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विदेशियों को भा रही है भारत की देसी चारपाई, Amazon पर 60 हजार से ज्यादा कीमत

Indian Charpai sold on amazon

कुछ समय पहले Gucci ब्रांड द्वारा ढाई लाख रुपए में बेचा जा रहा एक प्लेन सूती कुर्ता काफी चर्चा में रहा। बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर इसे ट्रॉल भी किया। हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब कोई भारतीय पारंपरिक चीज विदेशों में ट्रेंड बनी है। इससे पहले 90 के दशक में ‘बिंदी’ भी वेस्टर्न ट्रेंड का हिस्सा बन चुकी है। उस दौरान भारत में 10-20 रुपए में मिलने वाले बिंदियों के पैक की कीमत विदेशों में 500-700 रुपए हो गयी थी। 

इसी तरह, भारतीय घरों में तोरई को सुखाकर बनाया जाने वाले प्राकृतिक लूफा विदेशों में 1500 रुपए से ज्यादा की कीमत पर बिकता है। आज ऐसी बहुत ही चीजें हैं, जो भारत में परंपरा, संस्कृति और कला का प्रतीक हैं। सैकड़ों वर्षों से जिन्हें आम भारतीय अपनी दैनिक जीवनशैली में इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन विदेशों में ये चीजें एक नया ट्रेंड हैं और वहां के लोग अपनी जरूरत और सुविधा के हिसाब से इन्हें अपना रहे हैं। इस फेहरिस्त में अब एक और नाम शामिल होता है और वह है-चारपाई। 

भारत और एशिया के कई देशों जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान में बैठने और सोने के लिए इस्तेमाल होने वाली चारपाई ने भी पिछले कुछ सालों में विदेशों में अपनी जगह बना ली है। हमारे यहां चारपाई का इतिहास हजारों साल पुराना है, लेकिन विदेशियों के लिए यह स्टील, लोहे या प्लास्टिक के बेड का इको-फ्रेंडली विकल्प है। जो दिखने में सुंदर और आरामदायक है। भारत में आपको कई राज्यों में चारपाई का चलन देखने को मिलेगा। खासकर कि ग्रामीण इलाकों में। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है, जैसे खाट, खटिया, मंजी या माचा आदि। 

A photo of a charpoy being strung or restrung, from c.1900 (Source)

कहते हैं कि जब मोरक्को के मशहूर यात्री और विद्वान, इब्न बत्तूता दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के दरबार में शामिल होने आए, तो बहुत सी भारतीय चीजों ने उन्हें प्रभावित किया- जैसे नृत्य, संगीत, शाही व्यंजन, पान, नारियल, आम आदि। इस फेहरिस्त में चारपाई का नाम भी शामिल है। उन्होंने लिखा, “भारत में बेड/बिस्तर बहुत ही हल्के होते हैं।” उन्होंने आगे लिखा, “एक अकेला आदमी भी इसे उठा सकता है और हर एक यात्री के पास यह होनी चाहिए, जिसे उसका गुलाम सिर पर रखकर चल सकता है। इसमें चार शंकुकार पैर/पाए होते हैं, जिनपर चार पाटियां बिछी होती हैं, बीच में रेशम या सूत की डोरी से बुनाई होती है। और जब आप इस पर लेटते हैं, तो आपको और कुछ नहीं चाहिए, क्योंकि यह पहले से ही लचीला होता है।” 

चारपाई एक, काम अनेक 

गांवों में घर के आंगन में चारपाई पर बेडशीट बिछाकर इसके ऊपर अनाज, दाल, पापड़ और अचार के लिए आम आदि सुखाए जाते हैं। कई बार चारपाई दीवार या पर्दे का भी काम करती है, तो कई बार कपड़े आदि सुखाने के भी काम आ जाती है। इसके कई रूप आपको गांव के घरों में देखने को मिलेंगे। जैसे बच्चों के लिए छोटी चारपाई बनाई जाती है, जिसे खटोला या मचिया भी कहते हैं। 

पहले के जमाने में चारपाई बनाना एक कला हुआ करती थी। सबसे पहले इसके लिए अच्छी-खासी लकड़ी चुनी जाती थी, ताकि इसके पाये और पाटी बनाई जा सकें। चारपाई, जैसा कि नाम से ही समझ आता है इसमें चार पाए होते हैं और चार पटियां। इनके ऊपर सूती या जूट की सुतली या जेवरी से बुनाई करके चारपाई या खाट तैयार की जाती थी। कई जगहों पर पुराने कपड़ों को फेंकने की बजाय, इन्हें काटकर रस्सी बनाई जाती थी और फिर इससे मचिया या चारपाई बुनी जाती थी। मुझे आज भी बचपन के दिन याद हैं, जब हम गाँव में रहा करते थे। 

Woman Weaving Charpai (Source)

साल-दो साल में पापा कारीगरों को बुलवाकर चारपाई और माचा तैयार कराया करते थे। खासकर कि जब घर में कोई शादी हो या किसी खास आयोजन पर मेहमान आने वाले हों। क्योंकि मेहमानों को नयी चारपाई पर बिठाने का रिवाज हुआ करता था। एक चारपाई को तैयार करने में उन कारीगरों को कभी एक दिन लगता तो कभी दो दिन। समय और कीमत का निर्धारण चारपाई की बुनाई की डिज़ाइन के हिसाब से होता था। जितनी बारीक और सफाई से बुनाई, उतनी ही ज्यादा कीमत। 

