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IPS की ड्यूटी के साथ डॉक्टर का फर्ज भी, 5000 आदिवासियों तक पहुंचाई मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं

Telangana IPS Officer

लोगों के मन में पुलिस अधिकारियों को लेकर जो संदेह और डर होता है, वह धीरे-धीरे ही सही लेकिन खत्म हो रहा है। इसकी वजह है पुलिस विभाग के कुछ ऐसे ऑफिसर जो जमीनी स्तर पर जाकर जरूरतमंदों के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे कई अधिकारी हैं जो सोशल मीडिया के जरिए लोगों से जुड़ रहे हैं। अलग-अलग राज्यों के पुलिस विभागों द्वारा शुरू की गयी नेक पहल के कारण बहुत से लोगों के जीवन में बदलाव आया है। आज ऐसे ही एक और नेक पहल के बारे में हम आपको बता रहे हैं। यह पहल तेलंगाना के मुलुगु और जयशंकर भूपलपल्ली जिले में बतौर सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस नियुक्त, आईपीएस संग्राम सिंह पाटिल और उनकी टीम ने शुरू की है। 

2015 बैच के आईपीएस ऑफिसर, 36 वर्षीय संग्राम सिंह पाटिल एक डॉक्टर भी हैं। साल 2011 में अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक-डेढ़ साल प्रैक्टिस की और उसी दौरान उन्होंने यूपीएससी की तैयारी भी शुरू की थी। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे पिताजी उस समय किडनी डाइलिसिस के लिए अस्पताल में भर्ती थे और मैं उनकी देखभाल कर रहा था। मेडिकल की पढ़ाई पूरी हो गई थी लेकिन तब तक मैंने कहीं ज्वॉइन नहीं किया था। तब मेरी एक दोस्त ने मुझे सलाह दी कि मैं साथ-साथ सिविल सर्विस की तैयारी कर सकता हूँ। पहले से ऐसी कोई योजना नहीं थी।” 

इसके बाद पाटिल ने परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और दिल्ली के एक अस्पताल में प्रैक्टिस भी उन्होंने शुरू की। लेकिन नौकरी के साथ तैयारी करना काफी मुश्किल था। इसलिए उन्होंने अस्पताल छोड़कर एक-दो यूपीएससी कोचिंग इंस्टिट्यूट में मेडिकल से संबंधित विषय पढ़ाना शुरू किया और साथ-साथ अपनी तैयारी करते रहे। तीसरे प्रयास में उनका परीक्षा में चयन हो गया और ट्रेनिंग के बाद उन्हें तेलंगाना कैडर मिला। हालांकि, आईपीएस बनने के बाद भी जैसे ही उन्हें डॉक्टर के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने का मौका मिला तो वह इसमें जुट गए। 

IPS Sangram Singh Patil

आदिवासियों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवा: 

अपनी इस स्किल का उपयोग वह आदिवासियों की मदद के लिए कर रहे हैं। उन्होंने बताया, “यह जिला छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के बॉर्डर पर है। इस इलाके में गोट्टी कोया (Gotti Koya) आदिवासी समुदाय की लगभग 100 बस्तियाँ हैं। इन इलाकों में हम रूटीन पेट्रोलिंग के लिए जाते हैं और उस दौरान हमने देखा कि यहाँ पर लोगों को बहुत-सी मूलभूत सुविधाएँ तक नहीं मिल पा रही हैं। ये इलाके शहर से भी दूर हैं और परिवहन की उपलब्धता नहीं है इसलिए समय पर उन्हें चिकित्सा भी नहीं मिल पाती है।” 

इन सभी परेशानियों को देखते हुए पाटिल ने उनके लिए एक डॉक्टर की तरह काम करने का फैसला किया। वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर तय किया कि इन इलाकों में नियमित रूप से हेल्थ कैंप लगाए जाएं। इसके लिए उन्होंने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, वारांगल से मदद मांगी और जिला अस्पताल व हेल्थ सेंटर के डॉक्टर भी उनके साथ इस अभियान में जुड़े हुए हैं। वह बताते हैं कि नियमित तौर पर अलग-अलग जगहों पर हेल्थ कैंप लगाए जा रहे हैं। इन कैंप में पाटिल और उनकी टीम के साथ 15-20 डॉक्टर भी जाते हैं। 

कैंप में लोगों का नियमित स्वास्थ्य चेकअप होता है और जिन्हें तुरंत इलाज की जरूरत होती है, उन्हें जिला अस्पताल भेजा जाता है। पाटिल बताते हैं, “हमारे यहाँ सबसे ज्यादा महिलाओं के स्वास्थ्य की उपेक्षा की जाती है। कैंप के दौरान यहाँ की ज्यादातर महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी का पता चला। इसके अलावा, बच्चों को त्वचा संबंधी परेशानियां मिलती हैं। ब्लड चेकअप के अलावा हम आरटी-पीसीआर और मलेरिया के टेस्ट भी कराते हैं। मुफ्त चेक-अप के साथ-साथ इन लोगों को दवाई भी मुफ्त में ही उपलब्ध कराई जाती हैं।” 

Health Check-ups of tribal people

मुलुगु जिला अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉ. जगदीश्वर बताते हैं, “हम पिछले एक-डेढ़ साल से इस अभियान से जुड़े हुए हैं। मैंने अपनी टीम के साथ पाँच मेगा हेल्थ-कैंप किए हैं। हर एक कैंप में हमने हजार से ज्यादा लोगों का चेक-अप किया है।” 50 वर्षीय डॉ. जगदीश्वर कहते हैं कि इन लोगों तक पहुँचना आसान नहीं है। गुट्टी कोया समुदाय के ये लोग जंगलों में रहते हैं, जहाँ तक पहुँचने के लिए आपको काफी दूर तक पैदल भी चलना पड़ता है। अगर आप वहाँ तक पहुँच भी जाएं तो इन लोगों से बात करना आसान नहीं है क्योंकि उनकी भाषा अलग है। 

