक जंगल बनते देखा।” 

उन्होंने सबसे पहले, अमेरिकन सफारी टेंट से शुरुआत की। जिसके लिए उन्होंने अपने परिवारवालों और दोस्तों से लोन लिया और कुछ पांच टेंट खरीदें। शेखर ने बताया कि यह क्यारी गांव का पहला ऐसा स्पॉट था। धीर धीरे कई लोग यहां आने लगे।

मिट्टी के कॉटेज

अपने साथ गांव के लोगों को भी रोजगार से जोड़ा 

हालांकि वह सीजनल टेंट थे, जो सिर्फ सर्दियों में इस्तेमाल किए जा सकते थे। तक़रीबन दो साल बाद, उन्होंने कुछ स्थायी रूम बनाने के बारे में सोचा। लेकिन उन्हें ऐसे रूम बनाने थे, जो पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली हों। इसके लिए उन्होंने गांव के कुछ कलाकारों और लोगों की मदद लेकर मिट्टी केे कमरे बनाए। शेखर ने बताया कि हमारे कैंप के बनाए रूम में सिर्फ फाउंडेशन और बाथरूम में सीमेंट और टाइल का इस्तेमाल किया गया है।

फ़िलहाल उनके पास 15 टेंट और 9 मिट्टी के कॉटेज हैं। साथ ही, इनका हॉउस कीपिंग का पूरा काम गांव की महिलाएं करती हैं। इसके अलावा कैंप के भोजन के साथ-साथ, कई जरूरी सामान भी गांव से ही मंगाया जाता है। फिलहाल, कैंप हॉर्नबिल में नवीन, राजेंद्र और शेखर के अलावा गांव के 10 लोग मिलकर काम कर रहे हैं। 

हॉउस कीपिंग से जुड़ी गांव की महिलाएं

प्रकृति के साथ रहने का अनुभव  

चूँकि, सभी मड कॉटेज एक दूसरे से दूर जंगल के बीच में बनाये गए हैं। इसलिए यहां आए सभी टूरिस्ट को प्रकृति से जुड़कर रहने का अवसर मिलता है। साथ ही, उन्हें गांव में ही कई तरह की एक्टिविटीज़ भी कराई जाती हैं। वहीं खाने में लोकल फ़ूड परोसा जाता है। शेखर बताते हैं, “कैंप में आए टूरिस्ट को स्थानीय किसानों के साथ खेतों में काम करने, उनके फसल की रखवाली करने जैसी एक्टिविटी करने में बेहद आनंद आता है।” 

उनका कहना है कि आज कैंप हॉर्नबिल पूरी तरह से ज़ीरो वेस्ट और ज़ीरो कार्बन फुटप्रिंट वाली जगह बन चुकी है। 

फ़िलहाल कोरोना के कारण, यहां टूरिज्म पर काफी असर पड़ा है। उन्होंने बताया, “2019 तक हमारा सलाना टर्नओवर तक़रीबन 40 से 50 लाख का था। जो खेती से कमाना नामुमकिन था।”
आप भी इस तरह के ईको टूरिज्म का आंनद उठाना चाहते हैं, तो कैंप हॉर्नबिल की वेबसाइट से इनके बारे में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं।

संपादन -अर्चना दुबे

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