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सफलनामा! गहने गिरवी रख शुरू किया डिब्बे बनाने का काम, साइकिल से चलकर हासिल किया अपना मुकाम

packaging boxes business of Sangeeta Pandey

आज कहानी गोरखपुर की संगीता पांडेय की, जिन्हें कभी लोगों ने हर वह बात कही, जिससे उनका हौसला टूट जाए,
लेकिन फिर भी वह आज पैकेजिंग बॉक्सेज़ का करोड़ों का बिज़नेस चला रही हैं। आज से 39 साल पहले गोरखपुर में जन्मीं संगीता के पिता सेना में सुबेदार थे। उनका बचपन काफी अच्छा रहा और बड़ी हुईं, तो गोरखपुर युनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के लिए एडमिशन लिया।

लेकिन अभी वह 1st year में ही थीं, तभी 19 साल की उम्र में उनकी शादी बिहार के जगदीशपुर के संजय पांडेय से कर दी गई। ससुराल आईं, तो यहां न तो बिजली थी, न ही पक्की सड़क। शादी के बाद, उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। वह आगे और पढ़ना चाहती थीं, लेकिन बच्चा हो जाने के बाद परिवार की ज़िम्मेदारियों ने कदम रोक दिए।

उनके पति पुलिस कॉन्सटेबल हैं और तब उनकी पोस्टिंग गोरखपुर में थी। शादी के 5 साल बाद संगीता भी गोरखपुर चली आईं। 1 बेटे और 2 बेटियों को जन्म देने के बाद, परिवार बढ़ा, ज़िम्मेदारियां बढ़ीं और खर्च भी। तब संगीता ने काम करने का फैसला किया, हालांकि उस समय उनकी छोटी बेटी सिर्फ 9 महीने की ही थी। 

साइकिल से तय किया सफल बिज़नेस तक का सफर

संगीता ने चाइल्ड लाइन में इंटरव्यू दिया, जहां उनका सलेक्शन भी हो गया, लेकिन नौकरी के पहले दिन जब वह अपनी बेटी के साथ पहुंची, तो बेटी को साथ लाने के लिए मना कर दिया गया। अगले दिन संगीता अपनी बेटी को छोड़कर चली तो गईं, लेकिन उन्हें लगा कि मैं दूसरों के बच्चों का ख्याल कैसे रखूंगी, जब अपनी बच्ची का ही ख्याल नहीं रख पा रही और उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

फिर एक दिन उन्होंने एक दुकान पर मिठाई के खाली डिब्बे देखे, उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न पैकेजिंग बॉक्सेज़ बनाने का काम शुरू किया जाए। उन्होंने इस बारे में जानकारी इकट्ठी की, तो उन्हें एक महिला के बारे में पता चला, जो यह काम करती थीं। लेकिन जब संगीता वहां पहुंची, तो उन्होंने काम बंद कर दिया कि कहीं यह भी न सीख जाए।

मायूस संगीता घर पहुंची और खुद ही इस काम को सीखने का मन बना लिया। लेकिन सवाल था कि रॉ मटेरियल कहां से लाएं, तब वह साइकिल से 50-50 किमी जाकर सामान ढूंढने लगीं और आखिरकार सफलता मिल ही गई। 1500 रुपये Invest कर उन्होंने पहली बार सामान खरीदा और साइकिल पर ही लेकर घर आईं और उन डिब्बों को बनाने की कोशिश तब तक करती रहीं, जब तक कि बना नहीं लिया। अब सामान तो तैयार था, लेकिन बेचें कहां?

गहने रखकर लिया कर्ज़ और शुरू की पैकेजिंग बॉक्सेज़ बनाने की कंपनी

Sangeeta Pandey

संगीता को मार्केट का कोई आइडिया नहीं था, तब वह साइकिल पर ही सामान लेकर दुकानों पर जाने लगीं, लेकिन उन पर किसी को भरोसा ही नहीं होता था। लोगों का कहना था कि जब पुरुष इस काम में हार मान जाते हैं, तो आप एक साइकिल पर कब तक काम कर पाएंगी?

सब कुछ सुनकर भी संगीता डटीं रहीं, रोज़ दुकानों पर जाती रहीं और एक दिन आखिरकार एक दुकानदार ने डिब्बे ले लिए और बस यहीं से उन्हें ऑर्डर्स मिलने शुरू हो गए। लेकिन उनके पास ऑर्डर पूरा करने के लिए पैसे नहीं थे, तब उन्होंने अपने गहने रखकर बैंक से 2 लाख का गोल्ड लोन लिया और काम चल पड़ा।

मार्केट के पुराने लोगों ने उनका काम रोकने की भी कोशिश की। लेकिन संगीता लखनऊ गईं और वहां से बिल्कुन नई-नई डिजाइंस लेकर लौटीं। देखते ही देखते लोग उनके काम के मुरीद हो गए। इसके बाद उन्होंने 35 लाख का कर्ज़ लेकर सिद्धि विनायक पैकेजर नाम से कारखाने की शुरुआत की, जहां कई तरह के पैकेजिंग बॉक्सेज़ बनाए जाते हैं और वह इन पैकेज़़ को गोरखपुर के आस-पास के कई ज़िलों समेत नेपाल तक भेजती हैं।

कभी साइकिल से चलकर काम की शुरुआत करने वाली संगीता ने पहले एक स्कूटी खरीदी और आज वह कार से चलती हैं। उनके साथ आज करीब 100 महिलाएं काम कर रहीं हैं, जहां महिलाएं अपने छोटे बच्चों को लेकर भी आ सकती हैं और जो महिलाएं घर से बाहर नहीं निकल सकतीं, उनके लिए संगीता रॉ मटेरियल घर तक भेज देती हैं।

अब संगीता दूसरे शहरों में महिलाओं को ट्रेनिंग देकर ऐसे और कई कारखाने खोलना चाहती हैं, जहां औरतें अपने बच्चों को साथ लेकर भी काम कर सकें।

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