आज तक आपने खुले में शौच को लेकर या फिर मल की दस्ती सफाई को लेकर दलितों के साथ हो रहे अन्याय के बारे में पढ़ा और सुना होगा। कहने को तो भारत में शौच या मल की दस्ती सफाई प्रतिबंधित है। पर आज भी भारत के बहुत से राज्यों में खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रचलित है और यही दस्ती सफाई प्रथा भारत में दलितों के प्रति हीन भावना और भेदभाव के मुख्य कारणों में से एक है।
लेकिन आज हम द बेटर इंडिया पर आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसा वाकया जो आपको इस बारे में सोचने पर मजबूर कर देगा कि क्या हमारे समाज को साफ़ रखने वाले यह लोग वाकई में हीन हैं या यह केवल हमारी सोच की हीएंता को दर्शाता है।
हाल ही में तेलंगाना राज्य के मेदक ज़िले में नए जिला कलेक्टर धरम रेड्डी को नियुक्त किया गया।
कलेक्टर साहब ने पुणे में आयोजित एक कार्यशाला में बिना किसी संकोच के एक शौचालय के गढ्ढे में स्वयं घुसकर जैविक खाद को अपने हाथों से निकाला।
दरअसल स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत पुणे में हुई एक कार्यशाला जिसका उद्देशय खुला शौच मुक्त भारत की स्थिरता पर काम करना था, में अधिकारी और कर्मचारियों को अलग-अलग गुर सिखाये गए। उन्हीं में एक था मल को जैविक खाद में तब्दील करना।
तेलंगाना टुडे अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारियों के प्रदर्शन के बाद जिला कलेक्टर ने बिना किसी संकोच के प्रक्रिया को दोहराया। धरम रेड्डी साल 2012 जत्था के आईपीएस अधिकारी हैं और मार्च, 2018 में उन्हें मेदक में नियुक्त किया गया। मेदक में अपनी नियुक्ति के कुछ समय में ही उन्होंने आम लोगों से सीधा संपर्क बनाया ताकि वे लोगों की समस्याएं समझकर, उन्हें हल कर सकें।
यदि हमारे अधिकारी इसी सोच के साथ आगे बढे तो यक़ीनन परिस्थितियों में बदलाव आएगा। मेदक तेलंगाना का आठवां खुला शौच मुक्त जिला है। और जल्द ही, तेलंगाना भी खुला शौच मुक्त राज्यों की सूची में शामिल हो जाएगा।
(संपादन – मानबी कटोच)