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कुत्ते को गटर से पानी पीता देख शुरू की पहल, अब तक बाँट चुके हैं 25,000 पानी के बर्तन

कुछ अच्छा करने के लिए जरुरी नहीं कि आप कुछ बहुत बड़ा ही करें। आपके छोटे-छोटे काम भी समाज और पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। जैसे कि पक्षियों के लिए दाने-पानी का इंतजाम करना या फिर अपने गली-मोहल्ले के बेजुबान जानवरों को खाना खिलाना और पानी पिलाना। इन छोटे-छोटे क़दमों से आप बहुत से जानवरों को मदद कर सकते हैं और आपको भी कुछ अच्छा करने का सुकून भी मिलेगा। जैसा कि तुमकुर के 35 वर्षीय जैन सनी हस्तीमल कर रहे हैं। 

कर्नाटक के तुमकुर में रहने वाले सनी पेशे से एक फार्मासिस्ट हैं और साथ ही, वह ‘वॉटर फॉर वॉइसलेस‘ अभियान चला रहे हैं। लगभग सात साल पहले उन्होंने अकेले तुमकुर में इस अभियान की शुरुआत की थी, लेकिन आज यह पहल लगभग दस शहरों तक पहुँच चुकी है। सैकड़ों वॉलंटियर उनके साथ मिलकर इस अभियान को आगे लेकर जा रहे हैं। एक छोटी सी पहल इतने बड़े अभियान में बदल जाएगी, यह उन्होंने खुद भी नहीं सोचा था। सनी ने अपने काम की शुरुआत घर-घर जाकर लोगों को घड़े/बर्तन बांटने से की थी, जिनमें लोग अपने घरों के बाहर जानवरों के लिए पानी भरकर रख सकते हैं। 

आज वह और उनकी टीम लगभग 25000 बड़े-छोटे पानी के बर्तन लोगों को बाँट चुकी है ताकि जितना ज्यादा हो सके पशु-पक्षियों के लिए पानी का इंतजाम हो। खासकर कि इस गर्मी के मौसम में, जब इंसानों को हर घड़ी प्यास लगती है तो आप बेजुबान जानवरों का सोचिए। सनी जैन ने द बेटर इंडिया को अपने इस सफर के बारे में विस्तार से बताया। 

कैसे हुई शुरुआत: 

सनी बताते हैं, “ऐसा नहीं है कि मैं बहुत बड़ा ‘एनिमल लवर’ हूँ लेकिन लगभग सात साल पहले एक दिन एक पपी का मेरी गाड़ी से एक्सीडेंट हो गया। मैं उसे लेकर अस्पताल भी गया लेकिन उसकी जान नहीं बच पाई। इस दुर्घटना ने मुझे अंदर तक हिला दिया और मैं तीन-चार महीने तक इसे सदमे में था कि मुझसे यह क्या हो गया? फिर एक दिन काम पर जाते समय मैंने देखा कि एक कुत्ता गटर में से पानी पी रहा है। उस दृश्य को देखकर मैंने ठान लिया कि मुझे इन बेजुबानों के लिए कुछ करना चाहिए।” 

उन्होंने सबसे पहले शुरुआत अपने घर से की और एक छोटा-सा मिट्टी का बर्तन पानी से भरकर घर के बाहर रखने लगे। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। इसलिए उन्होंने अपने आस-पड़ोस के घरों में जा-जाकर बर्तन बाँटना शुरू किया और उनसे अनुरोध किया कि वे भी बेजुबानों के लिए पानी भरकर रखें। देखते ही देखते उनकी यह ड्राइव सोशल मीडिया पर भी पहुँच गयी और ज्यादा से ज्यादा लोग उनसे जुड़ने लगे। कुछ लोगों को उन्हें समझाने की जरूरत पड़ती थी तो कुछ लोग ऐसे हैं, जो खुद आगे से आकर उनके साथ काम करने लगे। 

जैसे कि बेंगलुरु के प्रफुल मउन, जो बेंगलुरु शहर में इस अभियान को चला रहे हैं। 46 वर्षीय प्रफुल का अपना व्यवसाय है और अपना पूरा खाली समय ‘वाटर फॉर वॉइसलेस’ अभियान के लिए देते हैं। उन्होंने बताया, “सनी जी ने जो पहल की, उसने मुझे काफी प्रभावित किया। हम शहरों में देखते हैं कि लोग बेसहारा जानवरों को खाना खिलाते हैं लेकिन पानी के बारे में कोई नहीं सोचता है। जैसे-जैसे शहरीकरण हुआ है, वैसे ही प्राकृतिक जल-स्रोत कम हुए हैं। जिस वजह से जानवरों की परेशानी बढ़ी है। इसलिए अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि न सिर्फ इंसान बल्कि कोई जानवर भी प्यासा न रहे।” 

