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‘लाख की खेती’ से हो रही लाखों में कमाई, झारखंड की 75 हज़ार महिलाएं बनीं आत्मनिर्भर

Women Lac farmers

   

झारखंड के खूंटी जिले के एक छोटे से गाँव, सिल्दा की रहने वाली सुशीला मुंडा, पिछले तीन साल से लाह (लाख) की खेती (lac farming) से जुड़कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। लेकिन, पहले उन्हें परंपरागत खेती से ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। वह कहती हैं, “मैंने गांव में ही लाख की खेती (lac farming) की ट्रेनिंग ली। इसके अंतर्गत हमें नए और वैज्ञानिक तरीके से लाख की खेती करना सिखाया गया।” महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP) के जरिये, सुशीला जैसी कई और महिलाओं को ये ट्रेनिंग दी गयी है।लाख की खेती से जुड़ने के बाद, इन महिलाओं के आर्थिक स्तर में काफी सुधार आया है।

झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) के तहत 2013 में, महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना की शुरुआत की गयी थी। इसके अंतर्गत लाख के अलावा, कई अन्य तरह की वैज्ञानिक खेती से भी महिलाएं जुड़ रही हैं।  

वैज्ञानिक खेती से महिलाओं को हुआ फायदा    

MKSP के तहत झारखंड की तकरीबन 75 हजार महिला किसान, आज लाख की खेती से जुड़ी हुई हैं। इस परियोजना का मकसद गाँव की महिलाओं को वैज्ञानिक खेती से जोड़कर, उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है। MKSP के स्टेट प्रोग्राम मैनेजर, आरिफ़ अख्तर ने द बेटर इंडिया को बताया कि झारखंड देश का सबसे बड़ा लाख उत्पादक राज्य है। देश का 50 प्रतिशत लाख उत्पादन यहीं से होता है।साथ ही, राज्य के तकरीबन 25 से 30 ब्लॉक में MKSP के जरिये, महिलाओं को लाख की खेती (lac farming) से जोड़ा गया है।    

वह कहते हैं “नेल पॉलिश से लेकर न्यूक्लियर बॉम तक, सभी में लाख का इस्तेमाल किया जाता है। झारखंड में कई सालों से लाख की खेती(lac farming) की जा रही है। लेकिन सही तकनीक और ट्रेनिंग के अभाव में, इसका विकास पहले इतना कभी नहीं हुआ, जितना पिछले आठ सालों में हुआ है।”  

सुशीला बताती हैं कि MKSP में लाख की खेती की ट्रेनिंग लेने के बाद, उन्हें खेती करने के लिए एक विशेष किट भी दी गई है। जिसमें लाख की खेती (lac farming) से जुड़े कुछ सामान, जैसे- सिकेटियर, लूप कटर, स्प्रेयर, कुछ अन्य दवाइयां भी दी गयी हैं।  

सुशीला अपने खेतों में मौसमी सब्जियां भी उगाती हैं। वह बताती हैं, “सब्जियों और फलों की खेती से बड़ी मुश्किल से घर का गुजारा चलता था। वहीं, अब लाख की खेती (lac farming) से पिछले साल मुझे 85 हजार रुपये का मुनाफा हुआ है।”   

वह आगे बताती हैं, “लाख की खेती के लिए, लाख के कीड़ों को पाला जाता है। यानी खेती में लाख के कीड़े ही बीज का काम करते हैं, जिन्हें बीहन कहा जाता है।कीड़े लगी लकड़ियों को अन्य पेड़ों से बांधा जाता है, ताकि कीड़ो की संख्या और बढ़े तथा लाख की पैदावार ज्यादा हो।” सुशीला लाख की खेती के लिए, अपने खेत के कुसुम के पेड़ों में बीहन लगाती हैं। शुरुआती दिनों में उन्हें MKSP की तरफ से कुछ बीहन मिले थे।  

MKSP द्वारा इन महिलाओं का एक सेल्फ हेल्प ग्रुप भी बनाया गया है। यह ग्रुप महिलाओं को अपना लाख उत्पाद बेचने में मदद करता है।राज्य में कुल 400 से ज्यादा लाख कलेक्शन सेंटर हैं, जहां ये महिलाएं लाख बेचती हैं।   

