ऑरोविल प्लॉट के बीच में काजू का एक पेड़ था, जहां केदार अपने सपनों का घर बनाना चाहते थे। उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए अपने दोस्त हरिनी राजा और अनुपमा बोथिरेड्डी से संपर्क किया, जो पेशे से आर्किटेक्ट हैं और चेन्नई के ‘स्टूडियो डिकोड’ के सह-संस्थापक हैं। उन्हें कहा गया कि बिना पेड़ को नुकसान किए एक ऐसा घर बनाया जाए जो देखने में 100 साल पुराना लगे।
हरिनी ने द बेटर इंडिया को बताया, “ऑरोविल में पुरानी लकड़ियां, पिलर आदि चीजों की कमी नहीं थी। वहां निर्माण कार्य से संबंधित ढेर सारी पुरानी चीजें थी। हमने पता किया कि शहर में और क्या क्या मिल सकता है। निर्माण कार्य में पुरानी चीजों का हमने इस्तेमाल किया। जिन जगहों पर हम पुरानी सामग्री जैसे ग्लास पैन्स (कांच) का उपयोग नहीं कर सकते थे, वहां हमने रंगीन बोतलों को रिसाइकिल किया और उससे खिड़कियों को अलग रूप दिया। इस बिल्डिंग में लगभग 90% रिसाइकल की हुई सामग्री का इस्तेमाल किया गया।”
इससे न सिर्फ केदार के सपनों का घर बना बल्कि इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद एक आर्किटेक्ट फर्म के रुप में स्टूडियो डिकोड का काफी नाम हुआ और लोगों को यह पता चला कि रिसाइकल मैटेरियल से किस तरह हम उन कलाओं को जीवंत कर सकते हैं, जिसका इस्तेमाल हमने निर्माण कार्य में छोड़ दिया है।
2008 में अपनी शुरुआत के बाद से इस फर्म ने 50 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम किया है। यह फर्म लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखकर उनके लिए आरामदायक घरों का निर्माण करता है।
चेन्नई आर्किटेक्ट के बारे में:
हरिनी और अनुपमा दोनों ने चेन्नई के एसआरएम विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। दोनों ने ही लंदन में ग्रीनविच विश्वविद्यालय मास्टर्स की डिग्री ली है।
अनुपमा ने लैंडस्केप आर्किटेक्चर में एमए किया, जबकि हरिनी ने एक साल बाद अर्बन डिजाइन में एमए किया। एक साल बाद (2007 में) हरिनी के लौटने के बाद, दोनों ने अपने गृहनगर चेन्नई में एक आर्किटेक्चर फर्म की शुरूआत की।
हरिनी बताती हैं, “हमारा उद्देश्य एक ऐसे प्लेटफॉर्म को खड़ा करना था, जिसके काम में सादगी हो। हम इटली से संगमरमर या ब्राजील से लकड़ी आयात नहीं करना चाहते थे। हम निर्माण कार्य में स्थानीय श्रमिक, संसाधन, कला, शिल्प आदि को शामिल करना चाहते थे। हमने ऑरोविल में केदार के लिए जो घर बनाया, उसमें हमें अपने हुनर को दिखाने का मौका मिला।”
2008 में शुरू हुई इस कंपनी में आज प्रतिभाशाली आर्किटेक्ट, सलाहकार और कुशल कारीगर हैं। हरिनी ने बताया, “साल में एक बार हम आर्किटेक्चर के छात्रों को 5 से 6 महीने के लिए इंटर्नशिप का मौका देते हैं। हम हर प्रोजेक्ट में कम से कम 3 या 4 विभिन्न प्रकार के कुशल मजदूरों या कारीगरों को आजीविका प्रदान करने की कोशिश करते हैं। ”
घरों के टिकाऊपन के लिए टिप्स
हर घर का टेम्पलेट अलग होता है। अभी तक स्टूडियो डिकोड के प्रोजेक्ट अनोखे रहे हैं। इसके लिए वे इन ख़ास सुझावों पर जोर देते हैं:
- जहां तक संभव हो बिना पेंट वाली ईंट की दीवारें ही बनवाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि दीवारों को पेंट करने के लिए हम जिस वॉल पेंट का इस्तेमाल करते हैं उसमें कई तरह के रसायन मौजूद होते हैं जो न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं, बल्कि दीवार को पेंट करने वाले लोगों के लिए भी हानिकारक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार गीले पेंट के नियमित संपर्क में आने वालों में कैंसर की संभावना 20-40 प्रतिशत होती है।
- नैचुरल प्लास्टर जैसे कि लाइम प्लास्टर, मड प्लास्टर और ऑक्साइड प्लास्टर का जहा भी संभव हो, इस्तेमाल करें।
- खिड़कियां ऐसी जगह पर होनी चाहिए जहां से हवा और धूप या रोशनी आ जा सके। हमने देखा है कि जिन घरों में सही ढंग से बड़ी खिडकियां लगी होती हैं, वहां दिन में आधे टाइम ही एसी चलाना पड़ता है।
