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वर्क फ्रॉम होम से उकता गए हों तो चलिए ‘वर्केशन’ पर, सुरक्षा के साथ बुला रहे ये पहाड़!

वक़्त-वक़्त की बात है, कभी छुट्टियों का मतलब था काम से छुट्टी और अब ऐसा वक़्त आया है कि काम खुद छुट्टियों की पीठ पर बैताल की तरह लदकर हर जगह चलने का मन बना चुका है। सलाहकार फर्म केपीएमजी की ‘कोविड-19 एचआर रिपोर्ट’ के मुताबिक 68% कंपनियाँ ‘वर्क फ्रॉम होम’ को अपनी एचआर नीति का अंग बना चुकी हैं। वर्चुअल वर्कप्‍लेस की इस संकल्‍पना को और ठोस रूप देते हुए ‘वर्क एनीवेयर, टुगेदर’ का सिद्धांत भी आ चुका है और दुनियाभर की कई बड़ी कंपनियों ने तो जून 2021 तक अपने कर्मचारियों को घरों से काम करने का विकल्‍प देने की घोषणा कर डाली है।

घर और दफ्तर ऐसा हो तो क्या! तस्वीर साभार – ग्रैंड ड्रैगन

नोएडा की एक आईटी फर्म में सॉफ्टवेयर इंजीनियर समीर और उनकी आईटी कंसल्‍टैंट पत्‍नी निधि लेह स्थित ग्रैंड ड्रैगन में वर्केशन को लेकर उत्‍साहित हैं। समीर बताते हैं, ”घर की चहारदीवारी में बीते साढ़े चार महीने से सिमटे रहने के बाद ‘बाम-ए-दुनिया’ (roof of the world) को नया वर्कस्‍पेस बनाने का ख्‍याल बुरा नहीं है। सिर्फ साढ़े सात हजार रु प्रतिदिन (स्‍टे, फूड, फ्री वाइ-फाइ, एयरपोर्ट पिक-अप और ड्रॉप खर्च शामिल) के खर्च पर लेह के एक लग्‍ज़री होटल को अगले दस दिनों के लिए बुक करने का पूरा मन बना चुका हूँ। अब सिर्फ कोविड टैस्‍ट की रिपोर्ट आने का इंतज़ार है। दरअसल, कोविड निगेटिव रिपोर्ट लेकर जाने पर लद्दाख में क्‍वारंटीन का झमेला नहीं होगा। इन दिनों लेह आने-जाने का हवाई टिकट भी मंहगा नहीं है। इधर रिपोर्ट आयी और उधर मैं चला अपने परिवार के संग।”

क्यों न सुबह के नाश्ते की शुरुआत कुछ ऐसी ही हो। तस्वीर साभार – ग्रैंड ड्रैगन

समीर की पत्नी निधि बताती हैं, “हमने पहाड़ों में वैकेशन और ऑफिस वर्क को पहली बार साथ-साथ करने का फैसला काफी सोच-विचार के बाद किया है। इसमें सबसे ज्‍यादा मदद इस बात से मिली कि इस लग्‍ज़री होटल ने इस पूरे साल के लिए अपने रेट काफी कम कर दिए हैं, हाइजीन को लेकर सख्‍त रवैया अपनाया है। मौजूदा माहौल में बहुत कम लोग वहाँ जा रहे हैं।”

डिजिटल नोमैड यानी कि कहीं से भी काम करने की आज़ादी  

होटलों ने कामकाजी पेशेवरों को लुभाना शुरू किया तो हॉस्‍टल भला क्‍यों पीछे रहें? नामी हॉस्‍टल ब्रैंड ज़ॉस्‍टल ने तो लंबे समय के लिए मेहमानों को न्‍योता दिया है और अपनी पेशकश को बेहद वाजिब खर्च पर परोसा है। जॉस्टल का #movein कैम्पेन घर से दूर रहकर काम करने और वैकेशन करने के मौजूदा रुझान के अनुरूप लाया गया है। अगर आप सीमित बजट में लंबे समय तक घर से दूर समय बिताना चाहते हैं तो इस बैकपैकर हॉस्‍टल में डॉरमिट्री या अलग कमरा चुनें और रहें वहाँ, जहाँ आपका दिल करे। ज़ॉस्‍टल के हॉस्‍टल में 7 दिनों के लिए रहने का खर्च करीब साढ़े पाँच हज़ार रूपए से शुरू है। है न एकदम जेब के भीतर खर्च!

