अगर आप उन लोगों में से हैं, जो ज़िन्दगी के ज़रूरी फ़ैसले करते हुए, अक्सर इस असमंजस में रहते हैं, कि ‘दिल की सुनूँ या दिमाग की’, तो शायद आज की यह कहानी आपको इस असमंजस से हमेशा के लिए बाहर निकाल दे!
भिवानी की रहने वाली, 28 वर्षीय पूजा रानी ने 26 अप्रैल 2019 को एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 81 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। पूजा ने विश्व विजेता वांग लीना के साथ एक बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा लड़ी, और आखिर सभी बाधाओं को पार कर, सफल रही।
पर उनका यहाँ तक का सफ़र, वांग लीना की दी हुई इस कड़ी चुनौती से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण था। इस खेल में जब पूजा की रूचि बढ़ी, तो उन्होंने घरवालों से लगातार 6 महीनों तक उन्हें इसका प्रशिशन लेने के लिए मनाया। पर पुरुषों का खेल समझे जाने वाले बॉक्सिंग में, अपनी बेटी को भेजना, उनके घरवालों को बिलकुल मंज़ूर न था, ख़ास कर उनके पिता को।
जब पूजा को घरवालों का साथ नहीं मिला, तो उन्होंने चोरी-चुपके से इसका प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। पर बॉक्सिंग एक ऐसा खेल है, जिसमें चोटें लगती रहती हैं। ऐसे में पूजा बड़ी मुश्किल से अपनी चोटों को छुपायें रखती, ताकि उनके पिता को इसके बारे में पता न चले।
टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में, अपने पिता के शब्दों को याद करते हुए, पूजा कहती हैं, “मेरे पिता अक्सर कहते थे कि ‘ अच्छे बच्चे बॉक्सिंग नहीं करते।’ हालात कुछ ऐसे थे, कि मुझे डर था कि मेरी चोटों के बारे में पता लगने पर, मेरे पिता मुझे फिर कभी भी रिंग में जाने नहीं देंगे, इसलिए मैं अपनी चोटों को माँ से भी छुपाती।
पर इन सब के बावजूद, एक दिन पूजा के पिता को उनकी बॉक्सिंग के बारे में पता चल ही गया और उन्होंने पूजा का प्रशिक्षण बंद करवा दिया। ऐसे में उनके कोच, संजय कुमार ने पूजा के माता-पिता को समझाया और अपनी बेटी का साथ देने के लिए मना लिया।
2009 में नेशनल यूथ बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 60 किलोग्राम वर्ग में पूजा ने रजत पदक हासिल किया और यहीं से उनके घरवालों की सोच में भी बदलाव आया!
इस जीत के बाद, उनके परिवार के सदस्यों के रवैये में बदलाव आया, और धीरे-धीरे वे पूजा का साथ देने लगे।
2009 में जीतना पूजा के लिए सिर्फ शुरुआत थी। इसके बाद पूजा ने 2012 में एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में रजत और उसी वर्ष ऑस्ट्रेलिया में आयोजित अराफुरा खेलों में फिर एक बार रजत पदक जीता। 2014 में उन्होंने एशियाई खेलों में 75 किग्रा वर्ग में कांस्य हासिल किया, वही 2016 में उन्होंने दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रौशन किया।
आज एक बार फिर एशियाई खेलों में गोल्ड जीत कर पूजा ने साबित कर दिया कि “अच्छे बच्चे चाहे, तो कुछ भी कर सकते हैं!”
हम सभी को आप पर गर्व है पूजा। आप यूँही अपने परिवार तथा देश का नाम रौशन करती रहें!