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100 रोटी सुबह और 100 रोटी शाम को बनाकर, हर दिन जानवरों का पेट भरती हैं कोटा की सोनल गुप्ता

Sonal Gupta
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“भरी बारिश में 2 महीने का एक छोटा सा पिल्ला बाहर काँप रहा था, ठीक से चल भी नहीं सकता था क्योंकि उसके पीछे के पैरों में कुछ दिक्क़त थी। मुझसे देखा नहीं गया, मैंने उसे उठाया और घर के अंदर ले आई। उसको थोड़ा दूध पिलाया, सर पर हाथ फेरा तब जाकर वह नार्मल हुआ। उसको तेज़ बुख़ार था, सुबह उठते ही डॉक्टर के पास ले गई। कुछ दवाइयों से बुख़ार तो उतर गया, लेकिन डॉक्टर ने बताया कि एक ही फैमिली के पेरेंट्स होने की वजह से इसके डीएनए में प्रॉब्लम है और इसलिए इसके पीछे के पैर छोटे हैं, और आगे भी इस वजह से कई समस्याएं आ सकती हैं। जब मैंने पपी के बारे में मालूम किया तो पता चला कि उसके मालिक ने पैरों की समस्या की वजह से ही उसे छोड़ दिया था।

यह सुनकर मुझे बहुत ज़्यादा दुख हुआ। फिर मैंने और मेरे परिवार ने उसे अडॉप्ट कर लिया और ‘हैप्पी’ नाम दिया। आज वह हमारे साथ घर पर ही रहता है। हालांकि डॉक्टर की बात सही थी, उसकी एक समस्या ख़त्म होते ही दूसरी शुरू हो जाती है; लेकिन अब वह हमारे परिवार का सदस्य है इसलिए हम उसका पूरा ध्यान रखते हैं।”

यह कहना है कोटा के विज्ञान नगर में रहने वालीं पशु प्रेमी सोनल गुप्ता का, जिन्होंने कोटा में बेसहारा कुत्तों के लिए एक संस्था बनाई है और इसके ज़रिए वह मुसीबत में फंसे जानवरों की सेवा करती हैं।

जानवरों की सेवा के लिए खोला अपना एनजीओ 

पशुओं की लाचारी और दर्द को महसूस करते हुए आईआईएम उदयपुर से इंटरप्रेन्योरशिप में डिप्लोमा कर चुकीं 30 वर्षीय सोनल ने नौकरी करने के बजाय खुद की आईटी कंपनी खोली, ताकि वह जानवरों की सेवा के लिए समय निकाल सकें। सोनल गुप्ता ‘जीएसएम स्क्वाड’ नाम से एनजीओ चलाती हैं, जिसके ज़रिए वह स्ट्रीट डॉग्स और गायों को खाना, मेडिकल असिस्टेंट वग़ैरह देती हैं। उनके इस एनजीओ में 8-10 लोगों की एक टीम ग्राउंड लेवल पर काम करती है। इसके अलावा, लगभग 500 पशु प्रेमी उनसे जुड़े हुए हैं, जो ज़रुरत के समय अलग-अलग तरीक़ों से मदद करते हैं। कपिल शर्मा और महिमा गुप्ता दोनों सोनल के साथ हफ़्ते के सातों दिन बिना किसी छुट्टी के काम करते हैं।

अब तक 5000 से ज़्यादा कुत्तों और गायों को बचा चुकी हैं सोनल 

सोनल तो अपनी आईटी कंपनी से होने वाली पूरी कमाई को अपने एनजीओ में लगाती ही हैं, इसके अलावा उनके पिता जो सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं, वह भी हर महीने अपनी पेंशन का कुछ हिस्सा डॉग्स के ऊपर ख़र्च करते हैं। अब तक लगभग 5000 कुत्तों और गायों को सोनल की टीम ने सफलतापूर्वक रेस्क्यू करके उनका इलाज कराया है। 

सोनल बताती हैं, “हैप्पी से तो हमें इमोशनल अटैचमेंट हो ही चुका था। लेकिन जब देशभर में लॉकडाउन लगा तो कोटा में हॉस्टल, मेस, होटल वग़ैरह सब बंद हो गए और रोड-साइड डॉग्स को खाना नहीं मिल पाता था। तब हमने प्रशासन से परमिशन लेकर डॉग्स को खाना खिलाना शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे लोगों के फोन आने लगे और वे मुसीबत में फंसे डॉग्स के बारे में हमें बताते। कहीं कोई कुत्ता बीमार होता या कोई और समस्या होती तो हम उसको रेस्क्यू करके ले आते थे।

इस तरह पता ही नहीं चला कब यह कारवाँ बढ़ता गया और फिर हमें एनजीओ बनाने की ज़रूरत पड़ी। सबसे भयानक केस वह था जब एक डॉग ट्रेन से टकरा गया था और उसके चेहरे के दो हिस्से हो गए, वह दर्द से कराह रहा था। हमे जैसे ही उसके बारे में पता चला, हमारी टीम ने उसको रेस्क्यू किया और लम्बे समय तक इलाज करवाया। अब वह बिलकुल ठीक हो गया है।”

आसान नहीं है जानवरों की सेवा करने का काम  

सोनल के घर में रोज़ाना जानवरों के लिए 100 रोटी सुबह, और 100 रोटी शाम को बनती है। वह हर दिन रोटियों के साथ-साथ कुत्तों को पेडिग्री, दूध, दही वग़ैरह खिलाती हैं। सोनल ने बताया कि इन बेज़ुबानों की सेवा करना इतना आसान भी नहीं है। उन्हें कई बार मोहल्ले के लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ता है। आए दिन उनके एनजीओ कार्यालय पर पुलिस आ जाती है, क्योंकि आस-पास के लोग कुत्तों के भौंकने से परेशान हो जाते हैं और शिकायत कर देते हैं। जानवरों के साथ क्रूरता के मामलों में, उन्हें रेस्क्यू करने के दौरान अकसर उनकी टीम को लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ता है। एनजीओ के द्वारा काउंसलिंग भी की जाती है, लेकिन फिर भी कई बार पशुओं के साथ क्रूरता होती है। हालांकि उन्हें कई पशु प्रेमियों का सपोर्ट भी मिलता है, इसलिए वे लगातार काम कर पाते हैं। 

फ़िलहाल सोनल के घर पर 10 डॉग्स हैं जिनका ट्रीटमेंट चल रहा है। वह अब जल्द ही शहर से दूर एक बड़ी जगह लेने की योजना बना रही हैं, ताकि इन पशुओं को आराम और सुकून भरी ज़िंदगी दे सकें। लेकिन इसके लिए पैसे जोड़ने में अभी उन्हें लंबा समय लग सकता है। एनजीओ से जुड़े लोगों से उन्हें काफ़ी सपोर्ट मिल रहा है। आशा है कि वह जल्द ही एक शेल्टर होम बना लेंगी। 

अगर आप भी सोनल की मदद करना चाहते हैं तो उन्हें 7878917407 पर संपर्क कर सकते हैं।

लेखक – सुजीत स्वामी

संपादन – भावना श्रीवास्तव

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