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मात्र 125 दिनों में बनाया ‘Mud House,’ कुल लागत सिर्फ 18, 500 रुपये

मैं जब बहुत छोटी थी तब गाँव में लोगों को गोबर और मिट्टी से घर लीपते हुए देखती थी। किसी के घर पर अगर छान/छप्पर/छाजन (छत) डालनी होती थी तो गाँव के 10-15 पुरुष इकट्ठा होकर यह काम कर देते थे। वह पहले का जमाना था जब परिवार के लोग खुद ही अपने रहने के लिए घर का निर्माण कर लिया करते थे। लेकिन आज शहर तो क्या गांवों में भी कोई इस तरह से मिट्टी के घर (Mud House) नहीं बनाता है। जबकि मिट्टी के बनाए घर, आज की बड़ी-बड़ी इमारतों से कहीं ज्यादा बेहतर होते हैं। 

पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल और रहने के लिए आरामदायक, मिट्टी के घर बनाने में लागत भी कम ही आती है। इसी बात को समझते हुए बेंगलुरु में रहने वाले 42 वर्षीय महेश कृष्णन ने मिट्टी का घर (Mud House) बनाने की पहल की है। हालांकि, महेश को मिट्टी के पारंपरिक घर बनाने की कोई जानकारी नहीं थी लेकिन कहते हैं कि अगर दिल में कुछ करने की चाह हो तो इंसान सबकुछ सीख ही लेता है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस पूरे अनुभव के बारे में बताया। 

महेश कहते हैं, “मैंने 10वीं तक पढ़ाई की है। इसके बाद, होटल इंडस्ट्री में नौकरी शुरू कर दी। मेरी शुरुआत छोटे लेवल से हुई थी, लेकिन जब इस इंडस्ट्री को छोड़ा तब बतौर ‘एग्जीक्यूटिव’ काम कर रहा था। मैंने बेंगलुरु के ले मेरिडियन होटल, ताज गेटवे होटल से लेकर दुबई में भी काम किया है।”

वह कहते हैं, “19 सालों तक अलग-अलग जगह काम करके मुझे ऊब होने लगी थी। साल 2015 में मैंने अपनी नौकरी छोड़ी। मैं सुकून भरी ज़िंदगी जीना चाहता था। इसलिए मैंने प्राकृतिक खेती से जुड़ने का फैसला किया और वहीं से मुझे प्रकृति के अनुकूल घर बनाने की प्रेरणा मिली।” 

Mahesh Krishnan

यूट्यूब देखकर की शुरुआत 

महेश बताते हैं कि नौकरी छोड़ने के बाद वह ‘सस्टेनेबल लिविंग’ पर काम कर रहे अलग-अलग संस्थानों के साथ जुड़ गए थे। इसके साथ ही, वह यूट्यूब पर ‘नेचुरल बिल्डिंग’ पर उपलब्ध अलग-अलग वीडियोज भी देख रहे थे। उन्होंने बताया, “साल 2019 में मैं चामराजनगर में अमृतभूमि संगठन के साथ वॉलंटियर कर रहा था, जब मुझे लगा कि मुझे एक मिट्टी का घर बनाना चाहिए। मैंने यह निर्णय ले लिया था कि मुझे इसी क्षेत्र में आगे बढ़ना है। इसलिए मैं खुद यह महसूस करना चाहता था कि क्या मैं अकेले मिट्टी का पारंपरिक घऱ बना सकता हूँ।” 

दिलचस्प बात यह रही कि महेश को उनके इस प्रयोग के लिए ‘अमृतभूमि संगठन’ ने अपने खेतों में एक जगह दे दी। ताकि वह जो भी घर बनाए, वह लोगों के लिए एक मॉडल की तरह हो और ज्यादा से ज्यादा लोग इससे सीख सकें। महेश ने अकेले ही 300 स्क्वायर फ़ीट जमीन पर काम किया। वह बताते हैं, “मैं एक साधारण सा पारंपरिक घर बनाना चाहता था, जिसमें कम समय और कम लागत लगे। साथ ही, मैं यह अनुभव करना चाहता था कि क्या कोई इंसान अकेले अपने रहने के लिए घर बना सकता है। इसलिए मैंने खुद ही यूट्यूब से जो कुछ भी सीखा, उसी के आधार पर सबसे पहले घर का डिज़ाइन बनाया और फिर निर्माण शुरू किया।” 

Using Clay and Coconut Thatch Roof

लगभग 50% निर्माण करने के बाद, महेश को लगा कि उन्हें कुछ एक्सपर्ट जानकारी की भी जरूरत है। इसलिए उन्होंने तिरुवन्नामलई में ‘थनल हैंड स्कल्पटेड होम‘ द्वारा आयोजित दो दिवसीय, ‘नेचुरल बिल्डिंग कॉमन मैन वर्कशॉप’ में भाग लिया।  इस वर्कशॉप से उन्हें काफी प्रैक्टिकल जानकारी मिली, जिसका प्रयोग उन्होंने खुद किया। वह आगे कहते हैं, “इस पूरे प्रोजेक्ट में लगभग 80% काम मैंने खुद किया और अन्य 20% कामों के लिए मैंने एक-दो लोगों से मदद ली। जैसे कि जब मुझे घर की छत डालनी थी तो मैंने पास के गाँव से दो लोगों की मदद ली। बीच में एक दो दिन मेरे परिवार वाले और दोस्त भी आये ताकि वे भी प्राकृतिक बिल्डिंग का अनुभव ले सकें।” 

