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बेंगलुरु: शहर के बीचो-बीच रेंट पर खेत लेकर उगाए अपनी मनपसंद और हेल्दी सब्जियां!

चपन में हर साल गर्मियों की छुट्टियां हो, कोई त्यौहार या फिर शादी-ब्याह, सभी मौकों पर हम गाँव जाते थे। वहां का माहौल शहर से एकदम अलग था। सारा दिन खेत-खलिहानों में खेलना, जिद करके दादी-बुआ के साथ जाकर क्यारियों में सब्ज़ियां लगाना, मिट्टी के छोटे-बड़े घड़े लेकर कुएं पर पहुंच जाना और भी न जाने क्या-क्या? मुझे अभी भी याद है जब मेरी नानी घर के आँगन में मिट्टी के चूल्हे पर रोटी बनाती थी तो हम सारे बच्चे अपनी-अपनी थाली लेकर घेरा करके बैठ जाते और बारी-बारी से अपनी रोटी का इन्तजार करते। फिर जैसे-जैसे वक़्त बीता और पढ़ाई-नौकरी की ज़िम्मेदारी बढ़ी, ज़िंदगी किसी दूसरे शहर के एक छोटे से फ्लैट में सिमटकर रह गई। आज भी गाँव की वो सादगी मैं अपने आस-पास शहर की चीज़ों में तलाशती हूँ। मेरे जैसे और भी बहुत से लोग हैं, जो आज टेक्नोलॉजी से लबरेज़ शहरों में देसीपन ढूंढते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए, बेंगलुरू की अनामिका बिष्ट ने ‘विलेज स्टोरी‘ (Village Story) संगठन की शुरुआत की है। स्टील सिटी बोकारो में पली-बढ़ीं अनामिका ने लगभग दो दशक तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने पैशन को करियर बनाया और अब कैसे वे अपने इस स्टार्टअप को आगे बढ़ा रही हैं।

अनामिका बिष्ट

अनामिका बताती हैं कि उन्होंने बचपन में अपने दादा-दादी के साथ छुट्टियों में जो वक़्त बिताया, उसी से प्रेरित होकर ‘Village Story’ की नींव रखी। वह फिर से कबड्डी-पिट्ठू के खेल, पतंग उड़ाना और भी दूसरी चीज़ों को लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा बनाना चाहती है।

उनका यह स्टार्टअप सिर्फ़ मौज-मस्ती तक सीमित नहीं है बल्कि ‘Village Story’ को शुरू करने के पीछे उनका बड़ा उद्देश्य है।

क्या है ‘Village Story’?

विलेज स्टोरी

झारखंड में जन्मी अनामिका ने मुंबई के कॉलेज से साहित्य में ग्रेजुएशन की और फिर NIIFT, दिल्ली से गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग में मास्टर्स की डिग्री ली। पढ़ाई के बाद शुरू हुई करियर की दौड़-भाग ने उन्हें एक वक़्त के बाद इतना थका दिया कि उन्होंने अपनी इस लाइफ-स्टाइल से एक ब्रेक ले लिया।

“मुझे अच्छे से समझ आ गया था कि अब मैं अपनी ज़िंदगी में कॉर्पोरेट करियर नहीं चाहती और इसी समय के आस-पास मेरे एक दोस्त ने मुझसे संपर्क किया। उसने मुझे बेंगलुरू के जक्कुर में उसकी खाली पड़ी एक जगह देखने के लिए कहा। इस जगह पर कुछ अलग करने की योजना थी,” अनामिका ने बताया।

अनामिका हमेशा से ऐसा कुछ करना चाहती थी, जो उन्हें शहर की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी से एक ब्रेक दे और इस जगह को देखते ही उन्हें समझ आ गया कि क्या करना है। उन्होंने यहां पर काफ़ी समय बिताया ताकि वे इस जगह से एक रिश्ता बना सके।

“मैंने यहां सब्ज़ियां उगाना शुरू किया और फिर जब उपज आ गई तो सब्ज़ियों को सभी दोस्त-रिश्तेदारों में बांटा गया। बस यहीं से मेरे दिमाग में Village Story के तहत सामुदायिक खेती का आइडिया आया,” अनामिका ने उत्साह के साथ कहा।

15 अगस्त 2017 को, अनामिका ने शहर में रहनेवाले व्यस्त लोगों के लिए एक सब्सक्रिप्शन फार्मिंग की शुरुआत की, जिसे उन्होंने ‘स्क्वायर फुट फार्मिंग’ नाम दिया।

