प्रकृति को हम जितने क़रीब से देखते हैं, उतने ही बेहतर तरीक़े से समझते हैं। आपने कभी न कभी, खेतों में या किसी गांव में बने मिट्टी के घर के बारे में तो सुना या पढ़ा होगा; लेकिन सीमेंट के घरों के लिए मशहूर किसी शहर में मिट्टी का घर! सुनकर भी अनोखा लगता है।
पुणे के कोथरूड इलाके की महात्मा सोसाइटी में आपको कंक्रीट के बनें घरों की भीड़ में एक ऐसा घर दिख जाएगा, जिसमें मिट्टी की खुशबू के साथ-साथ आधुनिकता की झलक भी दिखेगी। इस दो मंज़िला घर के मालिक हैं अन्वित फाटक, जो पिछले एक साल से इस घर में रह रहे हैं। आस-पास के घरों की तरह ही यहां भी किसी साधन की कमी नहीं है, लेकिन जो चीज़ इसे सबसे ख़ास बनाती है, वह है यहां रहनेवाले लोगों की सोच और प्रकृति के लिए उनका लगाव।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए अन्वित कहते हैं, “मिट्टी का घर बनाने से पहले, आपको ऐसे घर में रहने के लिए खुद को तैयार करना होगा। मैंने इसके फ़ायदों के साथ-साथ कई चुनौतियों को भी समझा। पूरी जानकारी के बाद, मैंने अपने लिए एक मिट्टी का घर बनाने का फैसला किया। मैं देखना चाहता था कि क्या ऐसा करना मुमकिन है?”
पिछले एक साल से, 38 वर्षीय अन्वित अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ इस ईको-फ्रेंडली घर में रह रहे हैं और इसे अपने जीवन का एक सही फैसला बताते हैं।
क्यों आया शहर में मिट्टी का घर बनाने का ख़्याल?
अन्वित, पुणे में ही एक स्कूल चलाते हैं। हमेशा से शहर में रहने के बावजूद, उन्हें प्रकृति से बेहद लगाव है, इसीलिए वह अपने जीवन को भी ईको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल तरीकों से जीने की कोशिश करते हैं। पर्यावरण की अहमियत को समझते हुए ही उन्होंने कुछ साल पहले इकोलॉजी का एक कोर्स भी किया था।
वह बताते हैं, “उस कोर्स के दौरान मैंने कई चीज़ें सीखीं, लेकिन सबसे अच्छी बात यह हुई कि उसी की वजह से मैंने एक पर्यावरण अनुकूल घर बनाने के बारे में सोचा।”
दरअसल, जब वह यह कोर्स कर रहे थे तो एक बार उनकी क्लास में मुंबई के एक आर्किटेक्ट, मलख सिंह आए। उन्होंने बताया कि कैसे लोग आज के ज़माने में भी मिट्टी की ईटों और बैम्बू वग़ैरह का इस्तेमाल करके घर बनाते हैं।
अन्वित कहते हैं कि उस समय वह अपनी ज़मीन पर घर बनाने की तैयारी भी कर रहे थे। उन्हें यह जानकर काफ़ी हैरानी हुई कि ऐसा भी किया जा सकता है। फिर उन्होंने इसके बारे में ज़्यादा जानकारियां इकट्ठा करना शुरू किया। उन्होंने पुणे की एक आर्किटेक्ट अनुजा नूतन से संपर्क किया। अनुजा भी इसी तरह के ईको-फ्रेंडली कंस्ट्रक्शन से जुड़ी थीं।
अन्वित ने अपनी 3500 स्क्वायर फ़ीट की ज़मीन पर आर्किटेक्ट अनुजा की मदद से एक ईको-फ्रेंडली घर बनाने का काम शुरू किया।
आसान नहीं था, मिट्टी का घर बनाने का फैसला
अन्वित कहते हैं कि सुनने में भले ही मिट्टी का घर हर किसी को बढ़िया लगता है, लेकिन जब आप इसे बनाना शुरू करते हैं तो कई तरह की दिक्क़तें सामने आती हैं। अन्वित की आर्किटेक्ट ने इन सभी मुश्किलों के बारे में उन्हें पहले से आगाह कर दिया था।
उन्होंने बताया, “अनुजा ने मुझे बताया था कि एक नार्मल कंक्रीट के घर की तरह यह घर ज़्यादा बड़ा नहीं बनेगा, दीवारों में ज़्यादा अलमारियां वग़ैरह नहीं बन पाएंगी और मिट्टी की दीवारें काफ़ी मोटी होती हैं इसलिए फ्लोर एरिया कम हो जाएगा। इतना ही नहीं, एक कील लगाने के लिए भी काफ़ी मेहनत करनी होगी।”
इसके बावजूद अन्वित और उनकी पत्नी ने ईको-फ्रेंडली तकनीक पर विश्वास करते हुए, मिट्टी के घर में रहने का फैसला किया।
उन्होंने 2018 में इस घर को बनाने की शुरुआत की थी, जिसमें छत बनाने के लिए मिट्टी की ईंटों और बैम्बू का इस्तेमाल किया गया है। सभी दीवारों पर अंदर और बाहर की तरफ मिट्टी का प्लास्टर किया गया है। तीन कमरों वाले इस घर में नीचे के हिस्से की फ़र्श मिट्टी की ही है, जबकि पहली मंज़िल पर लकड़ी से फ्लोरिंग की गई है।
इस घर में प्राकृतिक साधनों का ही होता है इस्तेमाल
पर्यावरण अनुकूल साधनों से जब अन्वित अपना घर बना रहे थे, तब आस-पास के कई लोग बातें बनाते थे। कइयों ने उनका मज़ाक उड़ाते हुए यह भी कहा कि क्यों नए घर को इस पुरानी तकनीक से बना रहे हो। वह खुद भी जब अपना कंस्ट्रक्शन देखने जाते तो उन्हें सभी कमरे काफ़ी छोटे-छोटे लगते थे। तब उनकी आर्किटेक्ट उन्हें यह कहकर समझाती थीं कि इसे छोटा नहीं ‘कोज़ी’ (cozy) कहते हैं।
आज एक साल से इस घर में रहते हुए, अन्वित उस कोज़ीनेस को बहुत अच्छी तरह समझ गए हैं।
यहां उन्होंने नैचुरल लाइट का भी इंतज़ाम किया है, जो उनके घर के सभी कमरों में अच्छे से मिलती है। इस वजह से लाइट्स जलाने की ज़रूरत कम ही पड़ती है। वहीं, मिट्टी के प्लास्टर की वजह से ठंडक भी आम घरों से ज़्यादा है।
अन्वित ने अपने घर में बारिश का पानी जमा करने के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग का इंतज़ाम भी किया है। गर्म पानी के लिए वह सोलर हीटर का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही, उनके घर में एक किचन गार्डन भी है, जहां उन्होंने अपने इस्तेमाल के लिए मौसमी सब्जियां और कुछ फलों के पेड़ भी उगाए हैं।
अन्वित बताते हैं, “मैं बचपन से ही कंक्रीट के बने घरों में रहा हूँ, लेकिन पिछले एक साल से मेरी जीवनशैली और इस घर से मिला अनुभव वाक़ई में अद्भुत है। इसे शब्दों से बयां कर पाना मुश्किल है।”
संपादन: भावना श्रीवास्तव
यही भी पढ़ेंः “IIT से ज़्यादा मुश्किल है मिट्टी का घर बनाना!” विदेश की नौकरी छोड़ गाँव में बस गया यह कपल