झारखंड के ही गोईलकेरा के एक गाँव बिला की शकुंतला मुंडा के जीवन में भी लाख की खेती (lac farming) से काफी समृद्धि आई है। वह बताती हैं कि गाँव में MKSP के द्वारा साल 2018 में, उन्होंने लाख की वैज्ञानिक खेती करना सीखा उनका कहना है कि लाख की खेती (lac farming) में वैज्ञानिक तरीका अपनाने के बाद, उनके जीवन में काफी अच्छा बदलाव आया।   

वह कहती हैं, “मेरा परिवार पहले भी लाख की खेती करता था, लेकिन लाख की पैदावार इतनी अच्छी नहीं होती थी। कभी लाख में फफूंदी लग जाती, तो कभी किसी और कारण से लाख बर्बाद हो जाती थी। ट्रेनिंग के बाद ही, हमें लाख को बर्बाद होने से बचाने के लिए, सही दवाइयों की जानकारी मिली।मैंने ज्यादा लाख बनाने के लिए, बीहन की लकड़ियों को पेड़ से बाँधने का सही तरीका वहीं सीखा।”   

पिछले साल शकुंतला ने 200 किलो लाख, 580 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची। वह बड़ी ख़ुशी से बताती हैं, “लाख से हुए मुनाफे से ही मेरे पति ने नई मोटरसाइकल भी खरीदी है, जिससे अब हमें कहीं आने जाने में कोई दिक़्क़त नहीं होती।”  

कीड़ों के रक्षा कवच से बनती है लाख    

लाख के कीड़ों द्वारा लाख पैदा की जाती है, जो एक प्राकृतिक राल (Resin) है। लाख की खेती (lac farming) के बारे में बात करते हुए आरिफ़ कहते हैं, “लाख के बीहन (कीड़े) से लेकर, लाख निकालने तक की प्रकिया में कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। लाख के कीड़े को मुख्य रूप से पलाश, कुसुम तथा बेर आदि पेड़ों पर पाला जाता है।” 

 रंगीनी एवं कुसुमि दो तरह के लाह के बीहन से लाह की खेती की जाती है। एक वर्ष में तीन बार बीहन लाह तैयार की जाती है, जिसमें एक बार रंगीनी और दो बार कुसुमि के बीहन बनते हैं। पेड़ की छोटी-छोटी टहनियों में लाह बनते हैं। इन टहनियों में कुछ विशेष महीनों में कीड़े निकलते हैं, इस प्रकार कीड़े लगी टहनियों को नए वृक्षों से बांधा जाता है। जिन वृक्षों में लाह की खेती (lac farming) की जानी है। इस दौरान, यह खास ध्यान रखा जाता है कि बीहन को पेड़ की उस टहनी से बांधा जाए, जो अधिक पुरानी न हो। यानि इस प्रक्रिया में छटनी किये हुए पेड़ों का इस्तेमाल होता है  लकड़ी पर लगे कीड़े, पेड़ के तनों के रस को चूस कर कई अन्य कीड़ो को जन्म देते हैं और लाह बनाते हैं। ये कीड़े अपने बचाव के लिए, एक विशेष प्रकार का कवच बनाते हैं। यह कवच ही लाह या लाख कहलाता है। इसके बाद, उस लकड़ी से लाख को निकला जाता है। इस तरह, सालभर में तीन बार लाख की खेती (lac farming) की जाती है। छह महीने में एक छोटा किसान तक़रीबन 100 किलो तक लाख का उत्पादन करता है, जिसका मूल्य बाज़ार में रु.300 से रु. 400 प्रति किलो मिल जाता है।    

लाख का उपयोग   

लाख का उपयोग काफी चीजों में किया जाता है। मारे घर के फर्नीचर को चमकाने से लेकर पेन्ट, स्याही, औषधि, चमड़ा, विद्युत एवं ऑटोमोबाइल उद्योगों के साथ ही, रक्षा, रेलवे तथा डाक विभागों में भी इसका उपयोग किया जाता है।लाख का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों जैसे- नेल पॉलिश, डियोड्रेंट, हेयरस्प्रे आदि के साथ, सोने-चांदी की ज्वेलरी में भी होता है। विदेशों में लाख की एक परत को फलों पर भी चढ़ाया जाता है।  

यह कहना गलत नहीं होगा कि आप और हम लाख का उपयोग, किसी न किसी रूप में तो करते ही हैं।साथ ही, झारखंड की इन महिलाओं के जीवन में लाख के उत्पादन से कई अच्छे बदलाव भी आए हैं।   

संपादन – प्रीति महावर  

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