Site icon The Better India – Hindi

धनपतराय से ‘प्रेमचंद’ बनने का सफ़र !

प्रेमचंद – इस नाम से ही हमारे मन में उजागर होती है सचेत, सजीव कहानियाँ जो हमारी पारंपरिक सोच, हमारे रुढ़िवादी विचारों को झकझोर कर रख देती है। मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ केवल कहानियाँ नहीं बल्की एक अलौकिक प्रकाश की भांति है जो हमारी सामाजिक एवं निजी भ्रांतियों के अँधेरे को मिटाने का प्रयास करती है। पर कैसे बनी ये कहानियाँ, क्या रहस्य है इन किरदारों के पीछे और कैसा था प्रेमचंद का जीवन? आज हिंदी के शेक्सपियर कहे जाने वाले इस महान लेखक के जन्मदिन पर खोजते है इन सभी प्रश्नों के उत्तर!

31 जुलाई 1880 को बनारस के पास स्थित लमही गाँव में आनंदी देवी और मुंशी अजायबराय के घर एक पुत्र का जन्म हुआ, नाम रखा गया, ‘धनपत राय’। इसी पुत्र को हम और आप प्रेमचंद के नाम से जानते है।

 

Photo credit – wikimedia

प्रेमचंद के पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद अपने माता पिता की चौथी संतान थे। उनकी पहली दोनो बहनों की जन्म के कुछ दिन बाद ही म्रत्यु हो चुकी थी तथा उनकी तीसरी बहन का नाम सुग्गी था।

प्रेमचंद बस आठ ही बरस के हुए थे कि उनकी माता चल बसी। उनकी कहानी ‘बड़े घर की बेटी’ में आनंदी का किरदार उनकी माँ पर ही आधारित है।

source

सबसे छोटे और इकलौते बेटे होने के कारण पूरा परिवार उनसे बेहद स्नेह करता था। शायद यही स्नेह था जिसके कारण उनके चाचा ज़मींदार महाबीर ने उनका नाम ‘नवाब’ रखा था। आगे चलकर प्रेमचंद ने अपनी शुरूआती रचनाएं ‘नवाब राय’ के नाम से ही लिखी।

माँ की मृत्यु के बाद प्रेमचंद की दादी उनका ख्याल रखती थी पर वे भी जल्द ही चल बसी। घर में सौतेली माँ आ गयी, जिनसे प्रेमचंद को ज्यादा स्नेह नहीं मिला। इन्ही की झलक आपको प्रेमचंद की कई कहानियों में दिखाई देगी।

गुमसुम और अकेले रहने वाले प्रेमचंद को किस्से कहानियों में अपने हिस्से का सुकून मिला। वे अक्सर जिस तम्बाकू की दूकान में जाया करते वहां उन्होंने फ़ारसी भाषा में लिखी कहानी, ‘तिलिस्म-ए-होशरूबा’ सुनी। और यहीं से कहानियों से उनका नाता जुड़ गया।

गोरखपुर के अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते हुए उन्होंने अंग्रेजी उपन्यासो को पढना शुरू किया जिनमे जॉर्ज डब्लू. एम. रेनोल्ड्स की ‘द मिस्ट्रीज ऑफ़ द कोर्ट ऑफ़ लंडन’ के आठो अध्याय भी शामिल थे।

प्रेमचंद ने अपनी पहली कहानी गोरखपुर में लिखी, जो कभी छप नही सकी। यह कहानी एक नवयुवक की एक निम्न जाती की महिला से प्रेम की कहानी थी। कहा जाता है कि इस नवयुवक का किरदार उनके सौतेले मामा पर आधारित था।

उनका पहला उर्दू लघु उपन्यास, ‘असरार-ए-मआबिद’ (देवस्थान रहस्य) उन्होंने ‘नवाब राय’ नाम से लिखा था। ये उपन्यास मंदिर के पुजारियों द्वारा गरीब महिलाओं के शोषण पर आधारित था। यह उपन्यास, 1903 से 1905 के दौरान एक उर्दू साप्ताहिक आवाज़-ए-खल्क में प्रकाशित किया गया।

 

1895 में जब प्रेमचंद केवल 15 साल के थे तब उनके सौतेले नाना ने उनका विवाह करवा दिया था। प्रेमचंद की पत्नी ऊँचे कुल की थी तथा उनसे उम्र में बड़ी थी। दोनों का स्वाभाव भी विपरीत था। दोनों ही इस विवाह से कभी खुश नहीं रहे और आखिर एक दिन उनकी पत्नी उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर अपने मायके चली गयी।