किया लोकल रॉ मटीरियल का इस्तेमाल 

महेश ने घर के निर्माण में लोकल रॉ मटीरियल का इस्तेमाल किया है जैसे- मिट्टी, गोबर, बांस, पत्थर, धान की पराली, ताड़ के पत्ते आदि। उनकी निर्माण तकनीक भी प्रकृति के अनुकूल ही रही। उन्होंने इस मिट्टी के घर के निर्माण के लिए ‘wattle and daub‘ तकनीक को अपनाया। इस तकनीक में लकड़ियों और टहनियों की बाड़ बनाकर, इन्हें मिट्टी के गारे में मिलाया जाता है। घर की नींव के लिए उन्होंने पत्थरों का उपयोग किया तो दीवारों के लिए बांस और पुरानी लकड़ियों का इस्तेमाल किया। 

उन्होंने आगे बताया कि दीवारों के बनने के बाद, उन्होंने इस पर गोबर का प्लास्टर किया। फर्श के लिए उन्होंने पुरानी टाइलों का इस्तेमाल किया। घर की छत बनाने के लिए उन्होंने नारियल के पत्तों और छाल से बनी ‘छाजन’ का उपयोग किया। महेश कहते हैं कि उन्होंने बहुत ही कम चीजें जैसे बांस, पुरानी लकड़ियां, कील और छाजन बाजार से खरीदे। अन्य सभी चीजें उन्हें स्थानीय तौर पर ही मिल गयी थी। थनल के एक आर्किटेक्ट अखिल कहते हैं, “हमारी टीम, लोगों को अपने घर का निर्माण करने से पहले अपने इलाके की सही से जाँच-पड़ताल करने के लिए कहती है। लोगों को गांवों में बने पुराने घरों और इमारतों को देखना चाहिए। इससे उन्हें पता चलेगा कि किस तरह की चीजों का प्रयोग निर्माण के लिए किया गया है। उन्हें पुराने मिस्त्रियों और कारीगरों से भी मिलना चाहिए।” 

Plastering with Clay and Cow dung

महेश आगे कहते हैं कि उनके बनाए इस घर में उन्होंने खुद ही एक ‘रॉकेट स्टोव’ भी बनाया है। रसोई और लिविंग रूम को अलग करने के लिए, उन्होंने लकड़ियों और जूट का इस्तेमाल किया। घर के खिड़की-दरवाजे भी उन्होंने खुद ही बनाये और दीवारों पर अलग-अलग आकृतियां बनाकर इसे सजाने का काम भी महेश ने खुद ही किया है। वह बताते हैं कि उन्हें इस घर को बनाने में 125 दिन का समय लगा और कुल लागत 18,500 रुपए आयी। 

“मैं, मेरा परिवार और कुछ दोस्त भी इस घर में आकर रहकर गए हैं। इस घर के अंदर का तापमान काफी कम रहता है और आप गर्मी में भी आसानी से यहां समय बिता सकते हैं,” उन्होंने कहा। 

इस घर के पास ही उन्होंने एक किचन गार्डन भी लगाया था ताकि लोगों को शुद्ध सब्जियां भी मिले। महेश कहते हैं कि उन्होंने यह घर समुदाय के लिए बनाया है। कोई भी यहां आकर इसे देख सकता है और समय बिता सकता है। लेकिन अब वह अपने और अपने परिवार के लिए प्राकृतिक घर बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। 

Bamboo jute Bag Partition and Rocket Stove in Kitchen area

आगे वह कहते हैं कि अगर आप लागत को कम रखना चाहते हैं तो सबसे पहले जितना हो सके अपने इलाके के आसपास उपलब्ध मटीरियल को इस्तेमाल करें। दूसरा, निर्माण के हर स्तर पर खुद भागीदारी लें ताकि आपको चीजें समझ में भी आएं और आप बिना किसी जरूरत के इस्तेमाल होने वाली चीजों को निर्माण से निकाल सकें। थनल के फाउंडर और आर्किटेक्ट, बीजू भास्कर कहते हैं, “आजकल बहुत ही कम लोग हैं जो खुद अपना घर बनाते हैं। ऐसे में, महेश का काम काबिल-ऐ-तारीफ है।” 

महेश कहते हैं कि इस घर को पूरा करने के बाद उन्हें बेंगलुरु में एक सामुदायिक स्कूल के निर्माण में भी मदद करने का प्रोजेक्ट मिला था। लेकिन लॉकडाउन के कारण वह प्रोजेक्ट रुक गया। आगे उनकी योजना अपने खुद के लिए एक ‘सस्टेनेबल घर’ बनाने की है। वह कहते हैं कि जैसे ही परिस्थितियां बेहतर होंगी वे खेतों पर अपने परिवार के रहने के लिए एक प्राकृतिक घर बनाएंगे और वहीं, प्राकृतिक तरीकों से खेती करते हुए जीवन यापन करेंगे। अपनी इस योजना पर उन्होंने काम शुरू कर दिया है और उन्हें उम्मीद है कि वह दिसंबर 2021 तक अपने घर का निर्माण पूरा कर लेंगे। 

अगर आप महेश कृष्णन से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें makkris29@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन-जी एन झा

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