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क्रिकेट के ‘रन मशीन’ विराट को तो जानते हैं, अब जानें बास्केटबॉल के ‘स्कोर मशीन’ खुशी राम को!

‘बास्केटबॉल का जादूगर’ और ‘एशिया की स्कोरिंग मशीन’ जैसे उपनामों से जाने जाने वाले खुशी राम, मशहूर भारतीय बास्केटबॉल खिलाड़ी और कोच थे। उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी यह पहचान उस जमाने में बनाई, जब खेलों में करियर बनाने से बहुत से लोग कतराते थे।

हरियाणा के झज्जर जिले में झामरी गाँव से ताल्लुक रखने वाले खुशी राम, 7 अगस्त 1936 को पैदा हुए थे। 6 फीट 4 इंच की लंबाई वाले इस बास्केटबॉल खिलाड़ी ने बास्केटबॉल को न सिर्फ़ भारत में मशहूर किया, बल्कि भारतीय बास्केटबॉल टीम को पूरे विश्व में एक नया मुकाम दिया।

खुशी राम

हालांकि, उनका रिश्ता सबसे पहले भारतीय सेना से जुड़ा, साल 1950 में उनकी नियुक्ति राजपुताना राइफल्स में हुई। यहीं पर उन्होंने बास्केटबॉल खेलना शुरू किया। खुशी राम को इस खेल की बारीकी उनके उस्ताद और सेना के एक सूबेदार मूलचंद ने सिखायीं। शारीरिक क्षमता के साथ-साथ खुशी राम की मानसिक और बौद्धिक क्षमता भी बहुत तेज़ थी।

सिर्फ़ 2 साल के प्रशिक्षण के बाद ही उन्होंने ‘आर्म्ड फोर्सेस बास्केटबॉल टीम’ के साथ अपना नेशनल डेब्यू किया। इस टीम ने दस साल तक लगातार नेशनल टूर्नामेंट जीते और इस पूरे दशक में खुशी राम को हर बार ‘सबसे अच्छे खिलाड़ी’ का ख़िताब मिला।

उनकी इन उपलब्धियों ने उन्हें भारत के मशहूर खिलाड़ियों की फ़ेहरिस्त में ला खड़ा किया। अपनी शूटिंग क्षमता के लिए विख्यात खुशी राम का चयन भारत की नेशनल बास्केटबॉल टीम के लिए हुआ और साल 1964 में उन्होंने अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट खेला। कोलंबो में आयोजित चौथे क्वार्ड्रैंगुलर टूर्नामेंट में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया।

इसके एक साल बाद ही, उन्हें नेशनल टीम का कप्तान बना दिया गया और साल 1965 में उनके नेतृत्व में टीम ने कुआला लम्पुर में आयोजित एशियाई बास्केट बॉल चैम्पियनशिप में भाग लिया। इस चैंपियनशिप में भारत ने 7वीं रैंक प्राप्त की और खुशी राम ने इस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा स्कोर किये थे। इसके बाद से ही उन्हें ‘एशिया की स्कोरिंग मशीन’ कहा जाने लगा।

हालांकि, बास्केटबॉल के इस जादूगर ने अपना सबसे बेहतर खेल साल 1970 में फिलीपिंस में खेला। यहाँ भारतीय टीम को खास निमत्रंण पर खेलने के लिए बुलाया गया था। भारत के अलावा इस टूर्नामेंट में और भी बहुत से देशों से टीम आई थीं, जिन्हें इस खेल में महारथ हासिल थी। इस टूर्नामेंट में 7 गेम हुए और खुशी राम ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान 196 स्कोर किये।

उन्हें फिलीपिंस के आयोजनकर्ताओं और अधिकारियों ने तीन प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा- एशिया का सबसे मूल्यवान खिलाड़ी, एशिया का लगातार शूटर और साथ ही, उस टूर्नामेंट का सबसे बेहतर खिलाड़ी!

उनकी प्रतिभा को देख कर फिलीपींस बास्केटबॉल के पूर्व दिग्गज खिलाड़ी, लॉरो मुमर ने कहा, “खुशी राम ने बताया है कि बास्केटबॉल कैसे खेला जाता है। हमने पूरे एशिया में इस तरह की मानसिक और शारीरिक दृढ़ता वाला खिलाड़ी नहीं देखा। मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि हमें खुशी राम दें दे और हम पूरी दुनिया को जीत लेंगे। वह बास्केटबॉल की दुनिया पर राज कर सकता है।”

फोटो साभार

एशिया में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनने के बाद, साल 1976 में खुशी राम ने रिटायर होने का फ़ैसला किया। हालांकि, उनकी आख़िरी सांस तक बास्केटबॉल उनके साथ रही। प्रोफेशनल खेल से विदा लेने के बाद, उन्होंने कोच के तौर पर भारत के लिए भावी खुशी राम बनाना जारी रखा।

अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित खुशी राम ने राजस्थान बास्केटबॉल टीम को ट्रेनिंग दी और भारतीय बास्केटबॉल टीम को अजमेर सिंह और हनुमान सिंह जैसे ओलंपियन दिए। उनके मार्गदर्शन के चलते ही, श्री राम रेयंस बास्केटबॉल टीम देश की सर्वश्रेष्ठ टीमों में से एक थी।

उनकी विरासत को उनके अपने बेटे, राम कुमार ने भी बाख़ूबी संभाला। अपने पिता की ही तरह राम कुमार भी भारतीय बास्केटबॉल टीम के कप्तान रहे।

वक़्त के साथ ढलती उम्र भी इस खेल के प्रति खुशी राम का जोश कम नहीं कर पायी। साल 2011 में एक इंटरव्यू के दौरान, उनसे पूछा गया कि आख़िर ऐसी क्या बात है, जो 70 से ज़्यादा की उम्र में भी उन्हें इससे जोड़े हुए है? इस पर उन्होंने कहा, “बास्केटबॉल से ही मुझे मेरी रोज़ी-रोटी मिली है। मैं आज जो कुछ भी हूँ, इस खेल की वजह से हूँ। मुझे बच्चों को ट्रेनिंग देना पसंद है और अपने आख़िरी सांस तक मैं ये करता रहूँगा।”

देश के युवा खिलाड़ियों के लिए एक अनमोल विरासत छोड़कर, साल 2013 में 29 दिसंबर को उन्होंने दुनिया से विदा ली।

खुशी राम की प्रतिमा

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