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ढाई किल्ले ज़मीन बेची, ट्रैक्टर बेचा, गांव से शहर हुए शिफ्ट, आज बेटी बनी वर्ल्ड चैंपियन

Antim with her family after winning World under 20 wrestling championship

एक पहलवान बाहर से चाहे जितना भी मजबूत क्यों न हो, सीने में तो उसके भी दिल ही होता है, भावनाएं उसकी भी हज़ार होती हैं। हरियाणा की छोरी अंतिम पंघाल ने हाल ही में अंडर-20 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रच दिया। लेकिन अपने यहां तक के सफर के दौरान किए गए संघर्ष के बारे में हमसे बात करते हुए उनकी आंखे छलक पड़ीं।

अंडर-20 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर का गौरव हासिल करने वाली अंतिम का यह सफर उनके और उनके माता-पिता के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था।

बेटी को बुलंदियों तक पहुंचाने और देश को यह गौरवपूर्ण क्षण दिखाने के लिए अंतिम के माता-पिता ने अपनी ढाई किल्ले (2.5 एकड़) ज़मीन और ट्रैक्टर तक बेच दिया, ताकि बेटी की ट्रेनिंग में कोई कमी ना आए।

अपने माता-पिता के इस सहयोग और त्याग के बारे में द बेटर इंडिया से बात करते हुए अंतिम काफी भावुक हो गईं। उन्होंने बताया कि पिता रामनिवास पंघाल और माँ कृष्णा कुमारी, उनके रेसलिंग करने के फैसले में हमेशा साथ खड़े रहे। अंतिम ने आगे कहा कि जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप तो केवल सफर है, उनकी मंज़िल ओलंपिक मेडल है।

अंतिम पंघाल नाम क्यों और किसने रखा?

वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद अंतिम पंघाल

अंतिम, हिसार (हरियाणा) के एक गांव, भगाना की रहनेवाली हैं। अपने नाम को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “मेरी माँ ने बताया था कि जब सरिता, मीनू और निशा के बाद चौथी संतान भी लड़की पैदा हुई, तो परिवार वाले खुश नहीं थे। वे लड़के की आस कर रहे थे। तीन बच्चियां पहले ही थीं, अब एक और बच्ची आ गई। वे नहीं चाहते थे कि घर में इसके बाद एक और लड़की पैदा हो, इसलिए गांव में चल रहे अंधविश्वास के मुताबिक मेरा नाम अंतिम रख दिया गया और अब यही नाम मेरी पहचान है।”

जिस उम्र में बच्चे अपने करियर को लेकर माथापच्ची कर रहे होते हैं, उस उम्र में जाट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ रहीं अंतिम ने जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग में गोल्ड जीत लिया। वह 31 अगस्त को 18 वर्ष की हो जाएंगी। ।

कमाल की बात है कि इतनी कम उम्र में उन्होंने वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप का 34 साल का रिकॉर्ड तोड़ डाला। बुल्गैरिया के सोफिया में उन्होंने यह कमाल किया, जहां उन्होंने कजाकिस्तान की अल्टिन शगायेवा को 8-0 से धूल चटाई और वर्ल्ड अंडर-20 रेसलिंग चैंपियनशिप में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी भारतीय महिला पहलवान ने गोल्डन पोडियम फिनिश किया।

गांववालों ने फैसले को बताया गलत, लेकिन पिता ने किसी की न सुनी

वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में अंतिम

2004 में जन्मीं अंतिम पंघाल ने 12 साल की उम्र में कुश्ती शुरू कर दी थी । माँ कृष्णा कुमारी के अनुसार, अंतिम ने गांव के ही अखाड़े में गुरु पवन कुमार से कुश्ती के दांव-पेंच सीखना शुरू किया था, लेकिन कुछ समय बाद, पवन कुमार का निधन हो गया।

ऐसे में बात अंतिम को प्रोफेशनल ट्रेनिंग दिलाने की आई, तब उन्होंने हिसार में बाबा लाल दास कुश्ती एकेडमी में प्रवेश लिया । यह एकेडमी अंतिम के गांव से करीब 24-25 किलोमीटर की दूरी पर है।

शुरुआत में अंतिम अपनी माँ और भाई के साथ पांच हजार रुपए के किराए के कमरे में आकर रहीं, लेकिन जब गांव और हिसार, दो-दो जगह परिवार का काम चलना मुश्किल होने लगा, तो पिता रामनिवास ने हिसार शिफ्ट होने का फैसला कर लिया और रोज़ खेती के लिए हिसार से गांव जाते थे। बहुत से लोगों ने इस फैसले को ग़लत बताया, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी।

अंतिम ने बताया, “मेरी बड़ी बहन सरिता कबड्डी खेलती थीं। वह नेशनल प्लेयर भी रही हैं, लेकिन मुझे कुश्ती में मज़ा आता था। मैंने बचपन में ही सोच लिया था कि मुझे कुश्ती ही करनी है। बहन ने भी मेरा पूरा साथ दिया।”

अंतिम पंघाल किसे मानती हैं अपनी प्रेरणा?

