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फल-फूल के बगीचे से लेकर सौर ऊर्जा तक, हर संभव तरह से प्रकृति के करीब यह घर

Solar Energy at Home in Bhopal

हमारे शहर में कुछ ऐसे घर हैं, जिन्हें बाहर से देखकर अक्सर दिल में ख्याल आता था कि ‘घर हो तो ऐसा !’ लेकिन पिछले कुछ समय में समझ आया कि घर के बाहरी आवरण, साज-सज्जा और खूबसूरती से परे जाकर थोड़ा और गहराई से अपने घर के बारे में सोचना चाहिए कि क्या हमें सिर्फ दिखावे के लिए घर बनाना है या फिर हमारा घर सही मायनों में एक बेहतरीन जीवनशैली का पर्याय हो। आज हम आपको भोपाल के एक ऐसे ही घर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे आज से लगभग 20 साल पहले डॉ. राजाराम (स्वर्गीय) और उनकी पत्नी, डॉ. बिनय राजाराम ने बनाया था। 

इस घर का नाम ‘सप्तवर्णी’ है। स्वर्गीय राजाराम जी की पत्नी और हिंदी की प्रोफेसर डॉ. बिनय ने द बेटर इंडिया को बताया कि उन्होंने इस घर को प्रकृति के अनुरूप बनाया है और यही वजह है कि परिसर में पेड़-पौधों को सबसे अधिक महत्व दिया गया है।

डॉ. बिनय कहतीं हैं कि जब उन्होंने घर बनाने की योजना बनाई तो सबसे पहले अपनी जमीन पर एक छोटा-सा तालाब बनाया। इस छह फ़ीट गहरे तालाब को बिनय के पति स्वर्गीय डॉ. राजाराम और उनके बेटे, कौस्तुभ शर्मा ने खुद तैयार किया था। घर के निर्माण के समय से ही यह तालाब अलग-अलग कामों में आता रहा है। कौस्तुभ शर्मा भी अपने माता-पिता की तरह पर्यावरण और वन्य जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील रहे हैं। इसलिए उन्होंने इस क्षेत्र में अपना करियर भी बनाया। फिलहाल, वह बिश्केक में ‘स्नो लेपर्ड ट्रस्ट’ के साथ बतौर इकोलोजिस्ट काम कर रहे हैं। 

घर में लगाए 24 तरह के 40 से ज्यादा पेड़-पौधे 

कौस्तुभ बताते हैं कि शुरुआत से ही उनके माता-पिता घर में पौधरोपण करते थे। आज उनके घर में 24 तरह के 40 से ज्यादा बड़े और घने छांवदार, फलदार वृक्षों के साथ-साथ फूलों के भी पेड़ और लताएं हैं। साथ ही, उनके घर के तालाब में नीलकमल और कुमुदिनी जैसे फूल खिलते हैं। उन्होंने कहा, “अक्सर लोग पूरी जगह पर ही कंस्ट्रक्शन करा देते हैं। लेकिन हमारे घर में ज्यादातर जगह कच्ची है और बगीचे के लिए इस्तेमाल हुई है। इससे न सिर्फ हमारे घर की हरियाली बढ़ रही है बल्कि बहुत से पक्षियों के लिए खाने-पीने और रहने की जगह भी है।” 

उनके घर में ज्यादातर सभी परमानेंट पेड़-पौधे हैं। जैसे फूलों में उनके यहां कनेर, चम्पा, बोगेनविलिया, गुलाब, क्रोटन, बेगोनिया, टिकोमा (Tecoma stans), बेला, चमेली, और गरवेरा आदि हैं। इसके अलावा, उनके यहां नारियल,सीताफल, आंवला, अनार, अंगूर की बेल, अंजीर, अमरुद, नीम्बू, मौसम्बी, और लीची के भी पेड़ हैं। 

पेड़-पौधों से डॉ. बिनय को इतना लगाव है कि वह जन्मदिन, शादी या अन्य किसी आयोजन में लोगों को गुलदस्ते या फिर किसी दूसरे उपहार की जगह पौधे देती हैं। “अपनी पोती के जन्म पर हमने लीची का पौधा लगाया था। इस साल इस पर फल आये हैं। इसके अलावा कई तरह के औषधीय पौधे जैसे गिलोय भी हैं। आज भी अगर मेरे घर कोई आता है तो मैं उन्हें पौधे देती हूँ। क्योंकि हरियाली को आप जितना फैलाएं उतना अच्छा है,” उन्होंने कहा। 

