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दिल्ली के प्रदूषण ने किया जीरो वेस्ट जीवन के लिए प्रेरित, अब दूसरों को भी दे रहीं ट्रेनिंग

Nilima Zero waste life

चाहे अनचाहे हमारे घर से कई तरह का ऐसा वेस्ट निकलता है, जिसे हम आम चीज़ें समझ कर अनदेखा कर देते हैं।  लेकिन कभी आपने सोचा है कि यह कचरा आपके और हमारे घर से आखिर जाता कहां है? यह कचरा हमारे ही शहर के किसी मोड़ पर या नदी नाले में जाकर प्रदूषण का कारण बनता है। 

जब भी हम शहर की गंदगी की बात करते हैं, तब हमें अपने घर से निकलने वाले प्रदूषण के बारे में भी सोचना चाहिए। ऐसा ही कुछ ख्याल दिल्ली में रहनेवाली नीलिमा बुच और उनके परिवार को भी आया था। 

नीलिमा कहती हैं, “जब हम साल 2013 में मुंबई से दिल्ली शिफ्ट हुए थे, तब अक्सर न्यूज़ चैनल और अख़बारों में शहर के वायु प्रदूषण के बारे में बात होती रहती थी। दिवाली के समय मेरी बेटी को स्कूल में भी पटाखे नहीं जलाने के बारे में बताया जाता था। लगातार इन बातों से हमारा ध्यान न चाहते हुए भी आस पास के प्रदूषण पर जाने लगा।”

पेशे से एक सिंगर और आर्टिस्ट नीलिमा ने इस विषय को थोड़ी गंभीरता से लेना शुरू किया। उन्होंने सोचा कि एक परिवार या एक इंसान इस प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कर सकता है?  सिर्फ पटाखे न जलाने से ही प्रदूषण कम नहीं होगा, बल्कि उन्होंने हर एक तरीके से प्रदूषण को कम करने पर जोर देना शुरू किया। 

कम्पोस्टिंग से की जीरो वेस्ट घर बनाने की शुरुआत 

Nilima Buch

नीलिमा ने घर से निकलने वाले कचरे को कम करने के लिए कंपोस्टिंग शुरू की, जिसका नतीजा है कि आज उनका घर एक जीरो वेस्ट घर बन चुका है और बमुश्किल कोई कचरा उनके घर के बाहर जाता है।  

नीलिमा ने सबसे पहले,  इस समस्या के बारे में ज्यादा से ज्यादा पढ़ना शुरू किया। उन्होंने देखा कि घर के कचरे को कम करने का सबसे आसान तरीका है कि घर के गीले कचरे को रीसायकल किया जाए। उन्होंने साल 2014 से अपने घर के गीले कचरे से खाद बनाना शुरू कर दिया था। करीब दो से तीन महीने के प्रयास के बाद, उन्हें बढ़िया तरीके से गीले कचरे को खाद में बदलना आ गया।   

वह बताती हैं, “मेरे इस छोटे से प्रयास से ही मेरे किचन का 60 प्रतिशत वेस्ट कचरे के डिब्बे में जाने से बच गया।  एक आम परिवार के लिए इतना करना बेहद ही आसान है। मुझे इस काम से काफी ख़ुशी भी मिलती थी।”

उन्होंने दो साल तक सिर्फ कम्पोस्टिंग पर ही ध्यान दिया और किचन के वेस्ट को कम करने के लिए अलग-अलग प्रयास भी किए। वह ध्यान रखतीं कि हर दिन ताज़ा खाना बने। घर में बना हुआ खाना या फिर ऑर्डर की हुई चीज़ों में से कुछ भी बचे न, जिसे कचरे में फेकना पड़ें और फिर एक समय ऐसा आया जब उनके किचन का कचरा बिल्कुल खत्म ही हो गया।

सिंगल यूज़ प्लास्टिक को कहा ना 

Using Cloth Bag

करीबन दो साल बाद 2016 में नीलिमा ने एक कदम आगे बढ़कर, सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इस्तेमाल करना बंद कर दिया। नीलिमा बताती हैं, “ऐसा नहीं है कि मैंने एक दिन फैसला किया और प्लास्टिक का इस्तेमाल करना बंद कर दिया।  

मैंने जीरो वेस्ट घर के बारे में बहुत कुछ पढ़ा, कई जीरो वेस्ट ऑनलाइन ग्रुप से भी जुड़ी। इस रिसर्च के ज़रिए मैंने एक बात जानी कि जीरो वेस्ट लाइफ हम भारतीयों के लिए कुछ नई या मुश्किल बात नहीं है।”

उन्होंने महसूस किया कि उन्हें बस अपने बुजुर्गों के लाइफस्टाइल को फॉलो करना है। जिस तरीके से हम पहले अपने घर का हर सामान लेने के लिए एक थैला साथ रखते थे, उसी तरह फिर से हमें एक थैले की ज़रूरत है। 

वह कहती हैं, “मुझे याद है कि  बचपन में मेरे घरवाले मुझे थैला लेने को कहते थे, तो मैं यह कहकर मना कर देती थी कि यह बहुत ओल्ड फैशन दिखता है। लेकिन समय के साथ मुझे एहसास हुआ कि वह ओल्ड फैशन ही सही मायने में सस्टेनेबल है।”

