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बाल्टी में मोती उगाकर कमा रहे लाखों, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड में मशहूर हैं इनके मोती

यदि आपको लगता है कि मोती सिर्फ समुद्री सीपों में हो सकते हैं, तो आप गलत हैं। क्योंकि, केरल के कासरगोड इलाके के एक किसान पिछले दो दशकों से अपने आंगन में बाल्टी में मोती की खेती कर रहे हैं।

जी हां, आपने सही पढ़ा! 65 वर्षीय केजे माथचन अपने तालाब में हर साल 50 बाल्टी से अधिक मोतियों की खेती करते हैं। इनमें से अधिकांश मोतियों को ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, कुवैत और स्विट्जरलैंड निर्यात किया जाता है, जिससे उन्हें हर साल लाखों की कमाई होती है।

सिलसिला कैसे शुरू हुआ?

अपनी घर की पीछे आँगन में एक तालाब में उगाते हैं मोती

माथचन सऊदी अरब के ढरान में किंग फ़हद यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेट्रोलियम एंड मिनरल्स में दूरसंचार विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे, इसी दौरान उन्हें अरामको ऑयल कंपनी की ओर से एक अंग्रेजी अनुवादक के रूप में चीन जाने का अवसर मिला।

इस विषय में माथचन द बेटर इंडिया को बताते हैं, “अपनी चीन यात्रा के दौरान, मैं वूशी स्थित दंशुई मत्स्य अनुसंधान केंद्र गया। मत्स्य पालन एक ऐसा क्षेत्र था, जिसमें मेरी हमेशा रुचि रही थी। इसलिए मैंने उनके कई पाठ्यक्रमों के बारे में जानकारियां इकठ्ठी करनी शुरू की। इसी क्रम में पता चला वे मोती उत्पादन से संबंधित डिप्लोमा कोर्स चला रहे हैं। यह मुझे कुछ नया लगा और मैंने इसमें दाखिला लेने का फैसला किया।“

माथचन ने कुछ हफ्ते बाद अपनी नौकरी छोड़ दी और डिप्लोमा करने के लिए चीन चले गए। उनका पाठ्यक्रम छह महीने में पूरा हुआ और साल 1999 में उन्होंने अपने तालाब में मोती की खेती करनी शुरू कर दी।

इस बारे में वह कहते हैं, “यह जल्दबाजी में लिया गया फैसला था और कई लोगों ने इसकी आलोचना की, लेकिन मुझे अहसास था कि यह कारोबार कमाल का साबित होगा और इसमें आगे बढ़ा सकता है।“

इसके बाद माथचन ने  महाराष्ट्र और पश्चिमी घाटों से निकलने वाली नदियों से सीपों को लाया और उन्हें अपने घर में, बाल्टियों में उपचारित करने लगे और पहले 18 महीनों की खेती के फलस्वरूप 50 बाल्टी मोती उत्पादित हुआ।

माथाचन बताते हैं, “मैंने शुरुआत में लगभग 1.5 लाख रुपये खर्च किए थे और लगभग 4.5 लाख के मोतियों का उत्पादन हुआ, इस तरह मुझे 3 लाख रुपए का फायदा हुआ। इसके बाद हमारा कारोबार निरंतर आगे बढ़ रहा है और मैंने उन लोगों के लिए कक्षाएं लेने का लाइसेंस भी प्राप्त कर लिया है, जो मोती की खेती सीखना चाहते हैं।“

कैसे करते हैं मोतियों की खेती

संवर्धित मोती (कल्चरड पर्ल)

माथचन बताते हैं, “मोती मूलतः तीन प्रकार के होते हैं- कृत्रिम, प्राकृतिक और संवर्धित। मैं पिछले 21 वर्षों से संवर्धित मोतियों की खेती कर रहा हूँ। इसकी खेती करना आसान है, क्योंकि भारत में ताजे पानी के शम्बुक आसानी से उपलब्ध होते हैं।“

