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वोकल फॉर लोकल की मिसाल है शोभा कुमारी की कला, 1000+ महिलाओं को दी है फ्री ट्रेनिंग

Vocal for Local

अगर आप अपने हुनर का सही उपयोग करें तो आप न सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकते हैं। जैसा कि रांची, झारखंड की रहने वाली 48 वर्षीया शोभा कुमारी कर रही हैं। शोभा कुमारी की कहानी वोकल फॉर लोकल (Vocal for Local) की एक बेहतरीन मिसाल है। पिछले 27 सालों से, शोभा न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर हैं बल्कि उन्होंने हजार से ज्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के गुर सिखाएं हैं। 

विभिन्न कलाओं में माहिर शोभा कुमारी, बारहवीं तक पढ़ी हैं और आज हैंडीक्राफ्ट (हस्तशिल्प) उत्पादों का अपना एक व्यवसाय चला रही हैं। बड़ी, पापड़ जैसे व्यंजनों से लेकर वह कढ़ाई, सिलाई, चित्रकारी और तरह-तरह की कलात्मक चीजें बनाने का हुनर रखती हैं। पिछले कुछ समय से, उन्हें उनकी खास तरह की ‘गुड़िया’ बनाने की कला के लिए काफी सराहना मिल रही है। शोभा इन गुड़ियों को हाथ से बनाती हैं, जो देखने में खूबसूरत होने के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। इन्हें बनाने के लिए वह मिट्टी, कपड़ा, और चावल की भूसी आदि का प्रयोग करती हैं। 

शोभा ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे बचपन से ही अलग-अलग तरह की हस्तकला और शिल्पकला में दिलचस्पी रही है। मैं बचपन में जो कुछ भी नया देखती थी, उसे सीखने की कोशिश करती थी। स्कूल के समय से ही मैं सिलाई, कढ़ाई और हस्तशिल्प का काम कर रही हूँ। आज हर जगह ‘आत्मनिर्भरता’ का नारा दिया जा रहा है। लेकिन, मेरे माता-पिता ने मुझे आत्मनिर्भरता का महत्व तभी समझा दिया था, जब मैं नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी। उन्होंने मुझे सिखाया कि आप चाहे कम कमाएं लेकिन, आपको कमाने का तरीका पता होना चाहिए। इसके साथ ही, इस काम में मेरी इतनी ज्यादा दिलचस्पी थी कि मैंने इन्हें सीखना जारी रखा।” 

शोभा कुमारी

वह कहती हैं कि उन्होंने राजस्थान के कोटा से, गुड़िया बनाने की कला सीखी। वहां, इन गुड़ियों को राजस्थानी ढंग से बनाया जाता है लेकिन, शोभा ने इन्हें झारखंडी रूप दिया है। इनके माध्यम से वह झारखंडी संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं। उनकी बनाई हुई गुड़िया, झारखंडी परिधानों में सजी होती हैं। इनके जरिए, वह झारखंड के ग्रामीण परिवेश को दर्शाती हैं। वह बताती हैं, “मैं लगभग 12 साल से इन गुड़ियों का व्यवसाय कर रही हूँ और इसके अलावा, मैं हैंडीक्राफ्ट बैग भी बनाती हूँ। मुझे गुड़िया और बैग, दोनों के ही काफी ऑर्डर मिलते हैं। लेकिन, इन्हें तैयार करने में काफी समय लगता है इसलिए, हम सिमित संख्या में ही गुड़िया बना पाते हैं। लेकिन, बैग का काम काफी ज्यादा है।”

शोभा ने अपने संगठन, सृजन हैंडीक्राफ्ट्स के जरिए, 40-45 महिलाओं को रोजगार दिया है। शोभा ने इन सभी महिलाओं के हुनर के हिसाब से, इन्हें ट्रेनिंग देकर काम भी दिया है। शोभा कहती हैं कि किसी चीज को बनाने की ट्रेनिंग देना ही काफी नहीं है बल्कि वह इन महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने और अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने के गुर भी सिखाती हैं। 

महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

शोभा, गरीब और जरूरतमंद तबके की महिलाओं को मुफ्त में ट्रेनिंग देती हैं। उनका कहना है कि वह सिर्फ ऐसी ही महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं, जिन्हें काम की जरूरत होती है और जो ट्रेनिंग के बाद अपना खुद का काम शुरू करना चाहती हैं। उन्होंने आगे बताया, “इन महिलाओं को ट्रेनिंग देने के लिए, मुझे अपने व्यस्त शिड्यूल से अलग से समय निकालना पड़ता है। इसलिए, मैं यह समय उन महिलाओं को देना पसंद करती हूँ, जिन्हें वाकई रोजगार की जरूरत है।” 

