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एक और महावीर और गीता – मिलिए कुश्ती में लडको को पछाड़ने वाली महिमा राठोड से!

हाल ही में रिलीज़ हुई दंगल फिल्म को देखकर हम सभी भावुक हुए, पर 16 साल की महिमा जब ये फिल्म अपने पिता के साथ देखने गयी तो उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। कारण था फिल्म में दिखाए महावीर सिंह फोगाट का अपनी बेटियों के लिए किया गया संघर्ष जो की हु-ब-हु महिमा के पिता राजू राठोड की कहानी से मिलती जुलती है।

राजू राठोड पेशे से एक किसान है पर किसी ज़माने में वो एक पहलवान हुआ करते थे। उनके पुरे परिवार ने कई पुश्तों से पहलवानी ही की थी।

उनके दादा,  उनके पिता और उनके आठ चाचा, और फिर वो और उनके छोटे भाई संतोष राठोड पहलवानी में अपना सिक्का जमा चुके थे। राजू के दादाजी के ज़माने तक तो पहलवानी से ही घर चल जाता था पर उनके पिता और चाचाओं को दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए दूसरों के खेतो में मजदूरी करनी पड़ी। पर उनमे से किसी ने अपने खानदानी पेशे को नहीं छोड़ा।

जब राजू और उनके भाई थोड़े बड़े हुए तो वे दोनों भी अपने पिता और चाचाओं के साथ पहलवानी करने लगे। दोनों ही भाईयों ने राज्य स्तर पर मेडल भी जीते पर फिर बात वही दो वक़्त की रोटी कमाने पर आकर रुक गयी। राजू भी खेतो में मजदूरी करने लगे और फिर पेट की मार ने धीरे धीरे पहलवानी छुडवा दी।

“पहलवानी करने के लिए बहुत अच्छे डाइट की ज़रूरत होती है। हमारे लिए तो दो वक़्त की रोटी भी मिल पाना मुश्किल था फिर पहलवानी कैसे करते।“ – राजू राठोड भावविभोर होकर बताते है।

जल्द ही अपनी मेहनत के दम पर राजू ने 3 एकर ज़मीन खरीद ली पर अब भी फसल उतनी ही होती जिससे बस अपने परिवार का गुज़र बसर कर सके। लेकिन पहलवानी तो उनके खून में थी तो अब वो सपना देखने लगे कि जैसे ही उनका बेटा होगा, वो उसे पहलवान ज़रूर बनायेंगे। पर फिर…

दंगल में दिखाए महावीर सिंह फोगाट की ही तरह उन्हें भी बेहद निराशा हुई जब उन्हें पता चला कि उनकी पहली संतान एक लड़की है।

महिमा राठोड

इसके बाद उनके भाई के घर भी एक बेटी पैदा हुई और दोनों ही भाई निराश हो गए!

“एक रोज़ मैं और मेरा भाई बाते कर रहे थे। वो कह रहा था कि भैया इश्वर ने हमे बेटियां देकर हमारे साथ बहुत नाइंसाफी की है। पर बातो बातो में ही उसे सान्तवना देने के दौरान ही हमे लगा कि क्यूँ न हम अपनी बेटियों से ही पहलवानी करवाए! ये दस साल पुरानी बात है और उस वक़्त हमे फोगाट बहनों या महावीर सिंह फोगाट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हमारे गाँव में तो क्या हमारे पुरे जिले में कोई लड़की पहलवानी नहीं करती थी। पर हम भाईयों ने ठान लिया कि हम ये खानदानी हुनर अपनी बेटियों को ज़रूर सिखायेंगे।“

इसके बाद राजू और संतोष ने अपनी बेटियों को पहलवानी के सारे गुर सिखा दिए। पर करीब पांच साल पहले एक दुर्घटना में संतोष की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी बेटी का लक्ष्य बदल गया और अब वो डॉक्टर बनना चाहती है। राजू ने भी उसकी इच्छा के मुताबिक़ उसे अपना करियर चुनने दिया।

अब पुरे गाँव में राजू की बेटी महिमा अकेली लड़की थी जो दंगल लड़ने के लिए अखाड़े में उतरती थी। लोग मज़ाक उड़ाते, अजीब अजीब नामो से बुलाते, उटपटांग बाते करते पर राजू रुकने वालो में से नहीं था।

“कोई लड़का महिमा के साथ कुश्ती लड़ना नहीं चाहता था तो मैं कुछ लडको को कभी पांच तो कभी दस रुपये देकर, या कभी खाने की कोई अच्छी चीज़ खिलाकर उनसे कुश्ती लडवाता था।“ – राजू बताते है।

धीरे धीरे महिमा लडको को पछाड़ने लगी और दुसरे गाँवों में जाकर दंगल लड़ने लगी। आखिर जब वो तालुका स्तर तक पहुँच गयी तब जाके उसे लड़कियों के साथ कुश्ती लड़ने का मौका मिला। और इसके बाद उसने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

16 साल की महिमा आज राष्ट्र स्तरीय खिलाड़ी है। और यहाँ तक वो किसी भी  प्रोफेशनल ट्रेनिंग और डायटीशियन की मदद के बगैर पहुंची है।

अब तक उसके कोच उसके पिता राजू राठोड ही रहे है। ये महिमा की मेहनत और राजू की लगन का ही नतीजा है कि पिछले साल भुवनेश्वर में हुए राष्ट्रिय कुश्ती स्पर्धा में महिमा ने रजत पदक जीता।

“गांववाले आज भी हमारा मज़ाक उड़ाते है, पर मेरे बाबा उन्हें जवाब दे देते है और मेरा हौसला बनाये रखते है। उनसे मैंने एक ही बात सीखी है कि जीवन में कभी भी हार नहीं माननी है।“ – महिमा पुरे जोश के साथ 2016-17 के राष्ट्र स्तरीय खेलो की तयारी करते हुए कहती है।

पर इससे आगे बढ़ने के लिए महिमा को व्यावसायिक प्रशिक्षण और अच्छे खान पान की ज़रूरत होगी, जो दिला पाना उनके किसान पिता के लिए संभव नहीं है।

यदि आप महिमा की मदद करना चाहते है तो यहाँ  क्लिक करके केटो के ज़रिये उनकी मदद कर सकते है।

आपके थोड़े से सहयोग से क्या पता महिमा राठोड के रूप में देश को एक और गीता फोगाट मिल जाये!

इस वीडियो में देखिये कैसे महिमा लडको को अखाड़े में पछाड़ती है –

 

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