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नेत्रहीनो के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए इस बारह वर्षीय छात्र ने आँखों पर पट्टी बांध कर अपनी परीक्षा दी!

१२ वर्षीय आर. माधेस्वरम के अनुसार वह आँखों पर पट्टी बाँध कर कुछ भी पढ़ सकता है। इस सांतवी कक्षा के छात्र ने अपने इस हुनर का उपयोग अंग्रेजी की परीक्षा आँखों पर पट्टी बांध कर दे कर किया। उसने ऐसा लोगो में जागरूकता फैलाने के लिए किया।

श्री रामकृष्ण मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंडरी स्कूल, कोयम्बतूर, में क्वार्टरली परीक्षा के दौरान एक अजीब घटना घटी। जब सारे विद्यार्थी अपनी परीक्षा देने पहुंचे, तब उनमे से एक विद्यार्थी ने सब का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।

सातवी कक्षा का छात्र आर माधेस्वरम अपनी परीक्षा आँखों पर पट्टी बांध कर देने पहुंचा था। इतना ही नहीं, उसने अपनी परीक्षा निर्धारित २ घंटे में पूरी भी कर ली।

Photo: blog.onlinerti.com

अगर आप सोच रहे हैं कि माधेस्वरम की आँखों पर कोई चोट लगी होगी या उसे देखने में तकलीफ होगी तो ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल वह अंधे लोगों के अनुभव को महसूस करना चाहता था, साथ ही उनके अन्दर छुपी प्रतिभाओं को लोगों तक पहुचना चाहता था।
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माधेस्वरम दावा करता है कि वह आँखों पर पट्टी बांध कर फ़ोन के मेसेज, प्रश्न पत्र तथा किताबें भी पढ़ सकता है।

इस बालक ने अपने इस हुनर का उपयोग अपनी अंग्रेजी की परीक्षा में किया। यहाँ बताना ज़रूरी है कि प्रश्न पत्र न ही ब्रेल लिपि में थे और न ही वे अक्षर उभरे हुए थे।

फिर ऐसा कैसे संभव हो पाया। माधेस्वरम के अनुसार हर शब्द एवं संख्या की अपनी एक अलग महक होती है और यही महक उसे अपने दिमाग द्वारा इन्हें पहचानने में मदद करती है। इसी तकनीक की सहायता से वह परीक्षा में अक्षरों को भी एक सीधी पंक्ति में बिलकुल सही ढंग से लिख पाया।

उसके माता पिता यह दावा करते हैं कि माधेस्वरम ने एक ब्रैन्फोल्ड एक्टिवेशन प्रोग्राम में हिस्सा लिया था। तभी से उसमे यह हुनर विकसित हुआ। इस कार्यक्रम में भाग लेने के बाद उसकी एकाग्रता बढ़ी और वह बिना देखे चीजों को महसूस करने लगा। अपने इस कौशल पर पूर्ण विश्वास होने के कारण माधेस्वरम और उसके परिवार ने विद्यालय के अधिकारियो से आँखों पर पट्टी बांध कर परीक्षा में बैठने की अनुमति मांगी जो उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक दे दी।

हालाँकि यह हुनर थोडा अवास्तविक लगता है , फिर भी हम इस बालक के जज्बे को सलाम करते हैं। इतनी छोटी उम्र में लोगो में जागरूकता फ़ैलाने के बारे में सोचना ही अपने आप में प्रशंसनीय है।


 

मूल लेख – श्रेया पारीक 

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