घर के अंदर इतने सारे पेड़-पौधे होने के कारण ही उनके कैंपस में पक्षियों का आना-जाना लगा रहता है, जिनमें कोयल, बुलबुल, किंगफिशर, वाटर हैन और गौरैया शामिल हैं। उनके लिए उन्होंने बगीचे में घोसले भी लगाए हुए हैं। पक्षियों के अलावा, गिलहरी, मेढ़क, और सांप जैसे जंतु भी उनके बगीचे की सैर करते आपको दिख जाएंगे। 

जानवरों के प्रति भी डॉ. बिनय का खास लगाव है। उन्होंने बताया कि एक बार वह रास्ते में घूमने वाले एक नंदी बैल को खाना खिलाने गईं तो देखा कि उसकी आँख में चोट आई है। उन्होंने तुरंत जानवरों का इलाज करने वाली टीम से संपर्क किया और उन्हें बुलाया। उस नंदी बैल को उन्होंने ‘नंदू’ नाम दे दिया और नियमित रूप से उसकी देखभाल भी करती थीं।

“कई बार वह खुद ही मेरे पास आ जाता था और अपनी आँख दिखाता था। कई बार, वह हमारे बगीचे में उगी हुई घास भी चरकर गया है। उस समय हमें घास काटने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी। ऐसे में लोग अक्सर कहते थे आपको बैल से डर नहीं लगता? लेकिन मेरा मानना है कि जानवरों को आप जितना प्यार देंगे, उससे कहीं ज्यादा प्यार वे आपको देते हैं,” उन्होंने कहा। 

सहेजते हैं बारिश का पानी 

हरियाली के साथ-साथ, उन्होंने अपने घर में दूसरे प्राकृतिक साधनों पर भी काम किया है। घर के निर्माण के समय ही उन्होंने अपने घर में ‘रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ लगवाया था। यह ऐसा सिस्टम है जिससे बारिश का सभी पानी इकट्ठा होकर बोरवेल में चला जाता है और भूजल स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। यह परिवार हर साल दो लाख लीटर से ज्यादा बारिश का पानी सहेज रहा है। 

डॉ. बिनय ने बताया कि जब उनका परिवार इस घर में आया था तो अगर पानी कहीं फर्श पर गिर जाता तो थोड़ी देर में उस जगह पर एक सफ़ेद परत पड़ जाती थी। क्योंकि उस समय पानी में इतने ज्यादा मिनरल थे। लेकिन अब पहले से पानी की गुणवत्ता बहुत सुधर गयी है। और यह सिर्फ बारिश का पानी सहेजने के कारण हुआ है। बरसात का पानी सहेजने के अलावा, उनके घर में कई सालों से सोलर हीटर लगा हुआ है। इससे गर्म पानी के लिए उन्हें बिजली पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। अपने घर के कचरे को भी वह कभी डंपयार्ड में नहीं डालती हैं। 

“बहुत सालों से मैं कपड़े के थैले ही इस्तेमाल में ले रही हूँ। कोशिश करती हूँ कि जितना हो सके प्लास्टिक या पॉलिथीन का इस्तेमाल कम से कम हो। अगर कभी पॉलिथीन घर में आती भी हैं तो कचरे को अलग-अलग करके ही नगर निगम की कचरा गाड़ी में दिया जाता है। इससे कचरे का सही प्रबंधन करने में मदद होती है,” उन्होंने बताया। 

कुछ समय पहले उन्होंने अपने घर में बिजली के लिए ‘ऑन ग्रिड सौर सिस्टम’ भी लगवाया है। तीन किलोवाट की क्षमता वाले इस सौर सिस्टम से उन्हें साल भर में छह-सात महीने की बिजली मुफ्त मिल रही है। कौस्तुभ कहते हैं कि पहले बिजली का बिल लगभग साढ़े तीन-चार हजार रुपए तक आता था लेकिन अब यह आठ से 10 गुना तक कम हो गया है।

अगर कोई इस घर को देखे और इस परिवार की जीवनशैली को समझे तो यक़ीनन यही कहेंगे कि ‘घर हो तो ऐसा!’ यकीन मानिए आप और हम भी अपने घर को इस तरह से विकसित कर सकते हैं, बस जरूरत है तो अपने घर के हिसाब से कुछ इको-फ्रेंडली कदम उठाने की। जैसे अपने घर में उपलब्ध जगह और धूप के हिसाब से पेड़-पौधे लगा सकते हैं। हम बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल कर सकते हैं। और यह सब आपको एक साथ करने की जरूरत नहीं है, आप एक-एक कदम आगे बढ़ाइए और आपको सफलता अवश्य मिलेगी। 

संपादन- जी एन झा

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