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रुढीवादी मान्यताओ को तोड़ते हुए कोलकाता ने स्वीकारी देश की पहली ट्रांसजेंडर दुर्गा की प्रतिमा !

दुर्गा पूजा के इतिहास में पहली बार लोग माँ दुर्गा की एक ट्रांसजेंडर प्रतिमा की पूजा करेंगे जो भगवान शिव के अर्द्धनारीश्वर अवतार से प्रेरित है। यह हाशिये पर रखे ट्रांसजेंडर समुदाय को पूजा के उत्सव में सम्मिलित करने का एक प्रयास है।

हर साल बंगाल में दुर्गा पूजा पर दुर्गा मां की सैकड़ों प्रतिमायें बनती हैं। हर गली का अपना उत्सव होता है ,कुछ का बड़ा तो कुछ का छोटा होता है। लेकिन इस वर्ष उत्तरी कोलकाता के जॉय मित्रा गली में दुर्गा पूजा का उत्सव कुछ अलग ही होगा।
यह गली देश की पहली मां दुर्गा की ट्रांसजेंडर प्रतिमा की मेजबान बनेगी। इस पूजा का आयोजन लैंगिक अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था प्रत्यय जेंडर ट्रस्ट एवम् उधमी युवक वृन्द ने किया है। यह पूजा समाज को यह सन्देश देगी कि मानवता हर भेदभाव से परे है, जिसमे लिंगभेद भी शामिल है।
यह क्लब दुर्गा पूजा पिछले २७ सालों से दुर्गा पूजा मना रहा है। लेकिन यह पहली बार होगा जब इस क्लब ने एक दर्जन ट्रांसजेंडर सदस्यों को पूजा समिति में शामिल करने का निर्णय लिया है।

यह समुदाय अर्धनारीश्वर पर आधारित प्रतिमा की पूजा करेगी जिसमे आधा पुरुष और आधी स्त्री है जो शिव एवम् पार्वती का उभयलिंगी स्वरूप है।

Photo: The Pratyay Gender Trust

प्रतिमा के आधे हिस्से में मूँछे हैं और एक स्तन के स्थान पर वक्ष है, एक आँख की पलकें छोटी हैं और उस आधे हिस्से ने धोती पहनी है। दूसरा आधा हिस्सा स्त्री रूपी दुर्गा माँ का है जो हम आमतौर पर पंडालों में देखते है।

इस प्रतिमा की परिकल्पना एक ५५ वर्षीय ट्रांसजेंडर भानु नस्कर ने की थी एवम् इसकी रचना चाइना पाल ने की है जो कुमोरटोली की एकलौती महिला मूर्तिकार भी है।

यह योजना भी भानु की ही थी जिन्होंने समिति से सम्पर्क किया क्योंकि वो ट्रांसजेंडर समुदाय को पूजा के उत्सव में शामिल करना चाहते थे। हालाँकि समिति ने इस योजना का स्वागत किया पर कई स्थानीय लोग एक अलग प्रकार की प्रतिमा को स्वीकार करने के लिए तैयार नही थे। पर धीरे धीरे मौखिक प्रचार और मीडिया के द्वारा यह खबर फैली और आखिरकार इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गयी।
प्रत्याय जेंडर ट्रस्ट कहती है –

“हमारा उद्देश्य उन सामाजिक एवम् जातीय परम्पराओं पर सवाल उठाने का है, जो किसी को भी सामाजिक एवम् धार्मिक उत्सवों जैसे की दुर्गा पूजा में शामिल होने की इज़ाज़त नही देते, चाहे वो महिलाएं हों या नीची जाति के लोग। इन सब मामलों में निर्णय लेने का अधिकार या तो पुरुषों के पास होता है या ऊँची जाती के लोगो के पास होता है।”

इस पूजा के लिए चन्दा इकट्ठा करने के लिए एक फेसबुक कैम्पेन भी चलाया जा रहा है।
और इस तरह इस रविवार को कोलकाता के जॉय मित्रा गली सारी रुढीवादी मान्यताओं को दरकिनार करके एक अनोखे तरीके से हर लिंग के लोगों को गले लगाएंगे।

मूल लेख – श्रेया पारीक द्वारा लिखित 

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