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EV का है ज़माना! इस ई-साइकिल को एक बार करिये चार्ज और 100 किमी घूमिये नॉनस्टॉप

पिछले साल शुरू हुआ दिल्ली स्थित ‘वोल्ट्रो मोटर्स’ (Voltro Motors) नामक एक EV स्टार्टअप, जो हार्ले डेविडसन (harley davidson electric bike) की तर्ज पर बने, अपने इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल के प्रोटोटाइप संस्करण को लॉन्च करने ही वाला था कि तभी देशभर में 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई।

वोल्ट्रो मोटर्सके संस्थापक और सीईओ (मुख्य कार्यकारी अधिकारी), प्रशांता को अपनी योजनाओं को रोकना पड़ा। क्योंकि, इन परिस्थितियों में, उनकी इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिलों के निर्माण के लिए, आधिकारिक स्वीकृति प्राप्त करना कठिन हो गया था।

लेकिन बेकार बैठे रहने के बजाय, प्रशांता और उनकी टीम ने कुछ ऐसा विकसित करने का फैसला किया, जिसमें उन्हें ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) और इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी (ICAT) जैसे निकायों से आधिकारिक स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं होती। जो कुछ महीने बाद ‘वोल्ट्रोन ई-साइकिल’ के रूप में बन कर उभरा।

मात्र 35,000 रुपये वाली इस ई-साइकिल में 100 किमी की बैटरी रेंज के साथ ही, ऑफ-रोड राइडिंग (ऊबड़-खाबड़ जगहों पर सवारी), पिलियन राइडिंग (पिछली सीट की सवारी) और हिल राइडिंग (पहाड़ी इलाकों पर सवारी) जैसे शानदार फीचर्स भी हैं।

द बेटर इंडिया के साथ एक ख़ास बातचीत में प्रशांता कहते हैं, ”इलेक्ट्रिक साइकिल बनाने से पहले, मैंने इसके लिए बाजार का सर्वेक्षण किया और यह समझने की कोशिश की, कि पर्यावरण के अनुकूल और किफायती होने के बावजूद भी भारत में इन इलेक्ट्रिक साइकलों की मांग इतनी कम क्यों है? जिसका एक कारण यह था, कि अधिकांश ई-साइकलों में पर्याप्त रेंज नहीं थी। आज बाजार में मौजूद अधिकांश ई-साइकलों में 25 से 35 किमी की बैटरी रेंज है, जो कहीं न कहीं ग्राहकों के मन में एक संकोच तथा चिंता की भावना पैदा करती है।”

प्रशांता बताते हैं, “हमारी ई-साइकल एक बार चार्ज होने पर 100 किमी की रेंज देती है।”

बाजार में मिलने वाली अधिकांश ई-साइकलों के साथ एक और समस्या यह है कि उनमें से किसी में भी पिलियन राइडिंग की विशेषता नहीं है। ज्यादातर ई-साइकिलें, सिर्फ एक ही सवारी के लिए बनाई जाती हैं।

प्रशांता बताते हैं, “बच्चों को स्कूल जाने में, पेरेंट्स को उन्हें स्कूल छोड़ने तथा वापस ले कर आने में, किराने और खाद्य पदार्थों की होम डिलीवरी करने में, गाँव आने-जाने में, सेल्स तथा फील्ड जॉब से जुड़े लोगों को आवागमन में और ऑफिस आने-जाने में आसानी हो इसीलिए, इन बातों को ध्यान में रख कर ही, इस इलेक्ट्रिक साइकिल का निर्माण किया गया।”

पुलों, पहाड़ियों और ऊबड़-खाबड़ जगहों पर चढ़ाई

भारत में अधिकांश ई-साइकलों की एक कमजोरी यह है कि ये पुलों और पहाड़ियों पर चढ़ने में इतनी सक्षम नहीं होती हैं। क्योंकि, इनमें पर्याप्त उर्जा नहीं होती है। इन ई-साइकलों से ऊँची पहाड़ियों या पुलों पर चढ़ने के लिए यात्रियों को मोटर के साथ पैडल को भी चलाना पड़ता है।

