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महिला IAS ऑफिसर की पहल, असम में पुरानी और बेकार 8000 प्लास्टिक की बोतलों से बनाया शौचालय

Reuse Plastic Bottles
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अगर हम सभी सही तरीके से, प्लास्टिक के कचरे का प्रबंधन करें तो लगातार बढ़ रहे प्लास्टिक प्रदूषण को बहुत हद तक रोका जा सकता है। साथ ही, पुराने और बेकार प्लास्टिक का फिर से इस्तेमाल करने से, दूसरे साधनों पर हमारी निर्भरता भी कम होगी। जैसे कि आजकल पुरानी प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल (Reuse Plastic Bottles), लोग घरों में बागवानी और निर्माण कार्यों (कंस्ट्रक्शन) में कर रहे हैं। असम के बोंगाईगांव जिले में एक सार्वजनिक शौचालय बनाने के लिए, प्रशासन द्वारा 8000 पुरानी और कबाड़ में पड़ी प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया गया है। 

बोंगाईगांव जिले की उपायुक्त डॉ. लक्ष्मी प्रिया एम एस, 2014 बैच की IAS ऑफिसर हैं। उन्होंने इस परियोजना की पहल की और इसे ‘पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट’ (PHED) के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर, शांतनु सूत्रधार ने पूरा किया। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए शांतनु ने कहा, “यह प्रक्रिया ज्यादा मुश्किल नहीं है। हम सभी बेकार प्लास्टिक की बोतलों को इकट्ठा करते हैं और इस्तेमाल करने से पहले, इन्हें अच्छी तरह से साफ किया जाता है। हर एक बोतल को रेत, सीमेंट, पुट्टी और चूना से भरा जाता है। इसके बाद, जब वे सख्त हो जाती हैं तो उनका इस्तेमाल ईंट के विकल्प के रूप में किया जाता है। इनके इस्तेमाल से, पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि बोतलें मजबूत हैं या नहीं?” वह कहते हैं कि शौचालय का फ्रेम नियमित बीम और कॉलम से बना है। इसकी दीवारें और छत पुरानी प्लास्टिक की बोतलों से बनी हैं। 

यह शौचालय 17 फीट लंबा और 9 फीट चौड़ा है, जिसे दो अलग-अलग भागों में बांटा गया है। जिसका एक भाग पुरुष तथा दूसरा भाग महिलाओं के इस्तेमाल के लिए है।

सार्वजनिक शौचालय

इस पूरे काम में लगभग दो महीने का समय लगा। इसके बारे में शांतनु कहते हैं, “हम काम में कोई जल्दबाजी नहीं चाहते थे इसलिए, हमें लगभग दो महीने का समय लगा। वैसे यह काम जल्दी भी हो सकता था। इस शौचालय में बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए रैंप तथा रेलिंग भी बनाई गई है।” 

असम के अभयपुरी में, प्लास्टिक की बोतलों से दूसरा शौचालय बनाने की योजना तैयार की गई है। इस पर शांतनु का कहना है कि हरेक ब्लॉक हेडक्वार्टर में बेकार प्लास्टिक की बोतलों के इस्तेमाल से, शौचालय बनाने की योजना है। भले ही शौचालय का बाहरी हिस्सा विभिन्न सामग्रियों से बना हो लेकिन, इसके रखरखाव के संदर्भ में शांतनु का कहना है कि इसे किसी अतिरिक्त देखभाल या रखरखाव की जरूरत नहीं है।

इस प्रोजेक्ट को शुरू करने वाली उपायुक्त IAS डॉ. लक्ष्मी प्रिया एम एस ने कहा, “जिले में हम कई परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं, जिनमें से एक है ‘कार्बन फुटप्रिंट’ कम करने की परियोजना। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, हमने इलाके में 1500 से ज्यादा सौर स्ट्रीट लाइट लगाई हैं और अब हम काफी कम इलेक्ट्रिक लाइट का इस्तेमाल करते हैं।” 

बोंगाईगांव नगर पालिका में 25 वार्ड हैं और उन सभी में कचरे को उसके प्रकार के हिसाब से, अलग-अलग किया जा रहा है। सभी बायोडिग्रेडेबल कचरे को इकट्ठा करके खाद बनाई जा रही है और जो कचरा रीसायकल किया जा सकता है, उसे रीसायकल कर, उपयोग में लिया जा रहा है। 

उद्घाटन के दौरान

वह कहती हैं, “साफ सार्वजनिक शौचालयों की जरूरत और बेकार प्लास्टिक की बोतलों के फिर से इस्तेमाल के तरीके को साथ में जोड़कर, इस शौचालय का निर्माण किया गया है।” बोंगाईगांव असम का एक प्रमुख इलाका है और यह एक प्रमुख व्यवसायिक, वाणिज्यिक और औद्योगिक केंद्र भी है। इस वजह से यहाँ काफी ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक का कचरा उत्पन्न होता है। शौचालय को बनाने में लगभग साढ़े छह लाख रुपए की लागत आई है। शांतनु कहते हैं कि इसे इस्तेमाल करने के लिए लोगों को एक न्यूनतम फीस देनी होगी ताकि इसका रखरखाव अच्छी तरह से हो सके। 

कैसे बनाएं प्लास्टिक की पुरानी बोतलों से शौचालय: 

छत में भी लगी हैं बोतलें

मूल लेख: विद्या राजा 

संपादन – जी एन झा

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