स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जल्द ही एक ऐसा कदम उठाया जा रहा है जो कैंसर पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत सिद्ध होगा। सरकार कैंसर की दवाओं तथा उस से जुड़े उपकरणों का मूल्य निर्धारित करने पर विचार कर रही है।
कैंसर की दवाइयां एवं उपचार बहुत ही महंगे होते हैं तथा कई पीडितो की पहुच के भी बाहर होते हैं। सरकार इन्हें आम जनता तक उपलब्ध करवाने के लिए इनके दाम में कटौती करने पर विचार कर रही है। मंत्रालय इन दवाइयों को थोक में उचित मूल्यों पर खरीद कर अस्पतालों एवं रोगियों को उपलब्ध करवाएगा।
मंत्रालय के इस कदम से दवाइयों की कंपनियों पर बोझ कम होगा। साथ ही सरकार की अपनी रिटेल सिस्टम भी मज़बूत होगी। सरकार की पहले से जन औषधि की शाखाएं हैं जहाँ दवाइया कम दाम में बिकती हैं। इसी के अंतर्गत आम जनता के लिए भी ज़रूरी दवाएं कम दाम में उपलब्ध हो पाएंगी।
फिलहाल सरकार अलग अलग फार्मास्यूटिकल कंपनियों से चर्चा कर रही है। कई कैंसर चिकित्सा विशेषज्ञ, जन स्वस्थ्य विशेषज्ञ तथा टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल जैसे संस्थाओं ने पहले भी मूल्य नियंत्रण का सुझाव रखा था। मौजूदा समय में कैंसर की ५१ दवाइयों के दाम सरकार द्वारा तय किये जाते हैं।
शुरुवात में स्वस्थ्य मंत्रालय ने इस सुझाव पर विचार किया था तथा कैंसर की दवाओं एवं उपकरणों को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाने की योजना बनायीं थी।किन्तु इसके लिए सरकार को कंपनियों द्वारा भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। फार्मास्यूटिकल विभाग ने मैन्युफैक्चरर की मार्जिन को ले कर चिंता जताई थी तथा यह अंदेशा जताया था कि मैन्युफैक्चरर द्वारा नयी दवाइयों को मार्किट में उतारने की प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है।
अतः सरकार ने सी जी एच एस के तहत यह योजना बनायीं। इसके अनुसार केंद्रीय सरकार के कर्मचारी, पेंशन धारी तथा उसपर निर्भर सदस्य को सस्ते में स्वास्थ सुविधायें दी जाती हैं। इसी योजना को आगे बढ़ाते हुए इस दायरे में कैंसर पीड़ितों को भी सम्मिलित कर उन्हें दवाईयां उचित दाम में उपलब्ध करवाई जायेंगी।
इस योजना द्वारा कंपनियों की मार्जिन भी बनी रहेगी तथा उन्हें अनिवार्य लाइसेंस का खतरा भी नहीं रहेगा, जिसके अंतर्गत बिना पेटेंट कंपनी की अनुमति के दूसरी कंपनियां भी जन हित में पेटेंटेड दवाईया बना सकती हैं।
सरकार अभी ३४८ दवाओ के मूल्य नियंत्रित करती है। यह मूल्य नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी द्वारा निर्धारित की जाती है। इन दवाइयों के अलावा, मैन्युफैक्चरर अन्य दवाइयों के दाम बढ़ा सकते हैं। यद्यपि इसकी सालाना बढ़ोतरी १० प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। सेंट अभी किसी भी अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता।
यह प्रस्ताव इस साल के अंत तक तय होने की सम्भावना है।