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झारखंड के किसान दंपत्ति ने लॉकडाउन में बना दिया तालाब, अब हर मौसम कर सकेंगे खेती!

अगर किसी काम को दिल से करने का जज़्बा हो तो हालात और बाधाएँ कुछ कर गुजरने के जुनून के आगे घुटने टेक देते हैं। कुछ ऐसे ही जज्बे के धनी हैं झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित चिरची गाँव के एक किसान दंपत्ति, जिन्होनें लॉकडाउन के दौरान पथरीली जमीन को खोदकर डोभा (छोटा तालाब) बना लिया। 

एक किसान की सबसे बड़ी ज़रूरत सिंचाई के लिए पानी की होती है और लगातार पानी की कमी से जूझ रहे इस किसान दंपत्ति कृष्णा सिंह कुंटिया एवं उनकी पत्नी संकरी कुंटिया ने देश में चले लॉकडाउन के बीच डोभा बनाने का निर्णय किया और पति-पत्नी ने मिलकर अपने बुलंद हौसले के बूते यह सफलता पाई।

किसान दंपत्ति कृष्णा एवं संकरी

जहाँ एक ओर दर्जनों मजदूर मिलकर एक डोभा का निर्माण एक माह में करते थे, वहीं यह काम इन दो लोगों ने करीब 45 दिन में पूरा किया। डोभा बनाना इतना भी आसान नहीं था क्योंकि जिस जमीन पर इन्होंने डोभा का निर्माण किया है वह बेहद पथरीली है। खुदाई के दौरान कई बड़े-बड़े ऐसे पत्थर मिले, जिनको काटकर डोभा बनाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सा लगता था। इन पत्थरों को तोड़ते हुए दोनों घायल भी हुए, लेकिन इन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी।

खेती के लिए अपनी लगन एवं मेहनत को जुनून बनाकर करीब डेढ़ महीने तक दिन रात मेहनत करने के बाद आज उनके चेहरे पर सफलता की मुस्कुराहट देखी जा सकती है। किसान पति-पत्नी को अब तसल्ली है कि वे अपने मन मुताबिक खेती कर पाएँगे।


जुगाड़ से किया काम आसान 

कृष्णा कुंटिया बताते हैं कि बड़े-बड़े पत्थरों को तोड़ने के दौरान जब वह हारने लगे थे तो स्थानीय जुगाड़ तकनीक काम आई। दो टन के पत्थर को तोड़ने के लिए कई छोटे पत्थरों को उसके पास जमा करके आग लगाकर गर्म करना शुरू किया, पत्थर गर्म होकर जब आवाज करता तो उसके बाद हथौड़े से ठोकने पर वो टूट जाता था।

संकरी कुंटिया द बेटर इंडिया से बात करते हुए अपनी खुशी रोक नहीं पाती हैं, वह बताती हैं, “मुझे विश्वास नहीं होता कि लॉकडाउन में जब सब खाली थे तब हम लोगों ने इतना बड़ा काम कर लिया। हम लोगों ने डोभा अपनी जमीन पर बनाया है।”

डोभा की मदद से उन्हें कमाई में कितनी मदद मिलेगी, इसके बारे में वह बताती हैं, “मैं सखी मंडल से भी जुड़ी हूँ और मुझे आजीविका एवं खेती के लिए आसानी से लोन भी मिलता है साथ ही हम महिलाओं को एनआरएलएम के जरिए लगातार खेती प्रशिक्षण एवं तकनीकि जानकारी भी मिलती है, जिससे हम खेती में अच्छा कर पा रहे हैं और मैं तो अभी ड्रिप तकनीक से मक्के, मिर्च और ग्वारफली की खेती तैयार कर रही हूँ, अब पानी की दिक्कत दूर हुई है तो कमाई भी बढ़ेगी।”

किसान दंपत्ति कृष्णा एवं संकरी

ऑटो चलाना छोड़कर शुरू की खेती

तांतनगर के सखी मंडलों को खेती की तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध कराने वाली आजीविका मिशन की फील्ड थिमेटिक कोर्डिनेटर सुजाता बेक बताती हैं, “कृष्णा कुंटिया पहले ऑटो चलाते थे लेकिन अब माइक्रो ड्रिप सिंचाई की सुविधा मिलने के बाद वह खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं। पहले पानी की दिक्कत थी लेकिन अब लॉकडाउन में खोदे गए डोभा से वह दिक्कत भी दूर हो गई है।”

सुजाता आगे बताती हैं, “कृष्णा कुंटिया एवं संतरी दोनों काफी मेहनती हैं और अपनी जमीन होने की वजह से वे खेती में नई ऊँचाइयाँ छू रहे हैं।”

कृष्णा लॉकडाउन में डोभा बनाकर किसानों के लिए एक प्रेरणा भी बन चुके हैं। वह आजीविका कृषक मित्र के रुप में काम करके ग्रामीणों को जैविक खेती एवं खेती करने के बारे में प्रशिक्षण भी देते हैं और मदद भी करते हैं।

संकरी देवी प्रशिक्षक सुजाता के साथ मक्के के खेत में।

सब्जी की खेती से हर साल हो रही है एक लाख रूपये से अधिक की कमाई!

कृष्णा कुंटिया अपनी आगे की रणनीति बताते हैं, “अब खेती में सिंचाई की बाधा दूर हो जाएगी और हम एक मौसम में हर फसल से करीब 30 से 35 हजार रुपये तक कमा सकेंगे। पहली बारिश के बाद हमारे डोभे में करीब 5 फीट पानी जमा हो गया है. ड्रिप इरिगेशन के जरिए हमारी फसलें अब लहलाएंगी। वर्तमान में मैं 25 डिसमिल मॉडल में ड्रिप खेती कर रहा हूँ, जिसके लिए मुझे सरकार के झारखंड हॉर्टिकल्चर माइक्रो ड्रिप इरिगेशन परियोजना से मदद भी मिली है।”

कृष्णा एवं संकरी कुंटिया आज एक सफल किसान के रुप में अपनी पहचान तो बना चुके हैं, लेकिन वे अभी लम्बा सफ़र तय करना चाहते हैं। कल तक ऑटो चलाकर जीवन बसर करने वाले कृष्णा अब दूसरों को भी ड्रिप खेती के फायदे सिखाते हैं।

लॉकडाउन के विपरीत हालात में इस किसान दंपत्ति के साहसिक निर्णय एवं कार्य ने आज खेती के क्षेत्र में सफल होने के रास्ते खोल दिए हैं। अपनी जिद्द एवं जज्बे के बूते असंभव से दिखने वाले काम को संभव करने की क्षमता रखने वाले किसान दंपत्ति को द बेटर इंडिया सलाम करता है।

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