हालांकि, इब्न बत्तूता को प्रभावित करने वाली चारपाई का चलन भारत के लोगों के बीच कम हो गया है। आजकल शहरों में तो क्या, गांवों में भी चारपाई का चलन खत्म होने लगा है। इसका कारण है कि इंसान ने अपनी सुविधा के लिए बहुत सी ऐसी चीजें तैयार कर ली हैं, जिनपर सिर्फ एक बार मेहनत होती है। जैसे कि बेड, इन्हें आप एक बार खरीदकर सालों-साल इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं, चारपाई में आपको कुछ सालों में दोबारा बुनाई करवानी पड़ती है। इस कारण ही, पहले चारपाई बनाकर अपना घर चलानेवाले कारीगरों के लिए भी काम कम हो गया है। साथ ही, अब बाजार में प्लास्टिक और नायलॉन से बनी कई तरह की चारपाई के विकल्प उपलब्ध हैं। 

विदेशों में बढ़ा रही है भारत की शान 

भारतीयों के लिए चारपाई भले ही कोई नयी बात नहीं है, लेकिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में यह बिल्कुल ही नया कॉन्सेप्ट है, जो पिछले कुछ सालों से उनके बीच मशहूर हो रहा है। साल 2017 में, ऑस्ट्रेलिया में किसी दीवार पर चिपका हुआ एक पोस्टर इंटरनेट पर बहुत ही वायरल हुआ था। क्योंकि, इस पोस्टर में एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक ने चारपाई का विज्ञापन किया था। चारपाई की तस्वीर के नीचे उन्होंने लिखा था कि प्राचीन भारतीय डिज़ाइन से बनी यह चारपाई 100% ‘मेड इन ऑस्ट्रेलिया’ है। और इसकी कीमत उन्होंने रखी थी 990 डॉलर। 

SBS पंजाबी ने डेनियल ब्लूरे नामक इस शख्स से बात की, तो उन्होंने बताया कि 2010 में भारत की यात्रा के दौरान, उन्होंने पहली बार चारपाई देखी थी। उन्हें यह बहुत आरामदायक लगी और अपने देश लौटकर उन्होंने अपने लिए एक चारपाई बनाने की सोची। उन्होंने पहले अपने लिए एक चारपाई बनाई और फिर अपने एक दोस्त के लिए। अपने इस काम के लिए उन्हें सराहना मिली, तो उन्होंने इससे बिज़नेस करने की सोची और इसका विज्ञापन करने लगे। उनका विज्ञापन देखते ही देखते इंटरनेट पर वायरल हो गया। क्योंकि, शायद ही किसी भारतीय ने सोचा होगा कि हमारी देसी चारपाई 50-60 हजार रुपए की कीमत पर बिक सकती है। लेकिन, यह संभव है! 

Ad posted by Australian (Source) and Amazon Selling Charpai (Source)

हालांकि, अच्छी बात यह है कि अब कई भारतीय कंपनियां ‘मेड इन इंडिया’ चारपाई विदेशों में एक्सपोर्ट कर रही हैं। जयपुर की Doxey ब्रांड के को-फाउंडर रमेश जांगिड़ बताते हैं, “हमने लगभग तीन-चार साल पहले अपनी कंपनी शुरू की थी, जिसके जरिए हम चारपाई, मचिया और बेंच आदि बनाकर ग्राहकों को उपलब्ध करा रहे हैं। हमने अपने उत्पादों में थोड़ा इनोवेशन किया है, ताकि विदेशी बाजारों के हिसाब से हम काम करें। जैसे चारपाई और मचिया के साथ-साथ हम बेंच भी बना रहे हैं, जो तीन लोगों के बैठने के काम आ सकती है। हमें अपना ज्यादातर बिज़नेस अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको से मिल रहा है।” 

उनकी चारपाई विदेशों में 800-900 डॉलर में बिकती है और बैठने के लिए छोटी-सी मचिया की कीमत भी 100 डॉलर से ज्यादा है। जांगिड़ कहते हैं, “विदेशियों में कला और इको-फ्रेंडली चीजों के प्रति अधिक जागरूकता है। इसलिए उन्हें प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करके, हाथ से बनी चारपाई खूब भा रही है। हमारी कोशिश रहती है कि हम अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद उन तक पहुंचाए।” अपने स्टार्टअप के जरिए उन्होंने 10-12 कारीगरों को काम दिया हुआ है। उन्हें उम्मीद है कि जैसे-जैसे बिज़नेस बढ़ेगा, वह और भी लोगों को काम दे पाएंगे। 

और भी बहुत से संगठन अपने-अपने तरीके से चारपाई की संस्कृति को सहेजने में जुटे हुए हैं। जैसे Skilled Samaritan Foundation आधुनिक लोगों के हिसाब से चारपाई के डिज़ाइन में बदलाव करके नए-नए उत्पाद बनाने पर जोर दे रही है। ताकि इस काम से जुड़े हुए कारीगरों का घर चलता रहे और हजारों साल पुरानी यह कला हम आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुंचाएं। क्योंकि अगर हमने अपनी परंपरागत चीजों पर ध्यान नहीं दिया, तो कल को हमें भी किसी विदेशी ब्रांड से लाखों में चारपाई खरीदनी पड़ेगी। 

संपादन- जी एन झा

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