Site icon The Better India – Hindi

5.6 महीने तक दौड़कर जुटाया 650 से ज्यादा गरीब बच्चों के लिए साल भर का खाना!

भारत में एक बड़ी आबादी खाने की समस्या से जूझ रही है। कुछ लोगों के लिए पेट भरना तो छोड़िए एक समय का भोजन मिल जाए वो ही काफी होता है। आज की तारीख में आलम यह है कि भारत में The State of Food Security and Nurition in the World (AFO) 2019 के मुताबिक 19 करोड़ 44 लाख लोग अल्पपोषित हैं।

देश की इस बड़ी समस्या को समझते हुए धर्मेंद्र कुमार ने ठाना है कि वह जिंदगी भर भूख-मुक्त भारत (हंगर फ्री इंडिया) के लिए लड़ते रहेंगे। इंजीनियर रह चुके धर्मेंद्र आज एक अल्ट्रा मैराथन रनर और बंगलुरु स्थित रनिंग क्लब ‘प्रोटोन स्पोर्ट्स’ के सह-संस्थापक हैं। उन्होंने हाल ही में पूरे भारत में करीब 5.6 महीने दौड़ कर 7.17 लाख रुपए इकठ्ठा किये हैं।

धर्मेंद्र कुमार।

अपने इस काम के लिए वह अक्षय पात्र फांउडेशन से जुड़े। अक्षय पात्र फांउडेशन भारत के 12 राज्यों में स्कूल के बच्चों को फ्री में खाना खिलाता है। एक बच्चे को साल भर खाना खिलाने के लिए ये 1100 रुपये खर्च करते हैं। इस हिसाब से धर्मेंद्र ने करीब 2 लाख मील्स (मील यानी एक टाइम का खाना) के लिए पैसे जुटाए और इससे करीब 650 से ज्यादा बच्चों को साल भर फ्री में खाना मिलता रहेगा।

बंगलुरु के धर्मेंद्र ने भारत से भुखमरी को मिटाने के लिए अपना सफर 17 मार्च 2019 को बंगलुरु से शुरू किया। यह उनका जबरदस्त जुनून ही था कि उन्होंने 15 हज़ार किलोमीटर की यात्रा 5.6 महीने में पूरी की। अपनी पूरी दौड़ का खर्च उन्होंने खुद उठाया। इस दौरान वह भयंकर गर्मी और बरसात जैसे मौसम में भी 5 हजार किलोमीटर दौड़े। उन्होंने पैसे इकठ्ठा करने के लिए ऑनलाइन कैंपेन शुरू किया और देश के 20 राज्यों में जाकर लोगों को भूख से लड़ने और भारत को भूख-मुक्त बनाने का संदेश दिया।

दौड़ लगाते धर्मेंद्र।

लेकिन सवाल तो यह है कि धर्मेंद्र के मन में यह सनक कैसे सवार हुई? दरअसल, उनकी यह कहानी पिछले साल 2018 के नवंबर से शुरू होती है जब गुरू नानक जी की जयंती मनाई जा रही थी। उन्होंने पढ़ा कि उनके अपने शहर पटना में नानक जी की 550वीं जयंती नवंबर 2019 में मनाई जाएगी, इसलिए उन्होंने इसी साल में कुछ सेवा करने के बारे में सोचा।

धर्मेंद्र कहते हैं, ”नानक जी ने अपने जीवन में 24 साल यात्रा की थी, यह मुझे बहुत टच किया। वह लोगों के बीच में जाते थे और परेशानियां सुनकर उन्हें दूर करने की कोशिश करते थे। मैंने भी सोचा कि मैं खुद एक एथलीट हूँ, जो अगर नानक जी के रास्ते पर दौड़े और चले तो बहुत अच्छा रहेगा। दिमाग में ये आया कि इसी साल करना चाहिए, नानक जी की 550वीं जयंती का सेलिब्रेशन वाला साल है।”

धर्मेंद्र ने इसकी प्लानिंग शुरू कर दी। जैसे-जैसे प्लानिंग आगे बढ़ी उनके दिमाग में आया कि सिर्फ दौड़ से कुछ नहीं होगा। इसमें कोई सामाजिक कार्य जोड़ लेना चाहिए जिससे किसी का भला हो और कुछ नहीं तो, इससे समाज में उस कार्य के प्रति जागरुकता ही फैलेगी।