इस कड़ी में प्रशांता बताते हैं, “ये बहुत ध्यान देने योग्य बातें हैं क्योंकि, ये ई-साइकिल चलाने के उद्देश्य को काफी कमजोर बना देती हैं। इनके समाधान के लिए हमने, मोटर के प्लेसमेंट के आधार पर ई-साइकल बनाने के दो तरीके अपनाए हैं। अधिकांश ई- साइकलों में, निर्माता ‘हब मोटर्स’ लगाते हैं, जिसे पहिये के हब (मध्य) में फिट किया जाता है। जो बहुत कुशलता से उर्जा का संचारण नहीं करते हैं। इसके बजाय, हमने एक ‘मिड-ड्राइव’ जैसी मोटर पेश की है, जो पहिये के हब से जुड़ी नहीं होती है। इस मोटर को साइकिल के फ्रेम पर अलग से फिट किया गया है। इसके साथ ही, एक चेन भी है जो दाँतेदर पहिये को चलाती है, जिससे इसमें बिजली का संचरण बहुत तेजी से होता है। हम दुनिया के उन बहुत कम ई-साइकिल निर्माताओं में से एक हैं, जो इस तरह की प्रणाली का उपयोग करते हैं।”

लेकिन, अगर आप ‘मिड-ड्राइव मोटर्स’ द्वारा संचालित ई-साइकलों को देखते हैं तो आप पाएंगे कि उनकी कीमत लगभग 1,90,000 रुपये है। अब सवाल उठता है की वोल्ट्रो मोटर्स ने अपने ई-साइकलों की कीमत इतनी कम क्यों रखी है? प्रशांता बताते हैं, “मिड-ड्राइव मोटर्स बहुत महंगे होते हैं। जबकि हम एक डीसी-ड्राइव (मोटर) का उपयोग कर रहे हैं, जो एक मिड-ड्राइव मोटर की तरह कार्य करता है। साथ ही, इससे ई-साइकिल की लागत में भी भारी कमी आती है। हमारा उद्देश्य भारतीय बाजार में अपनी सभी मौजूदा समस्याओं का समाधान कर, ई-साइकिल की खरीदी को आसान बनाना है।”

वोल्ट्रो मोटर्स की टीम ने मणिपुर की पहाड़ियों में ई-साइकिल का परीक्षण किया और यहां तक ​​कि देहरादून से मसूरी जाने तथा वापस आने की यात्रा भी इसी से की। प्रशांता आगे बताते हैं, “लेकिन उदाहरण के लिए, लद्दाख जैसे पहाड़ी स्थानों, जहाँ की सड़कों पर तीव्र ढलान होती है। मैं वैसी सड़कों के लिए, इसकी कार्यक्षमता के बारे में निश्चित नहीं हूं। हालांकि नैनीताल, मसूरी आदि स्थानों पर नियमित रूप से हिल-राइडिंग के लिए यह सुरक्षित है। यह ई-साइकिल यहाँ की सड़कों पर आसानी से चल सकती है।”

कल-पुर्जे और अन्य विशेषताएं 

भारतीय बाजार के ई-साइकिल निर्माण में एक बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले अधिकांश निर्माताओं ने ऐसी ई-साइकलों का निर्माण किया है, जिन्हें एक बार चार्ज करने पर 25 किमी से 45 किमी की बैटरी रेंज प्राप्त होती है। साथ ही, इनमे पिलियन राइडिंग विकल्प भी नहीं होता है। जिसके कारण ये पहाड़ियों पर कुशलता से चल नहीं पाती हैं। इसके बावजूद, इनकी लागत लगभग 34,000 से 55,000 रु तक है। वहीं वोल्ट्रॉन ई-साइकिल बेहतर सुविधाओं के साथ ग्राहकों के लिए काफी किफायती भी है। यह दिल्ली स्थित स्टार्टअप, द्वारका सेक्टर -24 में अपने प्लांट से, इन ई-साइकलों का निर्माण कर रहे हैं।

प्रशांता दावा करते हुए कहते हैं, “ई-साइकिल के कल-पुर्जों को, भारत के साइकिल स्पेयर पार्ट मैन्युफैक्चरिंग हब कहे जाने वाले ‘लुधियाना’ से  मंगवाया जाता है। केवल मोटर को दक्षिण कोरिया से आयात किया जाता है। हम भटिंडा, पंजाब स्थित एक कंपनी से, हमारी विशेष जरूरतों के अनुसार बैटरियां मंगाते है। यह ई-साइकिल एक 24 वोल्ट की 30ah लिथियम-आयन बैटरी द्वारा संचालित होती है, जिसे पूरी तरह से चार्ज होने में सिर्फ तीन घंटे लगते हैं। इस बैटरी को, घर में मौजूद किसी भी बिजली के सॉकेट से या सॉकेट से जुड़े एक्सटेंशन कॉर्ड से भी चार्ज किया जा सकता है।”