गुड़िया बनाती महिलाएं

उनसे ट्रेनिंग ले चुकी कई महिलाएं, आज अपना काम भी शुरू कर चुकी हैं। वे अपने घरों से अलग-अलग उत्पाद बनाकर बेचती हैं। 38 वर्षीया सरोज खलखो बताती हैं कि वह लगभग 12 सालों से शोभा के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने शोभा से ही सिलाई, कढ़ाई और गुड़िया आदि बनाना सीखा है। जब उन्होंने काम शुरू किया तो वह महीने के बस 800-1000 रुपए कमाना चाहती थीं ताकि घर में कुछ मदद हो सके। उनके पति माली थे और तब उनके घर में आर्थिक तंगी बहुत ज्यादा थी। 

लेकिन, आज उनके परिवार की तस्वीर बिल्कुल बदल गयी है। वह महीने के 25-30 हजार रुपए कमा लेती हैं और आज उनके पास अपनी स्कूटी भी है। वहीं, एक महिला सुमन केरकेट्टा (38), दस साल पहले दिहाड़ी-मजदूरी का काम करती थीं। लेकिन आज वह शोभा के साथ काम करने के साथ-साथ, अपने खुद के उत्पाद बनाकर भी बेचती हैं। जिससे हर महीने वह 30-35 हजार रुपए कमा लेती हैं। वह कहती हैं कि अब इस काम में, उनके पति भी उनका साथ दे रहे हैं। 

शोभा बताती हैं कि उनके साथ काम करने वाली अन्य महिलाएं भी, महीने के 10-15 हजार रुपए कमा लेती हैं। उन्होंने महिलाओं को अलग-अलग समूहों में बांटा हुआ है। कुछ महिलाएं उत्पाद बनाती हैं तो कुछ महिलाएं इनकी बिक्री का काम करती हैं। 

मिट्टी से बनी कलात्मक मूर्तियां

सब्जी बाजार में लगाती हैं स्टॉल 

उत्पादों की मार्केटिंग के बारे में शोभा कहती हैं कि शुरुआत में, वह घर-घर जाकर अपने उत्पाद बेचती थीं। लेकिन, फिर ग्राहकों के माध्यम से ही और अधिक ग्राहक जुड़ते गए। इसके अलावा, वह और उनकी महिला टीम शहर में लगने वाले, सभी तरह के मेलों और हाट में जाकर भी अपना स्टॉल लगाते हैं। 

शोभा कहती हैं, “यहाँ एक साप्ताहिक हाट भी लगता है, जहाँ लोग फल-सब्जियां खरीदने आते हैं। वहां हमारी सबसे ज्यादा बिक्री होती है। यह एक संदेश भी है कि जरूरी नहीं है कि आप कहीं बड़ी दुकान या शोरूम खोलकर ही चीजें बेच सकते हैं। आप इस तरह की जगहों पर, छोटा-सा स्टॉल लगाकर भी काम कर सकते हैं। आप कम से कम साधनों में भी बेहतर काम कर सकते हैं।”

साप्ताहिक हाट में बेचती हैं उत्पाद

पिछले साल वोकल फॉर लोकल (Vocal for Local) अभियान के बाद, शोभा को काफी सराहना मिली। अब उनका काम और भी बढ़ गया है। वह कहती हैं, “मेरा परिवार संपन्न है और मुझे काम करने की जरूरत नहीं थी। लेकिन मेरा मानना है कि जरूरत सिर्फ अपनी नहीं होती है बल्कि आपको दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। अगर आपके पास कोई ज्ञान या हुनर है तो इससे आप दूसरों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश करें। जब आपके काम से दो-चार लोगों को रोजगार मिलेगा तभी सही मायनें में आत्मनिर्भरता का सपना साकार होगा।”

इस काम से उनकी सालाना कमाई लाखों में है। लेकिन, शोभा का कहना है कि उन्हें पैसे कमाने से ज्यादा संतुष्टि, इस बात की है कि उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को सशक्त बनाया है। अंत में वह कहती हैं, “जरुरी नहीं कि आपके घर में जब पैसों की जरूरत हो, आप तभी कमाना शुरू करें। पैसे कमाने से आपको एक अलग तरह की आजादी मिलती है, खासकर महिलाओं को। इसलिए छोटा-बड़ा जैसा भी हो, कोई न कोई काम जरूर करें।” 

अगर आप शोभा कुमारी की बनाई हुई गुड़ियों को देखना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें। उनसे संपर्क करने के लिए आप उन्हें srijanhandicrafts@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

तस्वीरें: शोभा कुमारी

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