- घर में वेंटिलेटर रहना चाहिए। इस कारण से एसी सामान्य से कम समय के लिए चलाना पड़ता है। इसकी वजह से चेन्नई और ऑरोविले जैसी जगहों पर आराम से रहा जा सकता है जहां दिन में तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहता है।
- रोशनदान या फिक्स विंडो : इन्हें इस तरह से डिजाईन किया जाता है जिससे ऊँची छत वाली जगहों पर आसानी से अंदर तक रोशनी आ सके। उन जगहों पर जहाँ खुली हवा अंदर आने के लिए ओपन विंडो नहीं लगाये (ऊंचाई के कारण) जा सकते वहां हम अंदर तक धूप आने के लिए फिक्स विंडो लगाने का सुझाव देते हैं।
- छत के लिए फिलर स्लैब: फिलर स्लैब एक ऐसी अनोखी तकनीक है जिसमें स्लैब या छतों के निर्माण में सीमेंट का कम से कम उपयोग किया जाता है। स्लैब के अंदरूनी भाग (आपके घर के अंदर) में कंक्रीट वाले हिस्से में हम फिलर मटेरियल का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि मिट्टी के बर्तन। यह आपकी छत को एक अलग और अनोखा रूप भी देता है।
- फेरोसीमेंट सीढ़ी और फेरो-सीमेंट फर्नीचर: फेरोसीमेन्ट एक निर्माण प्रणाली है जिसमें निर्माण को हल्का बनाने के लिए रेनफोर्स्ड मोर्टार और स्टील या लोहे की जाली का उपयोग किया जाता है। हरिनी ने कहा कि इस पद्धति से वे ठोस सीढ़ियां बना सकती हैं जो काफी मजबूत होते हैं लेकिन बहुत भारी नहीं हैं। इसमें पारंपरिक सीढ़ियों की तुलना में कम सीमेंट का उपयोग किया जाता है।
- इको-फ्रेंडली फर्श जैसे कि ऑक्साइड फ्लोरिंग : कारीगरों की आजीविका को प्रोत्साहित करने के लिए अथांगुडी टाइल्स फर्श; या कभी-कभी नेचुरल स्टोन फ्लोरिंग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
शहर के बीच में एक शांतिपूर्ण जगह
केदार का घर अपने पुराने जमाने वाले आकर्षण की वजह से इनका पसंदीदा है, वहीं मधु बोप्पना का निवास भी उनका एक बड़ा प्रोजेक्ट था।
मधु बोपन्ना चेन्नई के एक एमएनसी के कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट में काम करते हैं। वह एक ऐसी जगह में घर बनाना चाहते थे जहां उनका परिवार शहर की हलचल से दूर फुर्सत के कुछ पल बिता सके और इसके लिए वह हरिनी और अनुपमा के पास पहुंचे।
मधु कहते हैं, “मैं एक ऐसा घर चाहता था जो ट्रैफिक से दूर और प्रकृति के बेहद करीब हो। मेरा मानना है कि दीवारें लोगों को बांट देती हैं। इसलिए हमारे दो-मंजिला घर में अंदर सिर्फ 3-4 दीवारें हैं। उनमें से ज्यादातर दीवारों में प्लास्टर या पेंट नहीं किया गया है। ”
तीन कमरों वाले इस घर का निर्माण 2017 में शुरू हुआ और पूरा होने में लगभग एक साल लगा। मधु और उनके परिवार का यह आशियाना प्रकृति के बेहद करीब है।
अपने इस घर के बारे में मधु बताते हैं, “हमने फिलर स्लैब तकनीक का उपयोग किया, हालांकि मुझे यकीन नहीं था कि यह किसी भी तरह से गर्मी में मदद करेगा। लेकिन अभी इस घर में हम दूसरी बार गर्मियों का मौसम बिता रहे हैं और सच में हमें उस तकनीक का योगदान नजर आता है। यह घर बाहर की अपेक्षा 4 से 6 ° C ठंडा रहता है। गर्मी बढ़ने पर बेशक हमें थोड़ी मुश्किल होती है और हमें अपने कमरे में एसी चलाना पड़ता है। लेकिन कॉमन एरिया में इसकी आवश्यकता नहीं है। हम 800 वर्ग फुट के घर में रहते थे और अब हम 2000 वर्ग फुट जगह में रहते हैं। फिर भी हम अपना बिजली का बिल 20 प्रतिशत बचा लेते हैं। ”
स्टूडियो डिकोड ने वेल्लोर, पेरुन्दुरई (जिला इरोड), कोटागिरी (द नीलगिरी) में भी प्रोजेक्ट शुरू किया है और हर प्रोजेक्ट में वे शहरी जीवन को प्रकृति के करीब लाते हैं।
यदि आप अपने नए घर के लिए निर्माण से जुड़ी जानकारी की तलाश कर रहे हैं, तो हरिनी और अनुपमा से संपर्क करें। आप studio.dcode@gmail.com पर ईमेल भेज सकते हैं।
मूल लेख- तन्वी पटेल
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