आज जब हर तरफ देश को संप्रदायिकता के नाम पर बांटने की राजनीति चल रही है तो हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम ऐसी सच्ची कहानियां लेकर आए जो लोगों को इंसानियत पर एक बार फिर भरोसा करना सिखा सके; ऐसे लोगों के बारे में बताएं जिन्होंने जाती, धर्म या संप्रदाय की रेस में हमेशा इंसानियत को आगे रखा।
ऐसा ही एक उदहारण हैं देहरादून के आरिफ़ खान का। नेशनल एसोसिएशन फॉर पेरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के प्रेसिडेंट आरिफ़ खान को व्हाट्सप्प पर एक मैसेज मिला कि 20 साल का एक लड़का अजय बिलवालाम कुष्ठ रोग से पीड़ित है और उसके खून में प्लेटलेट्स की मात्रा बहुत ही कम हो गयी है।
अजय को बचाने के लिए A+ ग्रुप के खून की ज़रूरत थी। अपने बेटे की बिगड़ती हालत को देख अजय के पिता ने सोशल मीडिया पर एक मैसेज पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लोगों से अपने बेटे के लिए रक्तदान करने की गुहार लगाई थी।
अजय के पिता का मैसेज पढ़कर आरिफ़ खान सीधा अस्पताल पहुंचे और रक्तदान करने की इच्छा जताई। पर मसला तब हुआ जब डॉक्टर ने ब्लड लेने से पहले उन्हें पूछा कि उन्होंने कुछ खाया है?
आरिफ़ रमज़ान के पाक मौके पर रोज़ा रखे हुए थे और बिना कुछ खाएँ-पीये ही खून देने चले आये थे!
पर डॉक्टर ने उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ऐसा करने से मना कर दिया। आरिफ़ ने भी इंसानियत को ऊपर रखकर अपना रोज़ा तोड़ा और डॉक्टर द्वारा दिया गया खाना खाकर अजय को खून देकर उसका जीवन बचा लिया।
आरिफ़ के इस छोटे से कदम ने साबित कर दिया कि कुछ चंद लोगों की नफरत हमारे देश में आपसी प्यार और सद्भावना को खत्म नहीं कर सकती। हम आरिफ़ खान की इस सोच को सराहते हैं और उम्मीद करते हैं कि और भी लोग आरिफ़ से प्रेरणा लेंगे।
(संपादन – मानबी कटोच)
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