आप यहाँ अपनी एक क्यारी किराए पर लेकर खेती कर सकते हैं

इस कॉन्सेप्ट को समझाते हुए अनामिका ने बताया कि कोई भी, जो स्वस्थ भोजन खाना चाहता है और जो खुद अपनी सब्ज़ियां उगाना चाहते है, उनका यहां स्वागत है। आप इस जगह में 7×7 फीट की एक क्यारी ले सकते हैं, जिसमें आप अपने हिसाब से कुछ भी उगा सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में अनामिका और उनकी टीम आपकी मदद करेंगे।

यहां उनकी टीम आपको अपना खुद का खाना उगाने के प्राकृतिक और जैविक तरीके सिखाती है। इसके बाद, Village Story की टीम आपके फार्म की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी लेती है। किसानी के लिए आपको जो कुछ भी चाहिए जैसे ज़मीन, मिट्टी, बीज, सैपलिंग, खाद, कॉकोपीट आदि सभी चीज़ों का यहां ख्याल रखा जाता है। आप यहां पर 2000 रुपए प्रति महीने के हिसाब से कम से कम तीन महीनों के लिए ज़मीन का टुकड़ा किराए पर ले सकते हैं। यदि आपकी इच्छा हो तो एक साल के लिए भी आप यहां ज़मीन किराए पर ले सकते हैं।

यहां पर पालक, मेथी, धनिया, अजवायन, गोभी, हरा प्याज, लेट्स, लहसुन, सौंफ, चौलाई आदि के अलावा नीम, मोरिंगा (सहजन फल्ली) के पत्ते, हल्दी, तुलसी, एलोवेरा और फूल उगाए जाते हैं।

यहां सबसे ज़्यादा लोग इस बात से खुश होते हैं कि वे अपना खाना खुद उगा रहे हैं। ऐसा कुछ जो उन्हें उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से निकाल कर एक अलग अनुभव कराता है। इसके अलावा लोग यहाँ आकर खुद को ज़मीन और पर्यावरण से जुड़ा हुआ भी महसूस करते हैं।

फार्म-टूरिज्म की भी है व्यवस्था

स्कूल के बच्चों के लिए टूरिज्म

अनामिका कहती हैं कि आज के समय में माता-पिता अपने बच्चों को कुछ ज़्यादा ही तकनीकी दुनिया में पाल रहे हैं, जो कि शायद सही नहीं है।

“आज अगर हम दादा-दादी से भी मिले, तो लगेगा कि वो भी मॉडर्न हो गए हैं। यह वैसा नहीं है जैसा हमारे समय पर हुआ करता था। इसलिए, Village Story का उद्देश्य फिर से उसी मैजिक को लाना है जो मैंने अपने बचपन में महसूस किया। हम चाहते हैं कि सभी माता-पिता और बच्चे अपने हाथ गंदे करे, खुद सब्जियां उगाए, फिर उन्हें इकट्ठा करे और इस सब में बहुत-कुछ सीखे।”

इस फार्म में किसानी के अनुभव के अलावा भी अनामिका ने पूरे दिन के लिए अलग-अलग चीज़ें डिजाईन की हैं जो कि यहां आने वाले लोग अनुभव कर सकते हैं।

“हम बच्चों और उनके माता-पिता को यहां आकर खुद मिट्टी के चूल्हे पर अपना खाना बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अलावा मिट्टी के बर्तन बनाने, कठपुतली बनाने, कहानी सुनाने, मंडाला और भित्ति-चित्र कला पर वर्कशॉप भी होती हैं।”

यह सब करना अनामिका के लिए इतना आसान नहीं था। वे कहती हैं कि इस तरह का स्टार्टअप शुरू कर लोगों को उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से बाहर लाना और उन्हें खेती करने के लिए मनाना मुश्किल काम है। एक महिला होने के नाते उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। वे आज भी इस कॉन्सेप्ट के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रयासरत हैं।

आगे की योजना के बारे में वे कहती हैं, “हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस समुदाय से जोड़ना चाहते हैं। जितने ज़्यादा लोग हमसे जुडेंगे, उतनी ही ज़्यादा लोगों में पर्यावरण और किसानी के प्रति समझ बढ़ेगी।”

यदि आप भी अपने परिवार, दोस्तों या फिर सहयोगियों के साथ ‘Village Story’ फार्म का दौरा करना चाहते हैं, तो इस लिंक पर क्लिक करें

संपादन: भगवतीलाल तेली
मूल लेख: विद्या राजा 

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