कहीं से भी काम करने की आज़ादी   तस्वीर साभार-नॉट ऑन मैप्‍स’

हर गांव ही घर है’ का मूलमंत्र सौंपने वाले ‘नॉट ऑन मैप्‍स’ ने शहरों में लॉकडाउन और अब वर्क फ्रॉम होम की बोरियत ढो रहे पेशेवरों के लिए घरों से दूर, घर जैसा माहौल, सुरक्षा, सुविधा और साथ ही, कुदरती नज़ारों और स्‍थानीय लोगों के बीच उनके जैसे रहन-सहन के अवसरों को पेश किया है। एक-दो महीने या और भी लंबे समय तक किसी ऐसे ठिकाने में रहना, जीना और काम करना जिसके बारे में शायद ही किसी को पता हो और बहुत मुमकिन है कि वह जगह किसी मानचित्र पर ही न हो, वाकई रोमांचकारी है।

पालमपुर हिमाचल में एक होम स्टे

देश के दूरदराज के इलाकों में, कुछ जानी-पहचानी तो कुछ गुमनाम मंजिलों पर सस्‍टेनेबल होमस्‍टे नेटवर्क चलाने वाली संस्‍था ‘नॉट ऑन मैप्‍स’ की ऑपरेशन मैनजर ऐश्‍वर्या कुलकर्णी बताती हैं, ”इनोवेटिव सोच भी तभी पैदा होती है जब असाधारण हालात बनते हैं। किसने सोचा था कि बॉस से एकाध-दो दिन की छुट्टी को लेकर जद्दोजहद से गुजरने वाले प्रोफेशनल्‍स अब ‘लॉन्ग टर्म स्‍टे’ विकल्‍पों की फरमाइश करेंगे। पिछले कुछ समय से इस बारे में हमारी रिज़र्वेशन टीम से बहुत लोगों ने संपर्क किया है।”

वह बताती हैं कि मेहमानों और होमस्‍टे मालिकों और उनके परिवारों की सुरक्षा के मद्देनज़र हम नई हाइजीन गाइडलाइंस लेकर आए हैं। हमने ग्रामीण परिवेश में या किसी सुदूर पर्वतीय अथवा जनजातीय इलाके में छुट्टियाँ मनाने आए परिवार की सुरक्षा के लिए नीम, एलो-वेरा, तुलसी जैसे स्‍थानीय स्‍तर पर उपलब्‍ध साधनों के इस्‍तेमाल से सैनीटाइज़ेशन और स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में होमस्‍टे संचालकों को जानकारी दी है। साथ ही, उन्‍हें यह भी सिखा रहे हैं कि कैसे उन्‍हें अपनी प्रॉपर्टी को नए माहौल की अपेक्षाओं को ध्‍यान में रखकर तैयार करना है जिससे मेहमानों के मन में सुरक्षा का भाव पैदा हो सके।

कुदरत की महफिल हो, दफ्तर हो, घर हो तस्वीर साभार-नॉट ऑन मैप्‍स’

उत्‍तराखंड में रानीखेत के नज़दीक ‘चेस्‍टनट ग्रोव हिमालयन लॉज’ के संचालक विवेक पांडेय कहते हैं, “हम कोविड-19 महामारी के चलते पैदा हुई परिस्थितियों के मद्देनज़र, शहरी पेशेवरों के लिए 1-2 हफ्ते या महीने भर के पैकेज लाए हैं। इनका बड़ा फायदा यह है कि उन्‍हें पहाड़ों की गोद में बनी हमारी प्रॉपर्टी में रहने की सुविधा के साथ-साथ घर के काम से राहत मिलेगी और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक पहाड़ी जलवायु में, प्रदूषण तथा शोर-शराबे से दूर काम करने की आज़ादी भी होगी। वे शांत माहौल में, दिनभर अपने हिसाब से काम करने, सुबह-शाम सैर, हाइकिंग या कुछ भी नहीं करने की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं। हमारा किचन दिनभर की खानपान की जरूरत पूरी करेगा और यदि वे चाहें तो खुद भी पका सकते हैं।*”

*अन्‍य मेहमानों के होने पर इसमें बदलाव हो सकता है

झरोखे के उस पार दुनिया पहाड़ की! तस्वीर साभार-‘चेस्‍टनट ग्रोव हिमालयन लॉज’

वर्केशन के लिए लंबी अवधि के स्‍टे चुनना आपको मकान किराए पर लेने से पहले एडवांस, लीज़, घर की पुताई-रंगाई या जरूरी फर्नीचर-सामान की खरीद-फरोख्‍़त, रखरखाव जैसी चिंता से पूरी तरह मुक्‍त करता है। यही वजह है कि नए दौर के प्रोफेशनल्‍स इस नए वर्क एवं ट्रैवल के इस नए ट्रैंड को काफी पसंद कर रहे हैं।