उन्होंने आगे बताया कि उनकी टीम इलाके के हिसाब से पानी के लिए बर्तन बांटती है। उनके पास दो तरह के बर्तन हैं – एक बड़ा, जो वह ज्यादातर जंगल वाले इलाके में रखते हैं क्योंकि वहाँ हाथी, हिरण, गधा जैसे जानवर भी पानी पीते हैं। वहीं छोटा बर्तन रिहायशी इलाकों में रखते हैं, जहाँ कुत्ते, बिल्ली, बकरी आदि पानी पीते हैं। इन बर्तनों को मुफ्त में बाटंने के लिए अभियान से जुड़े कुछ लोग और कुछ दानकर्ता आर्थिक मदद करते हैं। “ऐसा नहीं है कि सिर्फ लोगों को कह देने से या उन्हें बर्तन दे देने से हमारा काम खत्म हो जाता है। हमने वॉलंटियर टीम इसी काम के लिए बनाई है कि वे लोगों के बीच जागरूकता फैलाने और बर्तन बाँटने के साथ-साथ इस बात की भी गौर करें कि लोग इन बर्तनों में पानी भर रहे हैं और बेसहारा जानवर इनमें से पानी पी रहे हैं,” उन्होंने आगे बताया। 

कई शहरों में पहुंचा अभियान: 

तुमकुर और बेंगलुरु के बाद यह अभियान मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, कोयंबटूर, होसुर, बेल्लारी, हैदराबाद और गोवा जैसी जगहों पर भी पहुंचा है। सनी कहते हैं कि स्थानीय अख़बारों और सोशल मीडिया के चलते उनका यह अभियान उनके शहर से निकलकर दूसरी जगहों तक भी पहुँच गया। लोग उनसे संपर्क करके उनसे जुड़ने के लिए कहने लगे। चेन्नई और दिल्ली में प्रोजेक्ट को संभालने वाले 36 वर्षीय गणपति सुब्रमण्यम कहते हैं, “2017 में मैं चेन्नई से सनी जी के अभियान से जुड़ा। पहले इस अभियान कोई कोई नामा नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे दूसरे शहरों में यह पहल पहुँचने लगी तो महसूस हुआ कि इस पहल का कोई नाम होना जरुरी है। 2018 में इसे ‘वाटर फॉर वॉइसलेस’ नाम दिया गया। साथ ही, अलग-अलग शहरों में काम को बढ़ाने के लिए हमने वॉलंटियर्स की टीम तैयार की।” 

वाटर फॉर वॉइसलेस के वॉलंटियर अलग-अलग जगहों पर जाकर लोगों को इस अभियान के बारे में बताते हैं। इसके बाद, लोगों में पानी रखने के लिए बर्तन बांटे जाते हैं और उनसे नियमित रूप से फॉलो-अप लिया जाता है। इसके अलावा, उनकी टीम कॉलेज, वन-विभाग और कॉर्पोरेट्स के साथ भी काम करती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने दो-तीन जंगलों में भी जानवरों के लिए पानी की व्यवस्था कराई है। इसके अलावा, स्कूल-कॉलेज, कंपनियों और अन्य सार्वजनिक जगहों पर भी बेसहारा जानवरों के लिए पानी रखने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है। 

कई जगहों पर तो स्थानीय पुलिस स्टेशन, किराना स्टोर के मालिक और सामान्य सब्जी बेचने वाले भी इस अभियान के लिए आगे आये हैं। सनी कहते हैं कि उन्हें इस काम के लिए देश भर में पहचान मिली है। और तो और उन्हें ताइवान देश से भी इस काम के लिए सम्मान मिला है। वह कहते हैं, “मेरी कोशिश है कि इस तरह के काम जैसे जानवरों को खाना-खिलाना, उनके लिए पानी की व्यवस्था करना, पेड़-पौधे लगाना- यह सब स्कूल-कॉलेज की गतिविधियों का हिस्सा होना चाहिए। छात्रों को इन गतिविधियों के लिए नंबर मिलने चाहिए। इस तरह से हम उनमें कम उम्र से ही अच्छी आदतें डाल पाएंगे जो बहुत जरुरी हैं। इसलिए अगर कोई भी स्कूल-कॉलेज का शिक्षक हमारे काम के बारे में पढ़ रहा है तो मेरा सिर्फ यही अनुरोध है कि आप अपने स्तर पर इस अभियान को अपने छात्रों को बीच लेकर जाइये।” 

और अंत में वह लोगों से अपील करते हैं, “देश बहुत ही मुश्किल हालातों से गुजर रहा है। कई जगह लॉकडाउन भी लगा है और सब कुछ बंद होने का असर इन बेजुबान जानवरों पर सबसे ज्यादा पड़ेगा। इसलिए आप सबसे गुजारिश है कि आप अपने-अपने घर के बाहर किसी भी तरह के बर्तन में इन बेसहारा जानवरों के लिए पानी रखें। आप चाहें तो फेसबुक, इंस्टाग्राम के माध्यम से हमसे जुड़ सकते हैं और अपने गाँव-शहर में इस अभियान को आगे बढ़ा सकते हैं। याद रखिये अच्छाई का इंवेस्टमेंट कभी भी बेकार नहीं जाता है। इसलिए सिर्फ अच्छा करने पर ध्यान दें और रात में इस सुकून के साथ सोएं कि आपने नेक काम किया है।” 

अगर आप इस अभियान से जुड़ना चाहते हैं या अधिक जानना चाहते हैं तो उन से फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं।  

संपादन- जी एन झा

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