हम असफलता के बहाने खोजते हैं, कभी अपनी रूकावट का दोष परिस्थितियों को, तो कभी हादसों के सिर मढ़ते रहते हैं। परिस्थितियों और हादसों से लड़कर मंजिलें पाने वालों को देखकर हमें एहसास होता है कि इनके मुकाबले हमारी परिस्थितियां तो कुछ भी नहीं थीं। ऐसी ही कहानी है हमारे नायक मरियप्पन की जिन्होंने पैरालंपिक में भारत को एतिहासिक पदक दिलाया।
रियो में चल रहे दिव्यांगों के ओलम्पिक में भारत के लिए हाई जम्प में पहला गोल्ड जीतने वाले मरियप्पन थंगावेलु की कहानी हमें जीने के साथ जीतने की प्रेरणा भी देती है।
भारत ने 32 साल बाद एक ही ईवेंट में दो मैडल जीते हैं, हाई जम्प में मरियप्पन ने स्वर्ण पदक जीता है, उनके साथ वरुण भाटी ने देश को कांस्य पदक दिलाया।
#Gold & #Bronze for IND 🇮🇳 in the High Jump T-42. Mariyappan Thangavelu 1st, Bhati Varun Singh 3rd. #Athletics pic.twitter.com/p5keJ2jGlg
— Rio 2016 (@Rio2016_en) September 10, 2016
मरियप्पन का जन्म तमिलनाडु के सलेम में हुआ। जब वे पांच साल के थे तो एक दिन स्कूल जाते वक़्त एक हादसे ने उनकी ज़िन्दगी बदल दी। सड़क पर एक तेज बस ने उनका दायां पैर कुचल दिया। इस हादसे ने उन्हें हमेशा के लिए दिव्यांग बना दिया। मरियप्पन की माँ ने 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी तब जाकर उन्हें बेटे के पैर का मुआवजा मिल पाया।
बचपन में ही पिता ने परिवार छोड़ दिया। माँ घर चलाने के लिए ईंट ढोने का काम करने लगीं। लेकिन सीने में दर्द बढ़ने की वजह से उन्हें काम छोड़ना पड़ा। पिता के छोड़ने के बाद उनके परिवार को किसी ने किराए पर रहने के लिए मकान नहीं दिया। माँ ने 500 रूपये उधार लेकर सब्जी बेचने का काम शुरू किया और परिवार का पेट पालने लगीं। मरियप्पन के इलाज के लिए 3 लाख का कर्जा लेकर बेटे की सलामती के लिए लड़ती रहीं। उनके इलाज के लिए लिया गया कर्जा उनकी माँ अभी तक चुका नहीं पाईं है।
मरियप्पन ने 14 साल की उम्र में स्कूल टूर्नामेंट में सामान्य प्रतियोगियों से मुकाबला कर हाई जम्प का सिल्वर जीता, तब उनकी ओर कोच सत्यनारायण का ध्यान गया। मरियप्पन वॉलीबॉल के खिलाडी थे लेकिन कोच सत्यनारायण के कहने पर वे हाई जम्प की प्रतियोगिताओं में खेलने लगे।
मरियप्पन इसी वर्ष मार्च में तब चर्चा में आए जब उन्होंने IPC ग्रांड प्रिक्स में 1.78 मीटर की हाई जम्प लगाई, जो उनके रियो पैरालंपिक में प्रवेश का आधार बनी।