पांच फीट लंबे पौधे में लटकती काली-काली बालियाँ व मनमोहक सुगंध से लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे काले चावल के पौधे इन दिनों बिहार के अलग-अलग जिलों में देखने को मिल रहे हैं। अपने अद्भुत औषधीय गुणों के लिए विश्व विख्यात काले चावल की खेती बिहार के अनेक जिलों में हो रही है। पिछले वर्ष भी यहाँ के कुछ किसानों ने प्रायोगिक तौर पर इसकी खेती की थी।
सामाजिक संस्था आवाज एक पहल ने किसानों के हौसले को बल देते हुए उनके द्वारा उत्पादित सुगंधित काले चावल की खुशबू को देश-दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने का काम किया है। संस्था के प्रयास से बिहार द्वारा उत्पादित काले चावल का बीज मंगाकर पंजाब ,मध्य प्रदेश, हरियाणा, जम्मू, उत्तराखंड और तकरीबन देश और देश के बाहर के भी किसानों ने इसकी खेती की है।
वैसे तो भारत में काले चावल की खेती के लिए मणिपुर मशहूर है पर किंवदंतियों के अनुसार बौद्ध काल में बिहार का मगध का इलाका ब्लैक राइस की खेती के लिए मशहूर रहा है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण इस चावल के सेवन से वे काफी सेहतमंद रहते थे। यहीं से बौद्ध भिक्षु इस चावल को चाइना लेकर गए थे और आज भी चाइना में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
इतिहासकार बताते हैं कि बदलते वक्त के साथ इस बहुमूल्य चावल को आम लोगों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था। राज परिवार से जुड़े लोगों को ही इसके सेवन की आजादी थी। सैकड़ों साल बाद ब्लैक राइस बिहार के धरती पर वापस आया है। अन्य जगहों के मुकाबले यहाँ पर उत्पादित ब्लैक राइस की खुशबू, उसका उत्पादन और पौधों की लंबाई काफी बेहतर है, जिससे भी इसकी किंवदंती को बल मिलता है।
आवाज एक पहल के लवकुश बताते हैं, “इस बार बिहार के अनेक किसानों ने काले चावल की खेती की है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण यह चावल पक कर तैयार हो चुका है जल्द ही इसकी कटाई की जाएगी जिसके बाद यह चावल आमजनों के लिए सुलभ हो जाएगा।“
बताते चलें कि इस औषधीय चावल को विशेषज्ञ सुपरफूड की संज्ञा देते हैं। संपूर्ण विश्व में चावल की 40000 से भी ज्यादा प्रजातियां है पर इन सब में काले चावल की पौष्टिकता सबसे अधिक है।
आज भारत के हर गली और मोहल्ले में ब्लैक राइस की चर्चा है। इसके धान और चावल दोनों काले होते हैं, यहां तक कि इसके पौधों के भी कई भाग जैसे स्टीम ज्वाइंट और बाली भी काली ही होती है।
इसकी कीमत ज्यादा होने कारण इसका काला रंग नहीं बल्कि इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व और औषधीय गुण का भंडार है जो वाकई में लाजवाब है। वहीं खुशबूदार ब्लैक राइस न सिर्फ औषधीय गुणों से भरपूर है बल्कि किसान भाइयों के लिए आमदनी का एक बहुत अच्छा स्रोत भी है। आज भी इसकी कीमत तकरीबन ₹500 प्रति किलोग्राम से ज्यादा है।
काला चावल एंटीऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर माना जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसमें कॉफी से भी ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है। एंटी ऑक्सीडेंट हमारे बॉडी को डिटॉक्स और क्लीन करने का काम करता है और आज के प्रदूषित वातावरण और मिलावटी खाने से जंग लड़ने के लिए हर इंसान को इसकी आवश्यकता है।
मधुमेह रोगियों के लिए काला चावल कमाल की चीज है। इसका नियमित सेवन न सिर्फ उन्हें दवाइयों से छुटकारा दिला सकता है बल्कि कुछ समय बाद वह सामान्य जीवन जीने लगेंगे। कई लोगों को इससे काफी लाभ मिला है।
इस धान से निकले चावल में विटामिन बी, ई के अलावा कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन तथा जिंक आदि प्रचुर मात्रा में मिलता है। इसके सेवन से रक्त शुद्धीकरण भी होता है। साथ ही इस चावल के सेवन से चर्बी कम करने तथा पाचन शक्ति बढ़ने की बात कही जाती है।
लेख साभार- लवकुश(आवाज एक पहल)
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