वह नदियों से लाए गए सीपों को काफी सावधानी से खोलते हैं और इन्हें एक जीवाणु युक्त मेष कंटेनर में 15-25 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में पूरी तरह डुबो देते हैं। डेढ़ वर्षों में नाभिक, मोती के सीप से कैल्शियम कार्बोनेट जमा करके मोती का एक थैली बनाता है। इस पर कोटिंग की 540 परतें होतीं हैं, तब जाकर एक उत्तम मोती का निर्माण होता है।

माथचन के ज्यादातर मोतियों को ऑस्ट्रेलिया, कुवैत, सऊदी अरब और स्विट्जरलैंड निर्यात किया जाता हैं, जहाँ संवर्धित मोतियों की काफी मांग है।

माथचन इस विषय में बताते हैं, “भारतीय बाजार में अधिकांशतः कृत्रिम मोती उपलब्ध होते हैं और सिंथेटिक कोटिंग के कारण ये असली दिखते हैं। यही कारण है कि ये सस्ते होते हैं। एक असली मोती की कीमत लगभग 360 रुपये / कैरेट और 1800 रुपये प्रति ग्राम होती है।“

माथचन ने अपने बैकयार्ड में मोतियों के थोक उत्पादन के लिए एक कृत्रिम टैंक बनाया है। इसके बारे में यहाँ का दौरा करने वाले एक यूट्यूबर लीटन कुरियन बताते हैं, “टैंक की लंबाई लगभग 30 मीटर, चौड़ाई 15 मीटर और गहराई 6 मीटर है। मैंने इतना अनोखा बिजनेस आइडिया कभी नहीं देखा और जिस कोशिश के साथ सेटअप बनाया गया है, वह वास्तव में उल्लेखनीय है। माथचन अपनी शेष जमीन पर वनीला, नारियल और आम की कई किस्मों की भी खेती करते हैं।“

फिलहाल माथचन स्थानीय किसानों की मदद से खेती कार्यों का प्रबंधन करने के साथ ही कई रुचि रखने वाले लोगों को मोती उत्पादन का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।

लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाएं

तालाब का जायजा लेते विदेशी मेहमान

कोरोना महामारी के कारण पिछले कुछ महीनों से माथचन का कारोबार काफी मंद पड़ा हुआ है, लेकिन उन्होंने अपनी कक्षाओं को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ले जाने में सफलता हासिल की और अपने अनूठे बिजनेस आइडिया के कारण काफी ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

इस कड़ी में कोच्चि की आशा जॉन कहती हैं, “जब मैंने पहली बार मोती की खेती के बारे में सुना, तो मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन, जब मैंने उनके फार्म को देखा तो मुझे अहसास हुआ कि यह कितना व्यवहारिक था। फिर, मैंने उनकी कक्षाओं की मदद से प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से समझा और छोटे पैमाने पर खेती शुरू की।“

बी.कॉम अंतिम वर्ष में पढ़ने वाली आर्द्रा सहदेवा का भी कुछ ऐसा ही मानना है, वह कहती हैं, “28 दिनों की अवधि के दौरान माथचन सर कच्चा माल कहाँ से मंगाना है से लेकर खेती के लिए किन मानकों का इस्तेमाल करना चाहिए, हर छोटी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताते हैं। इसके लिए उनका धन्यवाद, मेरा लॉकडाउन काफी प्रोडक्टिव रहा है।”

इन वर्षों के दौरान, माथचन की खेती ने बहुत लोकप्रियता हासिल की है और यही वजह है कि, केरल के कई विश्वविद्यालयों और यहां तक ​​कि कर्नाटक के मत्स्य विभाग के कई छात्रों ने उनके मोती फार्म का दौरा किया है। उन्होंने कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बेंगलुरु में इससे संबंधित कई व्याख्यान भी दिए हैं।

“यदि मैं सऊदी अरब में अपनी नौकरी जारी रखता तो अपने शहर के किसी दूसरे इंसान की तरह ही रहता। मैंने कुछ ऐसा करने की कोशिश की, जो अलग था। उस वक्त भारत में मोती की खेती पर कम बातें हुआ करती थी, शुक्र है कि मैंने इसे किया, यह अभी और समृद्ध हो रहा है,“ माथचन अंत में गर्व से कहते हैं।

मूल लेख- SERENE SARAH ZACHARIAH

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