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लोगों ने जिन्हें कहा भंगारवाली, प्लास्टिक बोतलें इकट्ठा कर उन्होंने बना डाला ईको-फ्रेंडली घर

रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हम कई बार प्लास्टिक की बोतल का इस्तेमाल करते हैं। खासकर तब जब हम कहीं बाहर जाते समय घर से बोतल में पानी लेकर नहीं चलते। प्लास्टिक की इन बोतलों को उपयोग के बाद कई लोग यहाँ-वहाँ या कचरे में फेंक देते हैं, जो पर्यावरण के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है। 

भारत सालाना लगभग 34 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन करता है, जो बायोडिग्रेडेबल नहीं होता और न रीसायकल किया जा सकता है। ऐसे में, इस समस्या के समाधान के लिए औरंगाबाद की दो सहेलियों नमिता कपाले और कल्याणी भारम्बे ने एक अनोखा तरीका निकाला और 16000 प्लास्टिक की बोतलों से एक ईको-फ्रेंडली घर बना डाला।

गोबर, मिट्टी और प्लास्टिक से बने ईको-ब्रिक्स 

दौलताबाद के पास संभाजी नगर में स्थित यह घर ‘वावर’ करीब 4000 स्क्वायर फ़ीट में फैला हुआ है। इसे बनाने में 12 से 13 टन नॉन-साइकिलेबल प्लास्टिक के अलावा गोबर और मिट्टी का भी इस्तेमाल किया गया है, जो इसे पूरी तरह ईको-फ्रेंडली बनाते हैं।

इस घर में दो खुले और हवादार कमरे हैं और बाहर की ओर प्लास्टिक बोतलों से ही एक छोटी-सी झोपड़ी भी बनाई गई है। यहाँ के दरवाज़े, खिड़की और छत को भी बांस और लकड़ी जैसे ईको-फ्रेंडली मटेरियल्स से बनाया गया है। 

2020 में नमिता और कल्याणी ने औरंगाबाद के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड डिज़ाइन से फाइन आर्ट्स में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। कॉलेज के दिनों से ही वे दोनों एक सस्टेनेबल और ईको-फ्रेंडली घर बनाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए रिसर्च शुरू की और 2021 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उन्हें गुवाहाटी, असम के पमोही गाँव में स्थित अक्षर स्कूल के बारे पता चला। इस स्कूल ने खाली प्लास्टिक की बोतलों में सीमेंट को भरके छात्रों की सीट बनाई थी। 

23 वर्षीय नमिता द बेटर इंडिया को बताते हैं, “इससे प्रेरित होकर हमने सड़क, होटलों, दुकानों और कबाड़ी वालों से प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा शुरू कर दिया।”

शुरुआत में लोगों को भी उनकी यह पहल समझ नहीं आई। इसलिए नमिता और कल्याणी को लोग कई बार भंगारवाली, कचरेवाली, बोतलवाली कहकर भी बुलाते थे। लेकिन जैसे-जैसे घर का काम आगे बढ़ा, सभी दोनों सहेलियों के इस अनोखे आईडिया को समझते हुए उनका सम्मान करने लगे। 

कैसे बना प्लास्टिक का यह घर?

दोनों ने कुल मिलाकर लगभग 16,000 प्लास्टिक की बेकार बोतलें इकट्ठा कीं। उन्होंने 10,000 बोतलों को मल्टी-लेयर प्लास्टिक से और बाकी 6,000 को मिट्टी से भर दिया। अब प्लास्टिक की बोतलों को प्लास्टिक की थैलियों में भरकर, अतिरिक्त हवा को निकाल दिया और बोतल को पैक कर दिया गया।

इन्हें एक के ऊपर एक लगाकर ‘वावर’ का ढांचा तैयार किया गया। नमिता बताती हैं कि औरंगाबाद के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में सिविल लैब इंजीनियरों ने इन प्लास्टिक की बोतलों की गुणवत्ता की जांच भी की। और जुलाई 2021 में उनकी बनाई ईको-ब्रिक की दीवार को परखने के लिए ट्रायल किया गया। 

इसे बनाने में सीमेंट की जगह, ख़ास क़िस्म की पोयटा मिट्टी का इस्तेमाल किया गया है जिसके कारण यह घर काफ़ी मजबूत भी है। साथ ही, यहाँ किसी भी मौसम में AC या हीटर की ज़रूरत नहीं पड़ती। मिट्टी और प्लास्टिक के इस घर को बनाने में सिर्फ़ 700 रुपये प्रति वर्ग फुट का खर्च आया है, जो आम घरों की लागत के मुकाबले लगभग 50% कम है। 

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