पिता रामनिवास पंघाल के साथ अंतिम

अंतिम, रोहतक की रहनेवाली पहलवान निर्मला बूरा को अपना रोल मॉडल मानती हैं। हरियाणा पुलिस में बतौर इंस्पेक्टर कार्यरत निर्मला करीब 30 से भी अधिक नेशनल और इंटरनेशनल मेडल्स अपने नाम कर चुकी हैं। यहां तक कि लॉकडाउन के दौरान अपने घर में मैट लगाकर अभ्यास करने के लिए भी वह काफ़ी चर्चित हुई थीं।

निर्मल को प्रेरणा मानने वाली अंतिम ने भी अपने खेल को मजबूत बनाए रखने के लिए सुबह-शाम चार-चार घंटे प्रैक्टिस की। अंतिम अब ओलंपिक में मेडल जीतने का पक्का इरादा कर चुकी हैं। ऐसे में वह अपनी ट्रेनिंग में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहतीं।

वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप के बाद भी वह चैन से नहीं बैठी हैं। अंतिम, अंडर-20 वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में 53 किलोग्राम वर्ग की प्रतिभागी थीं। ऐसे में अपने वज़न को मेंटेन रखने के लिए उन्होंने अपनी डाइट पर भी खासा ज़ोर दिया। जैसा कि हर रेसलर करता है, कॉम्पीटीशन के दिनों में अंतिम पंघाल लिक्विड डाइट पर ही रहती हैं।

क्या बुल्गैरिया में वर्ल्ड चैंपियनशिप के दौरान कभी दबाव महसूस हुआ?

अंतिम बताती हैं कि पूरी चैंपियनशिप के दौरान उन्हें फाइनल बाउट के अलावा, कोई बाउट मुश्किल नहीं लगी। केवल फाइनल बाउट में कुछ दबाव महसूस हुआ। लेकिन कजाकिस्तान की पहलवान भी अंतिम के दांव के आगे टिक न सकीं। इस दौर तक पहुंचने के लिए इससे पहले अंतिम ने टेक्निकल सुपीरियॉरिटी से यूरोपियन चैंपियन ओलिविया एड्रिच को परास्त किया था।

इसके बाद, जापान की अयाका किमुरा से दांवपेंच का वक्त आया, लेकिन अंतिम ने एक ही मिनट में अयाका को चित्त कर दिया। केवल यूक्रेन की नताली क्लिवचुत्स्का ऐसी रेसलर रहीं, जो अंतिम के सामने पूरे छह मिनट तक टिकी रहीं। बाद में अंतिम ने उन्हें भी 11-2 से मात दी। इससे पहले अंतिम ने वर्ल्ड कैडेट रेसलिंग चैंपियनशिप में भी मेडल अपने नाम किया था।

अंतिम पंघाल के काउंटर अटैक का कोई जवाब नहीं : कोच

विनेश फोगाट, कुश्ती का जाना माना नाम हैं। कॉमनवेल्थ के लिए हुए ट्रायल में अपने दांव से अंतिम ने उन्हें भी चौंका दिया था। इस ट्रायल बाउट में अंतिम के एटीट्यूड ने सबको यह दिखा दिया कि भारत को एक और शानदार रेसलर मिलने वाली है। अंतिम के कोच खासतौर पर उनके डबल लैग अटैक की काफ़ी तारीफ़ करते हैं।

हिसार की बाबा लाल दास कुश्ती अकेडमी में अंतिम के कोच रहे लिली पहलवान बताते हैं कि अंतिम जिस समय उनके पास आई थीं, उसी समय उन्हें लग गया था कि यह लड़की एक दिन कोई कमाल ज़रूर करेगी।

लिली पहलवान ने बताया कि अंतिम के परिवार की आर्थिक स्थिति कोई बहुत बेहतर नहीं थी। उनके पिता तीन एकड़ के खेत पर खेती करते थे, लेकिन वह चाहते थे कि अंतिम एक शानदार रेसलर बनें। अंतिम के दांव-पेंच बहुत शानदार हैं, वह प्रतिद्वंद्वी पर हावी होकर खेलती हैं। वह बताते हैं कि अंतिम के काउंटर अटैक का कोई जवाब नहीं।

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