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इस जोड़ी ने रिटायरमेंट के बाद शुरू की खेती, उगाते हैं 50 तरह के फल और सब्जियां

Retired Kerala Couple

आमतौर पर रिटायरमेंट के बाद लोग घर बैठकर आराम करना चाहते हैं। हर कोई जीवन में इस मोड़ पर आकार आराम ही करना चाहता है लेकिन कुछ लोग होते हैं, जो इस मोड़ पर आकर अपने उन अधूरे शौक को पूरा करना चाहते हैं जो नौकरी या व्यवसाय करते हुए पूरा नहीं कर सके। आज हम आपको एक ऐसी ही दंपति से मिलवा रहे हैं जो रिटायरमेंट के बाद खेती के शौक को पूरा कर रहे हैं।

केरल के पलक्कड़ जिले में रहने वाले पी. थंकामणि और ए. नारायणन रिटायरमेंट का जश्न अपने खेतों में तरह-तरह की सब्जियां और फल उगाकर मना रहे हैं। थंकामणि साल 2005 में गवर्नमेंट मोयन मॉडल गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल से बतौर प्रिंसिपल रिटायर हुई थीं। वहीं उनके पति, नारायणन केरला स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन से बतौर बस कंडक्टर साल 2002 में रिटायर हुए थे। नौकरी करते हुए इन दोनों ने साढ़े सात एकड़ ज़मीन खरीदी थी। साल 2013 में उन्होंने इस ज़मीन पर खेती-बाड़ी शुरू कर दी।

नारायणन ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने अपने फार्म का नाम ‘प्रकृति क्षेत्रम’ रखा है। जब मैं नौकरी करता था तो उस वक्त भी खाली जगह में सब्जी उगा लेता था। बाजार से बहुत कम सब्जी खरीदनी पड़ती थी। सच कहूँ तो रिटायरमेंट से पहले ही हम दोनों ने ठान लिया था कि रिटायरमेंट के बाद की ज़िंदगी खेती करते हुए बिताएंगे। आज आपको हमारे फार्म में तरह-तरह के पेड़-पौधे नजर आएंगे।”

Retired Kerala Couple doing Organic Farming

शुरूआत में झेलीं परेशानियां

रिटायरमेंट के बाद किसानी शुरू करने वाले नारायणन कहते हैं, “2013 से पहले हम जहाँ रहते थे, वह घर यहाँ से 30 किलोमीटर दूर है। इसलिए सिर्फ खेत तक आने के लिए भी हमें बहुत ट्रेवल करना पड़ता था। हर रोज़ इतना दूर ट्रेवल करना मुश्किल था इसलिए हम हफ्ते में दो-तीन बार आते थे। पर हमने देखा कि इस बात का फायदा उठाकर कुछ लोग हमारी फसलें खराब कर रहे हैं। इसके बाद हमने इस ज़मीन पर ही अपना छोटा-सा घर बना लिया जिसमें दो कमरे, एक किचन और एक बेडरूम है। हमें यहाँ पर रहकर बहुत ख़ुशी मिल रही है।”

अपने खेतों पर ही शिफ्ट होने के बाद उन्होंने फार्म में सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया जिससे कि पता चले कि कौन उनकी फसलों का खराब कर रहा है। इसके बारे में उन्होंने बताया, “कैमरे की वजह से अब हमारी फसल को कोई नुकसान नहीं पहुँचा रहा है। कैमरे ने काफी अच्छा काम किया है।”

उनकी दो बेटियाँ हैं आरती और अर्धरा जो विदेश में काम करतीं हैं। जब भी दोनों भारत लौटती हैं तो माता-पिता के साथ खेतों पर ही रहती हैं। उन्हें यहाँ शांत वातावरण में रहकर बहुत अच्छा लगता है।

उनके यहाँ 20 किस्म के कटहल के पेड़ हैं, जिसमें वियतनाम एर्ली, चेम्भारती, सुगंध वरिक्का, और रोज वरिक्का आदि शामिल हैं। यहाँ 30 किस्म के केले के पेड़ भी हैं। इसके अलावा, आम, रोज-एपिल, ड्रैगन फ्रूट, अमरुद, स्टार फ्रूट, और मैंगोस्टीन के पेड़ भी लगे हुए हैं।

नारायणन आगे बताते हैं कि उनके फार्म में टमाटर, बीन्स और कद्दू की भी कई किस्में हैं। इनके सैपलिंग उन्होंने अलग-अलग इलाकों में रहने वाले अपने दोस्तों से लिए हैं। जब भी उनके दोस्तों को कोई दुर्लभ प्रजाति का पौधा मिलता है तो वह नारायणन को दे देते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वह उनकी पूरी देखभाल करेंगे। उनके खेत में एक करेला की एक ऐसी प्रजाति है जो कड़वा नहीं होता है।

नारायणन और उनकी पत्नी फार्म की देखभाल खुद ही करते हैं। हालांकि मदद के लिए उन्होंने एक व्यक्ति को रखा है। खेत की उपज को ये बेचते भी हैं। हर हफ्ते अपनी उपज बेचकर नारायणन 20 हज़ार से 45 हज़ार रूपये तक कमा लेते हैं। लेकिन महामारी ने चीज़ें बदल दीं हैं और उनकी इनकम भी कम हुई है। लेकिन उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में सब ठीक हो जाएगा।

एक स्थानीय समिति ‘जैव संरक्षणा समिति’ के लोग हर सोमवार को नारायणन के फार्म से जैविक सब्जियों और फलों को इकट्ठा करते हैं और पलक्कड़ में KSRTC बस स्टैंड के पास उपज बेचते हैं। इस बारे में उन्होंने बताया, “मैं अपने खेत की उपज अज्ञात लोगों को बेचना पसंद नहीं करता। जो लोग इसे बस स्टैंड से इकट्ठा कर सकते हैं, वहाँ से कर लें या घर आकर मुझसे ले सकते हैं।”

नारायणन केरल की अन्य समिति ‘जीवा समरसता समिति’ के अध्यक्ष भी हैं और उनका कहना है कि मुनाफे से ज्यादा उन्होंने आराम महसूस करने के लिए खेती को चुना। “इस उम्र में, मुझे पैसे कमाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि सरकार से अच्छी पेंशन मिलती है। मेरी पत्नी को पेंशन मिलता है। ऐसे में सब्जी आदि से हम जो भी कमाते हैं, उसका उपयोग खेत के लिए बीज खरीदने में करते हैं, ”नारायणन ने अंत में कहा।

उम्र के इस पड़ाव में खेती-किसानी करने वाले पी. थंकामणि और ए. नारायणन के जज्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है।

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संपादन: जी. एन. झा

स्त्रोत 


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