उन्होंने बताया, “कई बार ऐसा भी होता है कि हम जिन लोगों को अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए भेजते हैं, वे भाग जाते हैं। बहुत से लोगों में हीमोग्लोबिन के साथ-साथ कुपोषण की भी समस्या है। सबसे बड़ी परेशानी है कि आप आसानी से उनका विश्वास नहीं जीत सकते हैं। हम बार-बार उनके लिए काउंसलिंग सेशन करते हैं ताकि उन्हें भरोसा दिला पायें कि हम उनकी मदद के लिए हैं। लेकिन इन अभियानों में एसपी पाटिल और एएसपी चैतन्य व उनकी पूरी टीम की भागीदारी काबिल-ए-तारीफ हैं।” 

मुलुगु के एएसपी साई चैतन्य बताते हैं, “साल 2020 में हमने कुल नौ हेल्थ कैंप किए हैं, जिनमें 5000 से ज्यादा आदिवासियों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंची हैं। इन कैंप के दौरान लगभग सात लाख रुपए की मुफ्त दवाइयां लोगों को दी गयी हैं। इस पूरे अभियान में अब तक 80 डॉक्टर भाग ले चुके हैं।” इन कैंप के दौरान लोगों को कुछ अन्य चीजें जैसे कंबल आदि भी बांटे जाते हैं।

Distributing Blankets to people

इन लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के अलावा, आईपीएस पाटिल ने और भी कई पहल इन इलाकों के लिए की हैं। 

बच्चों के साथ भी किया है काम:

उन्होंने बताया कि साल 2019 में मुलुगु जिले का गठन हुआ और तब से ही उन्होंने इस जिले और आसपास के इलाकों में काम शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा, “सबसे पहले सभी आदिवासी बस्तियों के ऐसे बच्चों की सूची बनाई गई जो 10वीं या 12वीं में पढ़ रहे थे या जो फेल हो गए थे और दोबारा परीक्षा में बैठने वाले थे। इन सभी बच्चों को हम हर रविवार अलग-अलग पुलिस चौकी पर बुलाने लगे। जहाँ पर इन्हें पढ़ाया जाता और साथ ही, एक्सरसाइज कराई जाती थी। इस पहल के पीछे का उद्देश्य इन बच्चों से 10वीं-12वीं पास युवाओं के लिए निकलने वाली विभिन्न भर्तियों के फॉर्म भरवा कर तैयारी कराना था।” 

लगभग सात-आठ महीनों तक उन्होंने यह अभियान चलाया, जिसमें लगभग 1000 बच्चों ने भाग लिया। लेकिन कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में उन्हें ये कक्षाएं बंद करनी पड़ी। लेकिन आईपीएस पाटिल कहते हैं कि इन सात-आठ महीनों में उनकी इन युवाओं से अच्छी पहचान हो गई। ये बच्चे पुलिस अधिकारियों और कॉन्स्टेबलों के साथ घुल-मिल गए। “जब इन बच्चों का भरोसा हम पर बनने लगा तो हम उनसे पूछते थे कि उनके इलाकों में और कोई समस्याएं हैं क्या? कुछ ऐसा जिसमें हम मदद कर सकते हैं। साथ ही, जब इन बस्तियों में हम जाते तो लोग पहले बात करने में बहुत झिझकते थे और उनकी समस्याएं भी पूछते तो ज्यादा नहीं बताते थे। लेकिन जब इन युवाओं का साथ मिलने लगा तो उनके गाँव-बस्तियों में लोगों से बात करना आसान हो गया।” 

Medaram Police Trophy organized for tribals

इसके अलावा, मुलुगु पुलिस ने इन आदिवासी इलाकों में ‘मेडाराम पुलिस ट्रॉफी’ की भी शुरुआत की। नियमित तौर पर इन इलाकों में दौड़, कबड्डी प्रतियोगिताएं कराई गई। अलग-अलग स्तर पर हुई इन प्रतियोगिताओं में लगभग 3000 बच्चों ने भाग लिया। वह आगे कहते हैं, “जमीनी स्तर पर लोगों के साथ घुलने-मिलने से उनका विश्वास पुलिस पर बढ़ने लगा है। साथ ही, यह इलाका नक्सल-प्रभावित क्षेत्र में आता है। अगर हम यहाँ पर जिम्मेदारी से काम नहीं करेंगे तो न जाने कितने आदिवासी युवाओं और उनके परिवारों का जीवन अँधेरे में जा सकता है। इसलिए हमारी कोशिश सिर्फ यही है कि हम युवाओं को बेहतर शिक्षा से जोड़ सकें और लोगों तक जरूरी सुविधाएँ पहुंचा सकें।”

आईपीएस पाटिल अंत में कहते हैं, “इन सभी अभियानों के लिए फंडिंग प्रशासन के साथ-साथ कुछ सीएसआर प्रोजेक्ट्स से भी मिल रही है। हमारे यहाँ जरूरतमंद हैं तो उनकी मदद करने वाले लोग भी हैं। इन्हें बस एक मंच की जरूरत है, जहाँ से सही मदद सही जगह पहुँचे और हम वही जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे हैं। यह सिर्फ मेरे अकेले का नहीं बल्कि बल्कि बहुत से लोगों का सामूहिक प्रयास है ताकि जरूरतमंदों तक सभी जरूरी सुविधाएं पहुँच सके।” 

संपादन- जी एन झा

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