क्या आपको गुजरात पुलिस की कॉन्स्टेबल वर्षा परमार याद हैं? हां, वही वर्षा जिन्होंने कुछ समय पहले कच्छ के रेगिस्तान में हीट स्ट्रोक से बेहोश हुई महिला को पांच किलोमीटर तक अपने कंधे पर लाद सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाया था। उनके इस काम के लिए गुजरात के गृहमंत्री तक ने उनकी सराहना की थी।
मानवता को ही अपना धर्म समझने वाली वर्षा की खुद की ज़िंदगी बेहद संघर्ष से भरी रही है। द बेटर इंडिया से बातचीत करते हुए रापर पुलिस स्टेशन में तैनात वर्षा ने अपने जीवन की मुश्किलों के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “मैंने बचपन में बहुत ग़रीबी देखी। मां-बाप दूसरों के यहां मेहनत मजदूरी कर हम तीन भाई-बहनों का पेट पालते थे। ऐसे में हमें कभी भी भर पेट भोजन नहीं मिला। कई बार तो ऐसा भी हुआ कि खिचड़ी में गर्म पानी मिलाकर उसे बढ़ाया, ताकि तीन वक्त खा सकें। पैसे नहीं थे, तो 7वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी।”
15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। इससे उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई। शादी के बाद भी घर को ठीक से चलाने के लिए उन्हें मेहनत मजदूरी करनी पड़ रही थी। लेकिन इन सबके बीच उनके भीतर कहीं न कहीं आगे पढ़ने की इच्छा सुलग रही थी। उन्होंने अपने पति से इस बारे में बात की, तो उन्होंने वर्षा से कहा कि अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए कोई भी फैसला लेना। अब निर्णय वर्षा को खुद करना था।
मजदूरी करते हुए पास की 10वीं और 12वीं की परीक्षा
वर्षा परमार ने बताया कि उन्होंने तमाम कठिनाइयां झेलते हुए मेहनत मजदूरी की, 10वीं का फार्म भरा और पास भी हो गईं। अब उनका लक्ष्य 12वीं करना था। उन्होंने काम से लौटकर रातों को पढ़ते हुए 12वीं भी पास कर ली। वह अपनी स्थिति बदलना चाहती थीं। उन्हें नौकरी की ज़रूरत थी, ताकि मेहनत मजदूरी से छुटकारा मिल सके।
पुलिस की नौकरी में जाने का ख्याल कैसे आया? इस सवाल पर वर्षा बताती हैं, पुलिस में जाने का सपना मेरे भीतर बचपन में ही पनप गया था। हुआ ऐसा कि हमारे स्कूल में एक बार झगड़ा हो गया। इसे निपटाने के लिए दो महिला पुलिसकर्मियों को भेजा गया। उनकी वर्दी, कार्यशैली और स्कूल में मिले सम्मान को देख कहीं न कहीं यह बात मेरे मन में बैठ गई थी कि मुझे पुलिस में जाना है।
वर्षा बताती हैं कि 12वीं के बाद, 2017 में उन्होंने पुलिस भर्ती के लिए फॉर्म भरा, लेकिन उनका चयन नहीं हो पाया। तब तक उनकी एक बेटी भी हो चुकी थी। लेकिन उन्होंने जी छोटा नहीं किया और 2018 में एक बार फिर से पुलिस भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुईं। उन्होंने अपनी पुरानी गलतियों से सीखा, खूब मेहनत की और गुजरात पुलिस के लिए उनका चयन हो गया। 2020 में उन्होंने नौकरी ज्वाइन कर ली।
एक वाकये ने देशभर में दिलाई वर्षा परमार को पहचान
कुछ समय पहले अपने मानवीय काम की वजह से वर्षा की चर्चा देश भर में रही। हुआ यूं कि वर्षा की ड्यूटी धोलावीरा गांव में मोरारी बापू की रामकथा के दौरान बंदोबस्ती में लगी हुई थी। यहां तीन बुज़ुर्ग महिलाएं भी आई थीं, लेकिन वापसी के दौरान एक 86 वर्षीया महिला गर्मी सहन न कर पाने की वजह से बेहोश हो गई।
वहां से गुज़र रहे एक शख्स ने कथा स्थल पर जाकर इस संबंध में सूचना दी। वर्षा तुरंत पानी की बोतल लेकर पहुंचीं और महिला को पानी पिलाया। उन्होंने देखा कि महिला चल पाने की हालत में नहीं है, तो वर्षा ने किसी ऑर्डर का इंतज़ार न कर बुज़ुर्ग महिला को पीठ पर लादा और तपते रेगिस्तान में 5 किलोमीटर चलकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
अपने इस काम के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “उस बुजुर्ग महिला को मदद की ज़रूरत थी। वह चलने की हालत में नहीं थीं और रेगिस्तान में गाड़ी मिलने की संभावना भी नहीं थी। मुझे जो सबसे सही लगा, मैंने किया और जो कुछ किया, इंसानियत के नाते किया। मुझे मशहूर होने की कोई तमन्ना नहीं।”
रेगिस्तान में बुजुर्ग महिला को पीठ पर लादकर चलने में परेशानी नहीं हुई? इस सवाल पर वर्षा परमार कहती हैं, “ऐसा मैं इसलिए कर सकी, क्योंकि बचपन से ही मेहनत मजदूरी करनी पड़ती थी। पशुओं के लिए कई कई किलोमीटर चारे के गट्ठर लेकर चलना पड़ता था। ऐसे में बुजुर्ग महिला को पीठ पर लादकर चलना मुश्किल ज़रूर था, लेकिन बहुत मुश्किल नहीं था।”
भाई की मौत के बाद संभाली पूरे परिवार की जिम्मेदारी
वर्षा परमार बताती हैं कि वह नौकरी की वजह से रापर में हैं और उनका परिवार यहां से करीब तीन सौ किलोमीटर दूर बनासकांठा में। उनके बड़े भाई की कुछ समय पहले एक हादसे में मौत हो गई और उनकी भाभी ने दूसरी शादी कर ली। ऐसे में भाई के दो बच्चों, छोटे भाई और मां की ज़िम्मेदारी भी अब वर्षा के कंधों पर है।
वह खुद बनासकांठा नहीं जा सकतीं, लेकिन उनके लिए पैसे भिजवाती हैं। उनका छोटा भाई अभी पढ़ रहा है और पिता काम नहीं कर पाते। ख़ुद वर्षा ने नौकरी के साथ-साथ ग्रेजुएशन भी किया है। इसके अलावा, उन्हें समाजसेवा करना भी अच्छा लगता है। 1994 में जन्मीं करीब 28 वर्षीया वर्षा कहती हैं कि वह अपनी 21 हज़ार रुपए की सैलरी में यह सब मैनेज करने की हर संभव कोशिश करती हैं। वर्षा आगे भी ज़रूरत पड़ने पर मानवता के नाते लोगों की सहायता का काम जारी रखेंगीं।
संपादनः अर्चना दुबे
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