ब्रेड और चिप्स जैसी चीज़ें भी प्लास्टिक में नहीं लेता यह परिवार

नीलिमा ने सब्जी सहित घर का सारा सामान खरीदने के लिए कपड़े  की थैली का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। उन्होंने घर के पास की किराना दुकान से थैली में सामान लेना शुरू किया।  इतना ही नहीं घर के सूखे नाश्ते से लेकर बिस्किट और चिप्स जैसी चीजों के लिए भी उन्होंने उन दुकानों और बेकरी का पता लगाया जो फ्रेश चीजें बनाकर बेचते थे। 

उनके घर में ब्रेड भी बिना प्लास्टिक के सीधा फ्रेश बेकरी से आता है। उनका कहना है कि यह कदम हमारे लैंडफिल के साथ-साथ हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छा है।  क्योंकि प्लास्टिक में पैक्ड चीज़ें खाने से कहीं बेहतर है ताज़ी चीज़ें खाना। 

साल 2017 तक उनके पूरे परिवार ने अपनी खुद की कटलरी अपने साथ रखना शुरू कर दिया था।   फिर बाहर खाना खाना हो या कहीं घूमने जाना हो, उनके पास उनके खुद के चम्मच, कप और ग्लास रहते ही हैं। नीलिमा के साथ-साथ उनके पति और बेटी भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते।   इसके साथ ही साल 2018 से नीलिमा और उनकी बेटी दोनों ही सामान्य पैड की जगह मेन्सट्रुअल कप का इस्तेमाल कर रही हैं। 

घर को बनाया केमिकल फ्री

नीलिमा हमेशा कोशिश करतीं हैं कि किस तरह से अपने ओर से कचरे को कम किया जाए। उन्होंने कचरे के साथ-साथ लैंडफिल में जाने वाले केमिकल को कम करने के लिए घर की रसोई से लेकर बाथरूम तक सबमें केमिकल का प्रयोग करना बंद कर दिया। 

उन्होंने बायो एंजाइम और प्राकृतिक चीजों से बनी टॉइलेट्री का इस्तेमाल करना शुरू किया। वह बताती हैं, “प्राकृतिक चीजों से बॉडी वाश और शैम्पू बनाना बिल्कुल आसान है।  मैं महीने में एक बार इन्हें बनाकर रख देती हूँ। इन प्रयासों से एक अच्छी बात यह हुई कि मेरे पति की स्किन संबधी दिक्क़तें ख़त्म हो गईं।”

शुरुआत में कई लोग उनके इस जीरो वेस्ट लाइफ स्टाइल के बारे में ढेरों बातें भी बनाते थे। नीलिमा किसी से भी प्लास्टिक की पैकिंग में दिया गिफ्ट या फिर सोशल फंक्शन में प्लास्टिक के कप में चाय आदि पीने से परहेज़ करती हैं।

वह बताती हैं, “शुरू में लोग बातें बनाते  हुए कहते थे कि अच्छा आप तो प्लास्टिक नहीं लेंगी। लेकिन मैंने उन बातों का कभी बुरा नहीं माना, बल्कि उन्हें भी समझाया कि इसके पीछे का कारण क्या है। कई लोग तारीफ भी करते, तो कई सुनकर अनसुना कर देते।”

2000 लड़कियों को मेन्सट्रुअल कप इस्तेमाल करने को किया प्रेरित 

समय के साथ नीलिमा का लाइफस्टाइल कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गया।  वह कोशिश करतीं कि लोगों को इस विषय में ज्यादा से ज्यादा समझाएं। आमतौर पर जीरो वेस्ट लाइफ स्टाइल को लोग मुश्किल समझते हैं। जबकी सच्चाई यह है कि हमें अपने पुराने दिनों को याद करना है और उस तरह जीने पर ध्यान देना है, जिस तरह हमारी दादी-नानी रहा करती थीं।

sustainable menstruation workshop

नीलिमा, ‘पुनः’ नाम से एक सोशल एंटरप्राइज़ भी चला रही हैं, जिसके ज़रिए वह लोगों को सस्टेनेबल तरीके अपनाने में मदद कर रही हैं। अपने खुद के जीवन के अनुभवों और चुनौतियों के अनुसार वह लोगों को समझाती हैं।

समय-समय पर वह जीरो वेस्ट होम से जुड़ी वर्कशॉप कराती हैं। इतना ही नहीं, जो लोग एक सस्टेनेबल जीवन जीना चाहते हैं, उनके लिए रोज़मर्रा के आसान सस्टेनेबल प्रोडक्ट्स भी ‘पुनः’ मुहैया कराता है। उन्होंने बताया कि वह सिर्फ उन प्रोडक्ट्स को ही बेचती हैं,  जिसे जीरो कार्बन फुट प्रिंट के साथ बनाया गया हो।  

वह अब तक अपनी वर्कशॉप के ज़रिए 2000 लड़कियों को मेन्सट्रुअल कप इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित कर चुकी हैं। वहीं, देशभर के 5000 से ज्यादा परिवार उनसे किसी न किसी रूप में जुड़कर घर पर कम्पोस्टिंग भी करने लगे हैं।  

ख़ुद को बदल कर उन्होंने अपने आस-पास जिस बदलाव की शुरुआत की है,  वह वाकई में कबील-ए-तारीफ है। अंत में नीलिमा कहती हैं कि हमारे बड़े बुज़ुर्गों ने हमें जैसा पर्यावरण सौंपा था, वैसा न सही लेकिन हम आनेवाली पीढ़ी के लिए आज से थोड़ा बेहतर वातावरण छोड़कर तो जा ही सकते हैं। 

आप उनसे जुड़ने या जीरो वेस्ट लाइफ से जुड़े किसी भी सवाल के लिए उन्हें यहां सम्पर्क कर सकते हैं।  

संपादन- अर्चना दुबे

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