केरल के कोट्टायम की हरी-भरी पहाड़ियों के बीच मैंगलोर-टाइल से बने इस बंगले की खूबसूरती देखते ही बनती है। 4-बेडरूम वाले इस बंगले को इकोहाउस के नाम से जाना जाता है। इसका डिजाइन कुछ इस तरह का है कि यहाँ आपको कड़ी धूप और गर्मी का अहसास नहीं होगा।
त्रावणकोर की पारंपरिक वास्तुकला से प्रेरित इस बंगले में काफी फ्री-फ्लोइंग स्पेस और बड़ी खिड़कियाँ हैं। एक तरफ मॉर्डन आर्किटेक्चर का इसमें ध्यान दिया गया है वहीं सूरज की रोशनी के लिए घर में आँगन का भी स्पेस रखा गया है।
यह घर पूरी तरह से क्लाइमेट रिस्पांसिब है, जो कमरों में अपना खुद का माइक्रॉक्लाइमेट का निर्माण कर लेता है। इस घर का निर्माण अमृता किशोर ने किया है, जो स्थानीय और ससटेनेबल आर्किटेक्चर को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने वाली आर्किटेक्चरल फर्म एलिमेंटल की संस्थापक भी हैं।
इस घर में 7,500 लीटर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के साथ ही, कम्पोस्टिंग सिलेंडर की भी व्यवस्था की गई है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कालीकट (2016) और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम (2018) से पढ़ाई करने वाली अमृता के लिए यह घर बेहद खास है, सिर्फ इसलिए नहीं कि यह उनकी पहली स्वतंत्र परियोजना है, बल्कि इसलिए भी कि यह घर उन्होंने अपने माता-पिता के लिए बनाई है।
अमृता, जिन्हें 2019 में रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स प्रेसिडेंट अवार्ड के लिए नामित किया गया था, द बेटर इंडिया से कहती हैं, “मेरे माता-पिता केरल में पले-बढ़े और नौकरी के लिए दुबई चले गए। दोनों दुबई में अपनी जिंदगी से काफी खुश हैं, लेकिन उन्हें हमेशा घर की याद आती है। उनका सपना था कि एक ऐसा घर हो, जिसमें बड़ा सा आँगन हो, बागवानी की भी जगह हो।”
सभी मूलभूत संसाधनों से परिपूर्ण यह घर उन्हें त्रावणकोर के भव्य महलों की याद दिलाता है। घर में खुले स्पेस को प्रमुखता दी गई है, साथ ही इसमें ज्यादा सजावटी कार्य नहीं किए गए हैं। इस घर को बनाने काम 2018 में शुरू हुआ था और साल भर के भीतर यह तैयार भी हो गया।
अमृता के पिता के.एम. पट्टासेरी कहते हैं, “हमारी मुख्य आवश्यकता केरल के पारंपरिक घरों की तरह अच्छी हवा और रोशनी सुनिश्चित करनी थी, ताकि हम बिना एसी के रह सकें।”
एक आत्मनिर्भर घर
यह घर पूरी तरह से नैचुरल है। यहाँ कुछ भी सजावटी नहीं दिखता है। घर में नैचुरल वेंटिलेशन है। यहाँ गर्मी में एसी की जरूरत नहीं पड़ती है। अधिकांश निर्माण सामग्री स्थानीय है। सब्जी और फल के लिए बागवानी तैयार किया गया है। इस तरह यह घर पूरी तरह आत्मनिर्भर है।
अमृता ने इस घर बनाने में मैंगलोर टाइल्स और आग में पके हुए मिट्टी के ईंटों, आदि जैसे स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल किया है। लागत कम होने के अलावा, इन संसाधनों के इस्तेमाल से परिवहन में कटौती हुई, जिससे कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिली।
गौरतलब है कि मैंगलोर टाइल लाल मिट्टी का होता है और यह काफी मजबूत भी होता है।
अमृता बताती हैं, “मैंगलोर टाइल्स की वजह से गर्मी में घर ठंडा और सर्दी के मौसम में गर्म रहता है। हमने टाइल के ऊपर पॉलिश आदि नहीं किया है।”
स्थानीय ईंट से घर की दीवारें बनाई गई है जो घर को ग्रामीण रूप देता ही है साथ ही ईंट की वजह से दीवार पर नमी, घुन आदि का कोई असर नहीं होता है। इस प्रकार, इनके रखरखाव की ज्यादा जरूरत नहीं होती है और ये काफी टिकाऊ होते हैं।
इस घर के भीतरी हिस्से में, ऊँचे छत और डिजाइन सबसे खास हैं।
रसोई की खिड़कियों से लेकर विंड टावर तक काफी आकर्षक हैं। अमृता ने घर का इंटिरियर डिजाइन शानदार ढंग से किया है।
अमृता बताती हैं, “सीढ़ी के पास विंड टॉवर का निर्माण फिजिक्स के ‘स्टैक इफेक्ट’ के तहत किया गया है। कम दबाव वाली विशेषताओं के कारण इससे गर्म हवाएं निकलती है। इसमें गर्म हवा को निकालने के लिए चार खिड़कियाँ होती है। इसका इस्तेमाल कम होता है, लेकिन यह घर को ठंडा रखने की एक सरल विधि है।”
टॉयलेट और कमरे के बीच एक्जहॉस्ट फैन लगाए गए हैं, ताकि बदबू के साथ-साथ गर्म हवा भी घर से बाहर निकल जाए।
धूप से घर का भीतरी हिस्सा गर्म क्यों नहीं होता?
इसके बारे में अमृता बताती हैं, “छत की शेडिंग को सामान्यतः 0.6 मीटर के मुकाबले हर तरफ से 1.5 मीटर तक बढ़ाया गया है। इससे घर को पर्याप्त छाया मिलती है और धूप को सीधे आने से रोकती है।”
पैसिव कूलिंग तकनीकों को अपनाने के कारण उन्हें बिजली की खपत और अन्य लागतों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। उनके बिजली बिल में करीब 20 प्रतिशत की कमी आई है।
अंत में अमृता के पिता कहते हैं, “इस घर में हरियाली, पर्याप्त धूप और निरंतर सुहानी हवा के प्रवाह के कारण हम अधिक स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस करते हैं।”
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मूल लेख – (GOPI KARELIA)
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