“कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,” हरिवंशराय बच्चन की लिखी हुई यह कविता तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाली सी. वनमति पर बिलकुल सटीक बैठती है। बचपन में मवेशी चराने वाली वनमति अक्सर जिला अधिकारी बनने के ख़्वाब देखती थी। आज अपनी मेहनत और लगन के दम पर उन्होंने अपने इस सपने को पूरा कर दिखाया है।
तमिलनाडु के इरोड ज़िले की रहने वाली वनमति ने अपना ज़्यादातर समय गावं में पढ़ाई करने और अपने घर के पशुओं को गावं के आस-पास चराने में बिताया।
निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी वनमति के पास सिर्फ उसके सपने ही थे। अपने सपनों को पूरा करने का उनके पास कोई साधन तो नहीं था पर इन सपनों को हकीकत में बदलने का जज़्बा ज़रूर था।
वनमति के लिए उनकी पहली प्रेरणा थें उनके ज़िले के कलेक्टर, जिन्हें वे युवा और बुजुर्ग सबसे एक-सा सम्मान पाता देखती थी।
उनकी दूसरी प्रेरणा उन्हें मिली एक टीवी धारावाहिक ‘गंगा यमुना सरस्वती’ से, जिसकी मुख्य किरदार एक आईएएस अफ़सर थी।
साल 2015 से पहले भी तीन बार वनमति ने यूपीएससी के लिए प्रयत्न किया पर हर बार कुछ अंक के फ़ासले से वह चूक गयीं। फिर भी बिना हताश हुए उन्होंने अपनी मेहनत जारी रखी और साल 2015 में आखिरी लिस्ट के लिए चुने गए 1,236 प्रतिभागियों में अपनी जगह बना ली। जब मुख्य परिणाम निकला तब वनमति अपने पिता के साथ अस्पताल में थी। दरअसल उनके इंटरव्यू के बाद उनके पिता को रीढ़ की हड्डी में चोट आ गयी थी।
अपनी सफलता का श्रेय वनमति अपने माता-पिता को देती हैं। उनके समुदाय में अक्सर लड़कियों की जल्दी शादी कर उन्हें विदा कर दिया जाता है पर उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा पढ़ने व अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित किया।
साल 2015 में द हिन्दू के दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया, “मेरे पिता एक कार ड्राइवर हैं और सिर्फ शिक्षा ही समाज में हमारा ओहदा ऊँचा उठा सकती है, मेरे इसी विश्वास ने मुझे आगे पढ़ने और बढ़ने की प्रेरणा दी।”
लाल बहादुर शास्त्री ट्रेनिंग अकादमी से अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उनकी पहली नियुक्ति महाराष्ट्र में जिला अधिकारी के रूप में हुई। अभी वे नंदुरबार में इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की सहायक कलेक्टर व परियोजना अधिकारी के रूप में सेवारत हैं।
( संपादन – मानबी कटोच )