प्रदूषण में भारी कटौती करना, इस ई-साइकिल का सबसे बड़ा और स्पष्ट लाभ है। प्रशांता कहते हैं, “स्कूटर या मोटरसाइकिल द्वारा 100 किमी की यात्रा करने के लिए, लगभग 3 लीटर पेट्रोल का उपयोग करने की तुलना में, यह ई-साइकिल चार्ज होने में लगभग 700 वाट बिजली की खपत करती है। इसके अलावा, स्कूटर या मोटरसाइकिल द्वारा 100 किमी की यात्रा करने की लागत लगभग 240 रुपये है, वहीं वोल्ट्रॉन इलेक्ट्रिक साइकिल से इस यात्रा को सिर्फ चार रुपये में तय किया जा सकता है और 236 रुपये बचाए जा सकते हैं।”

इस ई-साइकिल का दिल्ली की सड़कों और पुलों पर व्यापक परीक्षण किया गया है। साथ ही, दिल्ली स्थित उनके प्लांट से नोएडा, नेहरू प्लेस और मानेसर तक सभी पुलों से होते हुए इस ई-साइकिल की सवारी कर, इसे परखा गया है।

प्रशांता का दावा है कि भारतीय सेना भी वर्तमान में, वोल्ट्रोन ई-साइकिल का परीक्षण कर रही है। सेना अपनी ‘हरित पहल’ के हिस्से के रूप में, इन ई-साइकलों को शामिल करना चाह रही है।फाइलों को एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस तक पहुंचाने तथा अन्य सामान्य कार्यों को सुचारू रूप से करने के लिए इन ई-साइकलों का उपयोग किया जाएगा।

सेना के अनुरोध पर उन्होंने इस ई-साइकिल में ‘रिवर्स बीप’ नामक एक और विशेषता जोड़ी है। इस ई-साइकिल में एलईडी लाइट बार के माध्यम से बैटरी के उपयोग को दर्शाया जाता है। बैटरी पूरी तरह चार्ज होने पर ये सभी लाइट बार चमक जाते हैं। चालक जैसे-जैसे साइकिल चलाना शुरू करता है, उसके द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर, एक लाइट बार बंद होता जाता है। जब अंतिम लाइट बार बच जाता है तो लगातार, एक बीप जैसी आवाज बजती रहती है। जो चालक को बताती है कि ई-साइकिल अब केवल 10-15 किमी की यात्रा ही कर सकेगी। यह वह संकेत है, जो दर्शाता है की इसे फिर से चार्ज करने की जरूरत है।

प्रशांता आगे बताते हैं, “ऑटो ई-ब्रेक कट ऑफ, इस ई-साइकिल की कई विशेषताओं में से एक है। जैसे ही आप ब्रेक लगाते हैं, यह फीचर मोटर को बंद कर देता है। यह चालक को गिरने से बचाता है, बैटरी को स्वस्थ रखता है और ‘डिस्क ब्रेक पैड’ को ज्यादा समय के लिए टिकाऊ बनाता है। इसमें चालक की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘हज़ार्ड लाइट’ और ‘ब्रेक लाइट’ भी लगाया गया है, जिससे चालक को रात में सफर करने में भी आसानी होती है। इससे, अगर कोई पीछे चल रहा है तो उसे पता चल जायेगा की उसके सामने एक वाहन है। 25 किमी / घंटा की अधिकतम रफ़्तार देने वाली इस ई-साइकिल के लिए, आपको कोई लाइसेंस या पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है तथा यह बच्चों के लिए भी उपयुक्त है। इस साइकिल को पर्याप्त पकड़ देने के लिए इसके पिछले पहिये में 3 इंच का टायर लगाया गया हैं।”

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में पोस्टग्रैजुएट 52 वर्षीय प्रशांता, जिन्होंने विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों में, सेल्स के क्षेत्र में 15 साल बिताए तथा जिनके नाम से तीन पेटेंट भी हैं, उनके लिए यह एक दिलचस्प यात्रा रही है।

अंत में प्रशांता कहते हैं, “हम अपनी ई-मोटरसाइकिल को विकसित करने के प्रयास में, इस ईवी क्षेत्र में तीन साल से अधिक समय से काम कर रहे हैं। लेकिन ई-साइकिल की बदौलत, हमने पिछले छह महीनों में ‘इलेक्ट्रिक मोबिलिटी सेगमेंट’ में कुछ बढ़त जरूर बनाई है। फिलहाल, हम अपने इस उद्योग को सीमित स्त्रोतों और लागत के आधार पर आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, कुछ समय के बाद, हम फंडिंग की सम्भावना को तलाशेंगे। हमारा लक्ष्य एक ऐसा वाहन विकसित करना था जो इलेक्ट्रिक साइकिल और स्कूटर के बीच का एक अच्छा विकल्प साबित हो। साथ ही, जो उपभोक्ता की जरूरतों को पूरा भी करता हो। उम्मीद है, हमने वह लक्ष्य हासिल कर लिया है।”

मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक

संपादन – जी एन झा

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