खुले आसमान तले घर का सपना अब वर्केशन के बहाने होगा पूरा!तस्वीर साभार-नॉट ऑन मैप्‍स’

ऐसे में होटल की बजाय होमस्‍टे मुफीद ठिकाने साबित हो रहे हैं।  ”होमस्‍टे ऑफ इंडिया’’ की सह-संस्‍थापक शैलजा सूद दास गुप्‍ता का कहना है कि लॉकडाउन और क्‍वारंटीन की शर्तों में आई नरमी के बाद वैकेशन की चाहत को साकार करने वाले ग्राहक बड़ी प्रॉपर्टी की बजाय छोटे घरों को चुनने में ज्‍यादा दिलचस्‍पी ले रहे हैं। उन्‍होंने बताया, ”छोटी प्रॉपर्टी में एक समय में एकाध परिवार ही रुका होता है और ऐसे में उन्‍हें सुरक्षा महसूस होती है। लंबे समय से घरों में बंद रहने के बाद ट्रैवल की तलब निश्चित रूप से बढ़ी है और हम उन्‍हें प्रोत्‍साहित करने के लिए, बुकिंग्‍स नियमों में ढील भी दे रहे हैं। कोरोना संबंधी किसी भी वजह से (मसलन, आपके या आपके किसी परिजन की कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आने की वजह से सफर नहीं कर पाने, लॉकडाउन/कर्फ्यू आदि के कारण घर से नहीं निकल सकने आदि) सफर में खलल पड़ने पर बिना किसी अतिरिक्‍त खर्च के अगली सुविधाजनक तारीखों के हिसाब से ‘रीशैड्यूलिंग’ की जा सकती है।”

पहाड़ों में वर्कप्लेस तस्वीर साभार-‘चेस्‍टनट ग्रोव हिमालयन लॉज’

दफ्तरों के घरों में घुस आने के बाद अब अगली तैयारी है घरों को भूलकर कहीं दूर निकल पड़ने की और इस नई मांग के चलते ‘वर्क फ्रॉम माउंटेन्‍स’ ने साकार रूप ले लिया है। जम्‍मू-कश्‍मीर, हिमाचल और उत्‍तराखंड की पहाड़ी आबो-हवा में, अलग-अलग बजट श्रेणियों में स्‍टैंड-एलोन कॉटेज, होमस्‍टे, रेसोर्ट, विला की पेशकश के बारे में वर्क फ्रॉम माउंटेन्‍स से जुडे प्रशांत ‘किकी’ मथावन कहते हैं, ”हम हिमालय की सोहबत में ‘वर्केशन’ की सुविधा पेश कर रहे हैं, मगर पहाड़ों की प्रकृति को ध्‍यान में रखकर, लोगों को कम से कम एक महीने की बुकिंग जरूरी है। साथ ही, होम क्‍वारंटीन और सोशल डिस्‍टेंसिंग के स्‍थानीय नियमों का कड़ाई से पालन करना भी जरूरी होगा। हमारी यह पेशकश उनके लिए नहीं है जो सिर्फ ट्रैवल के इरादे से आना चाहते हैं, बल्कि यह पहाड़ों में रहकर ‘ऑफिस वर्क’ करने वाले पेशेवरों, फ्रीलांसर्स के लिए है। हमने कोशिश की है सभी ठिकानों पर ब्रॉडबैंड न सही लेकिन डॉन्‍गल या 4जी की सुविधा मेहमानों को उपलब्‍ध हो सके। लेकिन जरूरी नहीं है कि तेज रफ्तार वाइ-फाइ सभी जगह मिले। इसलिए अपना लॉन्‍ग टर्म स्‍टे चुनने से पहले अपनी जरूरत के हिसाब से प्रॉपर्टी में उपलब्‍ध सुविधाओं की पड़ताल जरूर कर लें।”

‘वर्केशन’ पर निकलने से पहले निम्‍न के बारे में पूछताछ कर लें ताकि बाद में परेशानी न हो –

एकरसता और बोरियत के इस दौर में, ‘वर्केशन’ ताज़ी हवा के झोंके जैसा है। तो कहाँ चल रहे हैं अपना वर्चुटल दफ्तर लगाने?

कवर फोटो- ‘चेस्‍टनट ग्रोव हिमालयन लॉज

संपादन- पार्थ निगम

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