धर्मेंद्र कुमार।

अपनी दौड़ और भुखमरी से लड़ने की प्लानिंग करने के बाद धर्मेंद्र ने स्टडी करके अक्षयपात्र के बारे में जाना। उन्होंने इस एनजीओ से टाईअप किया और अपनी अल्ट्रा मैराथन शुरू की। इस दौरान इनका काम भी प्रभावित हुआ और करीब 6-7 महीने वह अपनी कंपनी पर ध्यान नहीं दे पाए।

दौड़ के दौरान कभी धर्मेंद्र बीमार पड़ गए तो कभी आराम करने और रात बिताने के लिए ठिकाना नहीं मिलता था।

धर्मेंद्र बताते हैं, ‘‘साफ सफाई की बड़ी दिक्कत होती थी। अच्छा खाना नहीं मिलता था। खराब खाने की वजह से पेट खराब हुआ और 3 दिन दौड़ नहीं सका। वहीं गर्मी और बारिश में ह्यूमिडिटी बड़ी परेशानी थी। बंगाल और उड़ीसा में तो मुझे 10 दिनों के लिए रुकना पड़ा था ताकि बॉडी रिकवर हो जाए। इसके अलावा मुझे रहने के लिए जद्दोजहद करनी पड़नी थी। सभी गुरुद्वारों में ठहरने का प्रबंध नहीं था। कभी-कभी तो होटल ढूंढने के लिए ही काफी ट्रैवल करना होता था।’’

धर्मेंद्र के लिए ठहरने के अलावा जिस रास्ते पर दौड़ना होता था वो बड़ा चैलेंज हो जाता था। उन्होंने बताया, ‘‘हाइवे पर दौड़ना फिर भी ठीक था। लेकिन थोड़ा चैलेंजिंग तो था। कुछ जगहों पर मुझे खराब सड़कों और रास्तों से गुजरना पड़ा और कई बार उल्टा-पुल्टा गाड़ी चलाने वाले लोग मिल जाते थे। परिवार वाले भी समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब क्या हो रहा है। मैंने जब सोचा कि नानक जी के रास्ते पर चलना है तो उनसे मेरा काम जुड़ा होना चाहिए। उनके समय में भी भूख बहुत बड़ा मुद्दा थी, जो उनके यात्रा शुरू करने की बड़ी वजह बनी थी। मैंने देखा कि गुरुद्वारों में लंगर का भी मकसद भूख मिटाना ही है और इसके अलावा रिसर्च करके पता चला कि भुखमरी सबसे बड़ी समस्या है, हेल्थ और सशक्तिकरण जैसे मुद्दे तो बाद में हैं,” धर्मेंद्र ने कहा।

शुरू-शुरू में धर्मेंद्र के परिवार को उनकी काफी फिक्र रहती थी। वे इतना समझ नहीं पा रहे थे। हाइवे वगैरह पर भी दौड़ना होता था। गर्मी का समय था, नई-नई जगह होती थीं, तो उन्हें डर लगता था। लेकिन बाद में उन्हें विश्वास हो गया और दोस्तों से भी सपोर्ट और प्रशंसा मिली।

अपने सफर के दौरान लोगों से अभिवादन स्वीकार करते धर्मेंद्र।

पर रास्ते में जो लोग मिले, उनमें से कई ने तो सपोर्ट किया लेकिन कई लोगों ने उनका मजाक भी बनाया। लोग उन्हें तंज़ करते हुए कहते थे – “दौड़ने से भला कैसे भुखमरी दूर हो जाएगी। क्यों इतनी गर्मी में दौड़ रहे हो?”

शुरू में धर्मेंद्र का मकसद सिर्फ एक बार दौड़ना था, लेकिन अब उन्होंने ठान लिया है कि हंगर फ्री इंडिया के लिए पूरी उम्र काम करते रहेंगे। इसके लिए भले ही वह दौड़े या कोई और उपाय करे, वह करेंगे।

अंत में धर्मेंद्र कहते है, “जब मैं इस यात्रा पर निकला था तो सोचा था ये एक टाइम के लिए होगा और दोबारा अपने काम में लग जाउंगा। लेकिन जब अपनी आंखो से भारत को देखा तो यात्रा के दौरान ही मन बना लिया कि भुखमरी पर काम करता रहूंगा और पूरी उम्र करूंगा।”

धर्मेंद्र का ऑनलाइन कैपेंन फिलहाल तो बंद है लेकिन वह अन्य योजनाओं पर काम कर रहे हैं कि कैसे भारत को भुखमरी से मुक्त किया जाए।

अगर आप की किसी भी प्रकार की मदद करना चाहते हैं या उनसे बात करना चाहते हैं तो 99161 30560 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन – भगवती लाल तेली


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

Exit mobile version