कहते हैं ना कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, लेकिन यहाँ तो इसमें ये भी जोड़ना पडेगा कि पास होने के लिए परीक्षा देने की भी कोई संख्या नहीं गिनी जातीं। जहाँ आज के युवा पहली ही बार में मार्क्स कम आने पर निराश हो जाते हैं और आत्महत्या तक करने की सोच लेते है, वही एक मिसाल ऐसी भी है जिनसे इन निराश बच्चो को प्रेरणा मिल सकती है।
ये मिसाल है राजस्थान के अलवर में रहनेवाले ७७ साल के शिवचरण यादव जो ४७वीं बार दसवीं की परीक्षा देने जा रहे हैं।
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शिवचरण यादव १९६८ से दसवीं की परीक्षा दे रहे हैं लेकिन कभी कुछ विषयों में पास हो गए तो एकाध में फेल होते रहे हैं। वे २१ साल पहले १९९५ में परीक्षा पास कर ही लेते लेकिन गणित के उनके परिणाम का कुल जोड़ घटा दिया। बाकी विषयों में अच्छे नंबर थे लेकिन गणित में वे फेल हो गए और इसलिए परिणाम में उन्हें फेल घोषित कर दिया गया। लेकिन परीक्षा उनके प्रयास को नहीं हरा पाई और उन्होंने फिर तैयारी शुरू कर दी।
सरकारी पेंशन और मंदिर के प्रसाद के सहारे अपना जीवन यापन करते है शिवचरण।
शिवचरण यादव जब दो महीने के थे तो मां का आँचल सर से उठा गया और दस वर्ष की उम्र तक पिता भी संसार छोड़ गए। उसके बाद उनके चाचा और अन्य परिवार वालों ने उन्हें पाला पोसा और अभी वे पिछले तीस सालों से घर में अकेले रहते हैं।
शिवचरण ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया, “सरकार की पेंशन से कुछ खर्च चल जाता है और मंदिर के प्रसाद से पेट पल जाता है”, लेकिन हाँ उनका एक ख्वाब और है कि दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद वे शादी के बंधन में बंध जायेंगे।
जी हाँ शिवचरण ने यह भी प्राण ले रखा है कि जब तक वे दसवी पास नहीं कर लेते तब तक शादी नहीं करेंगे और इसिस्लिये वे आजतक कुंवारे है।
शिवचरण यादव के जज्बे को हम सलाम करते हैं और उन्हें शुभकामनाएँ देते हैं कि वे इस बार अपनी कोशिश में ज़रूर सफल हो!