1906 में सामाजिक विरोध के बावजूद प्रेमचंद ने बाल विधवा शिवरानी देवी से पुनर्विवाह कर लिया। उनका दूसरा उपन्यास हमखुर्मा-ओ-हमसवाब (प्रेमा) में अमृत राय का किरदार उनके इसी कदम पर आधारित था।

प्रेमचंद अपनी दूसरी पत्नी, शिवरानी के साथ.
photo source – flickr

प्रेमचंद की मृत्यु के बाद शिवरानी देवी ने उनपर एक किताब लिखी, जिसका नाम था, ‘प्रेमचंद घर में’।

1907 में प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह, ‘सोज़–ए-वतन’ (देश का मातम) प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में पाँच कहानियाँ थीं। दुनिया का सबसे अनमोल रतन, शेख मखमूर, यही मेरा वतन है, शोक का पुरस्कार और सांसारिक प्रेम।

source

पाँचों कहानियाँ उर्दू भाषा में थीं। १९१० में उनकी इस रचना के बारे में अंग्रेजो को पता चल गया। आज़ादी की जंग से जुड़ी इन कहानियों को देशद्रोही करार दिया गया। सोज़-ए-वतन की सारी प्रतियाँ जलाकर नष्ट कर दीं गयीं। और नवाब राय को हिदायत दी गयी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा।

उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके दोस्‍त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। इसके बाद वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे।

 

जल्द ही उर्दू लेखनी में प्रेमचंद एक जाना माना नाम बन गया पर अब उर्दू प्रकाशकों का मिल पाना कठिन होने लगा। इसलिए 1914 से प्रेमचंद ने हिंदी में लिखने की शुरुआत की।

हिंदी में उनकी पहली कहानी, ‘सौत’ 1915 में तथा पहला लघु कथा संग्रह, ‘सप्त सरोज’ 1917 में सरस्वती नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई।

 

1921 में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन के आवाहन पर उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और 1923 में अपनी खुद की प्रिंटिंग प्रेस की नीव रखी। बनारस में स्थित उनके इस प्रेस का नाम था, ‘सरस्वती प्रेस’।

1924 से लेकर 1930 के बीच उनके इस प्रेस से उनकी कई महान कृतियाँ छपी जैसे कि रंगभूमि (1924 ), निर्मला (1925), प्रतिज्ञा (1927) और गबन (1928) ।

source

मार्च 1930 में प्रेमचंद ने अपने साप्ताहिक पत्रिका, हंस की शुरुआत की, जो ज्यादा चली नहीं। इसके बाद उन्होंने जागरण नामक पत्रिका का भी प्रकाशन किया पर उससे भी उन्हें भारी नुकसान हुआ।

31 मई 1934 को हिंदी फिल्म जगत में अपनी किस्मत आजमाने प्रेमचंद मुंबई पहुंचे। पटकथा लेखक के तौर पर उनकी पहली फिल्म मोहन भवनानी द्वारा निर्देशित, ‘मजदूर’ थी।

फिल्म मजदूर की एक झलक
source

यह कहानी मिल मजदूरों के दयनीय स्थिति पर लिखी गयी थी।

पर फ़िल्मी दुनियां के हेर-फेर उन्हें रास नहीं आये और 4 अप्रैल 1935 को वे मुंबई छोड़कर अलाहबाद आकर बस गए।

 

अपने आखरी दिनों में प्रेमचंद ने अपनी सबसे बेहतरीन कृति, गोदान (1936) लिखी। गोदान, किसान होरी की कहानी थी जो किसानो के जीवन की दुर्दशा को बेहद मार्मिक रूप से दर्शाने के लिए याद की जाती है।

source

इसे संयोग ही कह लीजिये कि मृत्यु पूर्व प्रेमचंद की आखरी प्रकाशित रचना का नाम था, ‘कफ़न’।

source

 

उनकी आखरी सम्पूर्ण कृति, क्रिकेट मैच 1938 में उनके मरणोपरांत ज़माना पत्रिका में प्रकाशित हुई।

15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना करने वाले प्रेमचंद का आखरी उपन्यास मंगलसूत्र पूरा नहीं हो सका और लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम उपन्यास मंगल सूत्र  उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया।

source 

हिंदी साहित्य में यथार्त्वादी परम्परा का उद्वेग लाने वाले इस महान लेखक का साहित्य जगत हमेशा ऋणी रहेगा!


यदि आपको ये कहानी पसंद आई हो या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें contact@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।

Exit mobile version