Site icon The Better India – Hindi

1 लाख रूपये की हार्ट सर्जरी को मुफ़्त में 30 ग़रीब मरीज़ों तक पहुँचा रहा है यह डॉक्टर!

भारत में दिल की बीमारी लोगों की मृत्यु का एक मुख्य कारण है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी की जर्नल के एक शोध के मुताबिक, पिछले 26 वर्षों (1990 -2016) में इस दर में 34% की वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त, 2016 में लगभग  625 लाख भारतीयों को दिल से संबंधित बीमारियों के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी।

हमारे देश की यह विडम्बना है कि पैसे वाले घरों के मरीज़ ही ऐसी बीमारियों का इलाज या सर्जरी का खर्चा उठा पाते हैं, पर  ग़रीब तबके के लोगों के लिए सर्जरी तो दूर दवाईयों का खर्च उठाना भी मुश्किल हो जाता है। निराशाजनक बात यह है कि हमारे देश में इन सब बिमारियों के इलाज के लिए कोई ठोस स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है।

पर इन आंकड़ों को सुधारने की जिम्मेदारी ली है, बंगलुरु के सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजी के प्रमुख, डॉ. किरण वर्गीज़ ने!

उनका उद्देश्य समाज में ग़रीब लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना है और वह भी कम से कम खर्च पर।

डॉ. किरण वर्गीज़

इसलिए, उन्होंने 30 ग़रीब मरीजों की मुफ्त में एंजियोप्लास्टी कराने में मदद करने का फ़ैसला किया। 59 वर्षीय डॉ. वर्गीज़ ने आईएएनएस को बताया, “मैं ग़रीबों का इलाज मुफ़्त में करना चाहता हूँ, क्योंकि वे महँगी स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्च नहीं उठा सकते हैं।”

इस नेक काम के लिए उन्होंने अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से मदद मांगी और इन सभी सर्जरीयों को करने के लिए पर्याप्त राशि इकट्ठा की।

किसी भी प्राइवेट अस्पताल में इस एक सर्जरी की लागत लगभग 2 लाख रूपये है। हालांकि, यह लागत सरकारी अस्पतालों में कम हो जाती है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में सिमित संसाधन और सुविधाओं के चलते सभी लोग प्राइवेट अस्पताल जाना पसंद करते हैं।

ये मुफ़्त सर्जरीयां 19 फ़रवरी 2019 तक की जाएँगी। न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए डॉ. वर्गीज़ ने कहा, “जो भी राशि जमा हुई है उसमें कुछ लोगों की ही सर्जरी की जा सकती है। इसलिए हम उन मरीजों को प्राथमिकता देंगें जो युवा हैं और अपने घर में अकेले कमाने वाले हैं।”

प्रतीकात्मक तस्वीर

उनका लक्ष्य कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा सर्जरी करना है ताकि इस ऑपरेशन से मरीज़ों के आर्टरी ब्लॉक को साफ़ किया जा सके। आर्टरी ब्लॉक की समस्या ज्यादातर 40 से 60 वर्ष की उम्र के लोगों को होती है।

सिर्फ़ 30 मरीज़ों का इलाज भले ही इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। लेकिन यह उन लोगों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव है, जिन को यह सुविधा मिल रही है। सबसे अच्छी बात यह है कि डॉ. वर्गीज़ अपनी इस पहल से दूसरे डॉक्टरों व अन्य लोगों के लिए एक उदहारण स्थापित कर रहे हैं।

मूल लेख: तन्वी पटेल

(संपादन – मानबी कटोच)

यह भी पढ़ें –  नेली सेनगुप्ता : एक ब्रिटिश महिला, जिसने आज़ादी की लड़ाई के दौरान घर-घर जाकर बेची थी खादी!


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर भेज सकते हैं।

Exit mobile version